18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति का ‘लिव इन रिलेशन’ में रहना अस्वीकार्य, ऐसे कृत्य अनैतिक और अवैध: इलाहाबाद हाईकोर्ट

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि 18 साल से कम उम्र का कोई ‘बच्चा’ लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता। ऐसा करना न केवल अनैतिक बल्कि गैरकानूनी कृत्य होगा। न्यायालय ने कहा कि लिव-इन रिलेशन को विवाह की प्रकृति का संबंध मानने के लिए कई शर्तें हैं और किसी भी मामले में, व्यक्ति को बालिग (18 वर्ष से अधिक) होना चाहिए, भले ही वह विवाह योग्य आयु (21 वर्ष) का न हो। उल्लेखनीय है कि जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस राजेंद्र कुमार-चतुर्थ की पीठ ने कहा कि 18 वर्ष से कम उम्र का आरोपी किसी बालिग लड़की के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के आधार पर सुरक्षा नहीं मांग सकता है और इस प्रकार, वह अपने खिलाफ आपराधिक मुकदमे को रद्द करने की मांग नहीं कर सकता है, क्योंकि उसका कृत्य “कानून में स्वीकार्य नहीं है और इस प्रकार अवैध है”।

कोर्ट ने 19 वर्षीय लड़की (सलोनी यादव/याचिकाकर्ता नंबर 1) और 17 वर्षीय लड़के (अली अब्बास/याचिकाकर्ता नंबर 2) द्वारा एफआईआर को रद्द करने की मांग वाली आपराधिक रिट याचिका को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं। कथित तौर पर लड़की का अपहरण करने के आरोप में लड़के के खिलाफ आईपीसी की धारा 363, 366 के तहत मामला दर्ज किया गया है, साथ ही मामले में लड़के को गिरफ्तार न करने की अतिरिक्त प्रार्थना भी की गई है। याचिकाकर्ताओं का मामला यह था कि याचिकाकर्ता नंबर एक बालिग है और उसने स्वेच्छा से अपना घर छोड़ा है, इसलिए आईपीसी की धारा 363 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है। कथित पीड़िता ने एक पूरक हलफनामा भी दायर किया, जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता संख्या एक बालिग है और वह याचिकाकर्ता संख्या दो के साथ अपनी मर्जी से गई थी।

उनका आगे का मामला यह था कि वे दोनों 27 अप्रैल, 2023 को एक-दूसरे के साथ रहने लगे और लड़की के परिवार के सदस्य ने 30 अप्रैल को एफआईआर दर्ज कराई। इसके बाद, 13 मई को वर्तमान याचिका दायर करने के बाद, शिकायतकर्ता पक्ष ने याचिकाकर्ताओं को प्रयागराज से अपहरण कर लिया और उन्हें अपने गांव ले गए, हालांकि, 15 मई को लड़की किसी तरह भागने में सफल रही और याचिकाकर्ता संख्या दो के पिता के घर पहुंच गई और पूरी कहानी सुनाई।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने शुरुआत में किरण रावत और अन्य बनाम यूपी राज्य, सचिव, गृह, लखनऊ के माध्यम से और अन्य 2023 लाइव लॉ (एबी) 201 के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का उल्लेख यह नोट करने के लिए किया कि लड़का यानि याचिकाकर्ता संख्या दो एक मुस्लिम है, इसलिए, लड़की के साथ उसका रिश्ता मुस्लिम कानून के अनुसार ‘ज़िना’ है और इस प्रकार, अस्वीकार्य है। कोर्ट ने आगे कहा कि 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को बच्चा माना जाता है और ऐसा बच्चा लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता है और यह न केवल अनैतिक कार्य होगा बल्कि अपने आप में गैरकानूनी भी होगा। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के रिश्ते को “देश के किसी भी कानून के तहत कोई सुरक्षा नहीं दी गई है” सिवाय इसके कि दो बालिग व्यक्तियों को अपना जीवन जीने का अधिकार है और उस हद तक, उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए।

कोर्ट ने कहा, “ऐसा कोई कानून नहीं है जो लिव-इन रिलेशनशिप पर प्रतिबंध लगाता है, जो वर्तमान मामले में विवाह पूर्व यौन संबंध है। हालांकि, वर्तमान मामले में लड़का बालिग नहीं है या 18 वर्ष का नहीं है और बच्चा होने के कारण उसे ऐसे संबंध बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।” इसके अलावा, मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में लिव-इन रिलेशनशिप की गतिविधि बेहद कम अवधि की है, जो “याचिकाकर्ताओं के मामले के समर्थन में नहीं आ सकती”। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता नंबर दो की उम्र के संबंध में निर्विवाद तथ्य और स्पष्ट दावे के मद्देनजर कि याचिकाकर्ता लिव-इन रिलेशनशिप में हैं, आईपीसी की धारा 366 के तहत कोई अपराध बनता है या नहीं, यह अभी तक तय नहीं हुआ है। अदालत ने आगे कहा कि लड़की अभियोजन पक्ष के मामले के खिलाफ हलफनामा दायर करने के लिए आगे आई थी जब उसने माना कि वह आरोपी पक्ष (लड़के/आरोपी के परिवार) के साथ थी। न्यायालय ने यह भी पाया कि सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत कथित पीड़िता का कोई बयान नहीं दिया गया। जांच अधिकारी या अदालत द्वारा दर्ज किया गया है और इसलिए, इस स्तर पर, यह नहीं कहा जा सकता है कि आईपीसी की धारा 366 के अनुसार बल का उपयोग नहीं किया गया है, या किसी भी मामले में प्रलोभन नहीं दिया गया है। उक्‍त टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटलः सलोनी यादव और अन्य बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य 2023
[CRIMINAL MISC. WRIT PETITION No. – 7996 of 2023]

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