“कट्टरपंथी मुस्लिम की तुलना किसी चरमपंथी या अलगाववादी से नहीं की जा सकती”: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

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जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा, “एक कट्टरपंथी मुस्लिम की तुलना किसी चरमपंथी या अलगाववादी से नहीं की जा सकती।” यह टिप्पणी जस्टिस अतुल श्रीधरन की एकल पीठ ने एक 22 वर्षीय मुस्लिम व्यक्ति की प्र‌िवेंटिव डिटेंशन के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की। उसे इस अधार पर हिरासत में लिया गया था कि कि वह एक “कट्टरपंथी” बन गया है और स्वेच्छा से लश्कर ए तैयबा के कथित संगठन टीआरएफ (द रेजिस्टेंस फ्रंट) के ओवर ग्राउंड वर्कर के रूप में काम करने के लिए सहमत हो गया है।

पीठ ने कहा, “जिला मजिस्ट्रेट द्वारा “कट्टरपंथी विचारधारा” वाक्यांश के उपयोग का मतलब यह नहीं है कि बंदी की चरमपंथी या अलगाववादी विचारधारा है। कट्टरपंथी विचारधारा इब्राहीम आस्था का अभिन्न अंग है, जहां अनुयायियों को उस धर्म के अनुयायियों के रूप में स्वीकार किए जाने के लिए धर्म के 4 निश्चित बुनियादी सिद्धांतों में विश्वास करना आवश्यक है। इसलिए, कोई व्यक्ति जो इब्राहीम विश्वास के मूल सिद्धांतों का दृढ़ता से अनुसरण करता है या उनका पालन करता है, वह निस्संदेह एक कट्टरपंथी है, लेकिन इसके साथ कोई नकारात्मकता जुड़ी नहीं है और यह एक चरमपंथी या अलगाववादी से अलग है।”

जहां तक याचिकाकर्ता के मामले का सवाल है, कोर्ट ने कहा, “कट्टरपंथी कट्टरवाद का अनुयायी है…कट्टरपंथी वह है जो इस्लाम के मूल सिद्धांतों में विश्वास करता है और दृढ़ता से उसी का पालन करता है। इसका उसके व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ सकता है। एक कट्टरपंथी मुस्लिम एक चरमपंथी या अलगाववादी के समान नहीं हो सकता। इसलिए, उक्त आधार भी अस्पष्ट है और उचित समझ के बिना स्पष्ट रूप से उपयोग किया गया है।” पुलवामा के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी हिरासत आदेश में कहा गया है कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति को राज्य की सुरक्षा के लिए हानिकारक किसी भी तरीके से कार्य करने से रोकना आवश्यक है। इस आदेश को बंदी के पिता ने चुनौती दी थी।

याचिकाकर्ता के वकील शब्बीर अहमद डार द्वारा प्रस्तुत मुख्य तर्कों में से एक यह था कि हिरासत के आधारों के बारे में बंदी को उसकी मूल भाषा में नहीं बल्कि अंग्रेजी में बताया गया था। हालांकि, अदालत ने पाया कि बंदी ने निष्पादन रिपोर्ट पर अंग्रेजी में हस्ताक्षर किए थे और उसने 11वीं कक्षा तक पढ़ाई की थी, जो भाषा की बुनियादी समझ का संकेत देता है। इसलिए, अदालत ने माना कि इसे कानून का उल्लंघन नहीं माना जा सकता, क्योंकि हिरासत में लिए गए व्यक्ति ने स्वयं किसी भाषा बाधा का दावा नहीं किया था।

याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत एक अन्य तर्क यह था कि हिरासत के आधार अस्पष्ट, गैर-विशिष्ट और अटकलों और अनुमानों पर आधारित थे। अदालत इस तर्क से सहमत हुई और नोट किया कि आधार राष्ट्र के लिए पूर्वाग्रहपूर्ण कथित कृत्यों की तारीख और प्रकृति के बारे में विशिष्ट विवरण प्रदान करने में विफल रहा। इसके अलावा, अदालत ने पाया कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति के खिलाफ सीधे आरोप लगाने वाले किसी भी गवाह का कोई बयान नहीं था। उसी के मद्देनजर, पीठ ने हिरासत आदेश को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति को तुरंत रिहा कर दिया जाए।
केस टाइटल: शाहबाज़ अहमद पल्ला।

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