दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के प्रावधानों के तहत एक जोड़े के विवाह के अनुष्ठान और पंजीकरण के लिए “कम से कम एक पक्ष भारत का नागरिक होने” की कोई आवश्यकता नहीं है। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि अधिनियम की धारा 4 में कोई संदेह नहीं है कि कोई भी दो व्यक्ति अपनी शादी को तब तक पूरा कर सकते हैं जब तक कि प्रावधान में निर्धारित शर्तें पूरी होती हैं। अदालत ने कहा, “धारा 4 के उप-खंड (ए), (बी), (सी) और (डी) नागरिकों के लिए कोई संदर्भ नहीं देते हैं। यह केवल धारा 4 की उप-धारा (ई) में है, जहां क़ानून की आवश्यकता है कि जम्मू और कश्मीर में विवाह के मामले में, दोनों पक्षों को भारत का नागरिक होना चाहिए।”
अधिनियम की धारा 4 अधिनियमन के तहत विवाहों के अनुष्ठापन से संबंधित विभिन्न शर्तों का उल्लेख करती है। कोर्ट ने कहा, “कानून ने धारा 4 की उप-धारा (ई) में ‘नागरिकों’ के विपरीत प्रारंभिक भाग में ‘किसी भी दो व्यक्तियों’ के बीच स्पष्ट अंतर किया है, यह स्पष्ट है कि स्पेशल मैरिट एक्ट के तहत कम से कम एक पार्टी का भारत का नागरिक होने की आवश्यकता नहीं है।” कोर्ट ने विवाह प्रमाणपत्र जारी करने के लिए दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का संज्ञान लिया। दिशानिर्देश बताते हैं कि विवाह पंजीकरण के लिए आवेदन करने वाले दूल्हा या दुल्हन को भारत का नागरिक होना चाहिए।जस्टिस सिंह ने पाया कि दिशानिर्देश विशेष विवाह अधिनियम के वैधानिक प्रावधानों के विपरीत हैं और इस संबंध में अदालत द्वारा पूर्व में दिए गए निर्देशों को अधिकारियों द्वारा लागू नहीं किया गया है। कोर्ट ने कहा, “संबंधित मंत्रालय जीएनसीटीडी के सचिव द्वारा एक स्टेटस रिपोर्ट रिकॉर्ड पर रखी जाएगी जिसमें दिशानिर्देशों में संशोधन के लिए उठाए गए कदमों का विवरण दिया जाएगा और साथ ही विशेष विवाह अधिनियम के तहत ई-पोर्टल में आवश्यकताओं को एडिट करने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण दिया जाएगा ताकि सुनिश्चित करें कि एक पक्ष के नागरिक होने की आवश्यकता पर जोर नहीं दिया गया है।”
2023-01-18