‘स्वयंवर’ अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार, इसकी जड़ें रामायण, महाभारत में खोजी जा सकती हैं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

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पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह कहा कि स्वयंवर यानी अपनी पसंद से शादी करना कोई आधुनिक घटना नहीं है और इसकी जड़ें प्राचीन इतिहास में खोजी जा सकती हैं, जिसमें रामायण महाभारत जैसी पवित्र पुस्तकें भी शामिल हैं। जस्टिस जगमोहन बंसल की पीठ ने यह कहते हुए कि अनुच्छेद 21 इस मानवाधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में लागू करता है, आरोपी व्यक्ति के खिलाफ लड़की का अपहरण करने के आरोप में दर्ज एफआईआर रद्द कर दी।
न्यायालय ने कहा कि दोनों पक्ष वयस्क हैं और उन्होंने अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह किया और वे खुशी-खुशी साथ रह रहे हैं। इसलिए अदालतों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों सहित किसी को भी उनकी गलती के बिना उनके जीवन को परेशान करने का अधिकार नहीं है।

पीठ ने आगे कहा, “उन्हें अपने जीवन को अपने तरीके से जीने का अधिकार है। उनके दो बच्चे हैं। लंबित आपराधिक मामले के साथ कोई भी खुशहाल जीवन नहीं जी सकता। राज्य को विधिवत विवाहित जोड़े के जीवन में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। आपराधिक कार्यवाही के जारी रहने से न केवल याचिकाकर्ता का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाएगा, बल्कि प्रतिवादी नंबर 3 और उनके बच्चों के जीवन में भी अशांति की पूरी संभावना है।”

 

न्यायालय के समक्ष मामला न्यायालय टेकचंद की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसने आईपीसी की धारा 363 और 366-ए के तहत लड़की के पिता द्वारा उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए अदालत का रुख किया। याचिकाकर्ता पर आरोप लगाया गया कि उसने लड़की को शादी के बहाने उसे बहला-फुसला कर भगाया। दूसरी ओर, टेकचंद (याचिकाकर्ता) ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि उसने और प्रतिवादी नंबर 3 (लड़की) ने जुलाई 2019 में शादी की और उनके दो बच्चे हैं। राज्य ने इस तथ्य पर विवाद नहीं किया।यह भी प्रस्तुत किया गया कि वे दोनों अपने जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अदालत गए। अदालत ने याचिकाकर्ताओं के प्रतिनिधित्व पर ध्यान देने और कानून के अनुसार कार्य करने के लिए एसएसपी मुक्तसर साहिब को निर्देश के साथ मामला निपटाया। अदालत ने देखा कि याचिकाकर्ता ने पहले ही लड़की से शादी कर ली है और वे दोनों खुशी-खुशी साथ रह रहे हैं। अदालत ने कहा कि राज्य को विधिवत विवाहित जोड़े के जीवन में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।
पीठ ने टिप्पणी की, “आपराधिक कार्यवाही के जारी रहने से न केवल याचिकाकर्ता का जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा, बल्कि प्रतिवादी नंबर 3 और उनके बच्चों के जीवन में भी अशांति की पूरी संभावनाएं हैं। हमारा राज्य कल्याणकारी राज्य है। हमारे देश में शहरी आबादी के छिटपुट मामलों को छोड़कर, यह आदमी ही है, जो कमा रहा है और अपनी पत्नी और बच्चों की देखभाल कर रहा है।” गौरतलब है कि भारतीय संस्कृति में जाति और धर्म के बावजूद, विवाह न तो समझौता है और न ही अनुबंध, बल्कि यह दो परिवारों की पवित्र गांठ है, न्यायालय ने इस प्रकार कहा, “यह विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों का भौतिक मिलन नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र संस्था है, जहां दो परिवार एक हो जाते हैं। विवाह के महत्व को इस तथ्य से और समर्थन मिलता है कि बिना विवाह के एक जोड़े से बच्चा नहीं होता। जैसा कि विधिवत विवाहित जोड़े से बच्चे के रूप में पहचाना जाता है।” नतीजतन, उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने विचाराधीन एफआईआर रद्द करने वाली याचिका को अनुमति दी।

केस टाइटल- टेक चंद बनाम पंजाब राज्य और अन्य [CRM-M-5992-2023]

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