सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 129: आदेश 21 नियम 81, 82 व 83 के प्रावधान

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सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 21 का नाम डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 81,82 एवं 83 पर विवेचना की जा रही है।

नियम-81 अन्य सम्पत्ति की दशा में निहित करने वाला आदेश- किसी ऐसी जंगम सम्पत्ति की दशा में जिसके लिए इसमें इसके पूर्व उपबन्ध नहीं किया गया है, न्यायालय ऐसी सम्पत्ति को क्रेता में या जैसा निदेश क्रेता दे उसके अनुसार निहित करने वाला आदेश कर सकेगा और ऐसी सम्पत्ति तदनुसार निहित होगी।

नियम-82 कौन से न्यायालय विक्रयों के लिए आदेश कर सकेंगे-डिक्रियों का निष्पादन करने में स्थावर सम्पत्ति के विक्रयों के लिए आदेश लघुवाद न्यायालय से भिन्न किसी भी न्यायालय द्वारा किया जा सकेगा।

नियम-83 विक्रय इसलिए मुल्तवी (स्थगित) किया जाना कि निर्णीतऋणी डिक्री की रकम जुटा सके-

(1) जहां स्थावर सम्पत्ति के विक्रय के लिए आदेश किया जा चुका है वहां यदि निर्णीतऋणी न्यायालय का समाधान कर सके कि यह विश्वास करने के लिए कारण है कि डिक्री का धन ऐसी सम्पत्ति या उसके किसी भाग के, या निर्णीतऋणी की किसी अन्य स्थावर सम्पत्ति के, बंधक या पट्टे या प्राइवेट विक्रय द्वारा जुटाया जा सकता है तो उसके आवेदन करने पर न्यायालय विक्रय के आदेश में समाविष्ट सम्पत्ति के विक्रय को ऐसे निबन्धनों पर और ऐसी अवधि के लिए जो वह उचित समझे, इसलिए मुल्तवी कर सकेगा कि उस रकम को जुटाने में वह समर्थ हो जाए।

(2) ऐसी दशा में न्यायालय निर्णीतऋणी को ऐसा प्रमाणपत्र देगा जो उसमें वर्णित अवधि के भीतर और धारा 64 में किसी बात के होते हुए भी प्रस्थापित बन्धक, पट्टा या विक्रय करने के लिए उसे प्राधिकृत करता है: परन्तु ऐसे बन्धक, पट्टे या विक्रय के अधीन संदेय सभी धन वहां तक के सिवाय जहां तक कि डिक्रीदार ऐसे धन को नियम 72 के उपबन्धों के अधीन मुजरा करने का हकदार है न्यायालय को दिए जाएंगे, न कि निर्णीतऋणी को : परन्तु यह और भी कि इस नियम के अधीन कोई बन्धक, पट्टा या विक्रय तब तक आत्यन्तिक नहीं होगा जब तक कि वह न्यायालय द्वारा पुष्ट न कर दिया जाए ।
(3) इस नियम की किसी भी बात के बारे में यह नहीं समझा जाएगा कि वह ऐसी सम्पत्ति के विक्रय को लागू होती है जिसके बारे में ऐसी सम्पत्ति के बन्धक या उस सम्पत्ति पर के भार प्रवर्तन कराने के लिए विक्रय की डिक्री के निष्पादन में विक्रय किए जाने का निदेश दिया गया है।

आदेश 21 के नियम 74 से 81 तक में जंगम (चल) सम्पत्ति के विक्रय संबंधी उपबन्ध किए गए हैं। उगती फसल या खलिहान पर इकट्ठी की गई फसल की नीलामी खेत या खलिहान पर की जाती है, या न्यायालय जिस स्थान को उचित समझे। उगती या खड़ी फसल की नीलामी की जाने पर क्रेता को संभालने, काटने और इकट्ठी करने की सुविधा का अधिकार है।

कृषि उपज के लिए जो व्यवस्था की गई है उसके अलावा, जंगम (चल) सम्पत्ति की डिक्री के निष्पादन में विक्रय आदेश देने वाले न्यायालय की अधिकारिता के भीतर स्थित किसी स्थान पर साधारणतया किया जावेगा, परन्तु उचित एवं पर्याप्त कारणों को लेखबद्ध कर दूसरे स्थान पर भी ऐसा विक्रय किया जा सकता है। केवल यही कथन कि किसी दूसरे स्थान पर ऊँची कीमत की बोली आने की संभावना है कोई पर्याप्त कारण नहीं है।

निगम-शेयरों की कुर्की और नीलामी- विक्रय न होने तक निर्णीत-ऋणी के अधिकार – सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 के नियम 76 के अधीन निगम-शेयर, जो कुर्क किये गए हैं किसी दलाल के माध्यम से बेचे जा सकते हैं। अनुकल्पतः (दूसरी तरीके से) ऐसे शेयर सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 के नियम 77 के अधीन लोक नीलामी में भी बेचे जा सकते हैं। नियम 77 या नियम 76 में किसी के अधीन भी ऐसी बिक्री के पश्चात् क्रेता हक अर्जित करता है।

जब तक ऐसा विक्रय नहीं किया जाता तब तक निर्णीत ऋणी के सभी अधिकार अप्रभावित रहते हैं (जैसे थे वैसे रहते हैं) भले ही संहिता के आदेश 21 के नियम 43 के अधीन न्यायालय के अधिकारी द्वारा अथवा किसी रिसीवर (प्रापक) के द्वारा कुर्की करने के प्रयोजन के लिए अभिगृहीत कर लिये (ले लिये) गये हो अथवा संहिता के आदेश 21 के नियम 46 के निबंधनों (शर्तों) के अनुसार ऐसे आदेश के द्वारा अभिगृहीत (कब्जे में) कर लिए गए हैं, जिसकी तामील निर्णीत-ऋणी पर अथवा सम्बन्धित कम्पनी पर की गई है। इस मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि अधिवेशन बुलाने के लिए ऐसी कम्पनी (निर्णीत-ऋणी) नोटिस जारी करने के अधिकार से वंचित नहीं होती।

अनियमितता का प्रभाव- नियम 78 जंगम सम्पत्ति के विक्रय के प्रकाशन या संचालन में हुई अनियमितता के बारे में है, जब कि नियम 70 स्थावर सम्पत्ति के बारे में है।

जंगम (चल) सम्पत्ति का विक्रय जब किसी पक्षकार के आवेदन के बिना तथा निर्णीत-ऋणी को सूचना दिये बिना किया गया तो वह बिना अधिकारिता के दिया गया होने के कारण इस नियम के अधीन अपास्त किये जाने योग्य है।

कम्पनी के शेयर्स (निगम-अंग) की खरीद (नियम 79 तथा 80) एक डिक्री के निष्पादन में किसी कम्पनी के शेयर्स खरीदने वाले व्यक्ति को उसका नाम कम्पनी के शेयर होल्डर्स के रजिस्टर में एक अधिकार के रूप में अंक्ति कराने का अधिकार नहीं है। वह उन्हीं सब नियमों का पालन करेगा, जो निजी क्रेता पर लागू हैं।

निर्धारित प्ररूप (फार्म) आदेश 21 के उपरोक्त नियम 19 के अधीन कार्यवाही के लिए परिशिष्ट (ङ) में निम्न प्ररूप (फार्म) विहित किये गये हैं-

(1) प्ररूप-32- निष्पादन में बेची गई जंगम सम्पत्ति पर कब्जा रखने वाले व्यक्ति को सूचना।

(2) प्ररूप-33- निष्पादन में बेचे गए ऋणों का संदाय क्रेता से भिन्न किसी व्यक्ति को करने के विरुद्ध प्रतिषेधात्मक आदेश।

(3) प्ररूप-34- निष्पादन में बेचे गए अंशों के अन्तरण के विरुद्ध प्रतिषेधात्मक आदेश।

इस आलेख में उल्लेख किया गया नियम 83 निर्णीत-ऋणी को डिक्री के भुगतान के लिए रकम जुटाने के लिए एक अवसर देता है, ताकि वह उसकी सम्पत्ति को विक्रय से बचा सके। इसके लिए न्यायालय विक्रय को शर्ते लगाकर स्थगित कर सकता है।

निर्णीत-ऋणी न्यायालय को यह संतोष दिलायेगा कि वह उस सम्पत्ति या अन्य सम्पत्ति के अंतरण से डिक्री के भुगतान के लिए धन जुटा सकता है, जैसा कि ऊपर उपनियम (1) में बताया गया है। न्यायालय इस पर उसे उपनियम (2) के अनुसार प्रमाणपत्र देकर प्राधिकृत करेगा। ऐसे सभी धन प्राप्त होने पर, नियम 72 के अधीन मुजरा देने के बाद न्यायालय में ही जमा कराये जायेंगे।

इस नियम में दी गई उपरोक्त छूट के अधीन किया गया बंधक, पट्टा या विक्रय तब तक आत्यन्तिक (अन्तिम) नहीं होगा, जब तक कि न्यायालय उसकी पुष्टि न कर दे। उपनियम (3) में वर्णित विक्रय को यह नियम लागू नहीं होगा।

इस नियम पर न्यायालयों द्वारा दिए गए सिद्धांत-

(क) एक प्रकरण में कहा गया है कि ऐसी अवधि के लिए जो वह उचित समझे इस नियम के अधीन विक्रय को स्थगित करना विवेकाधीन है, पर यह पक्षकारों की सहमति पर निर्भर नहीं है। ऐसा स्थगन उचित अवधि के लिए होना चाहिये न तो विक्रय को स्थगित किया जाय और न उपनियम (2) के अधीन कोई प्रमाण पत्र दिया जाय, जब तक कि डिक्री पर देय सम्पूर्ण राशि को बंधक, पट्टे या विक्रय द्वारा वसूल न कर लिया जाय। इस नियम में अपेक्षित (चाहा गया) आवेदन विक्रय के पहले देना होगा। अन्यसंक्रामण (अन्तरण) जहाँ वास्तव में निर्णीत -ऋणी द्वारा है, तो उस पर न्यायालय की अनुमति धारा 64 के कारण आवश्यक है।

(ख) एक वाद में निर्धारित हुआ है कि न्यायालय द्वारा विक्रय की पुष्टि-जहाँ दो न्यायालयों द्वारा डिक्री पारित की गई हो, तो उन दोनों की अनुमति से निर्णीत-ऋणी डिक्री की राशि प्राइवेट विक्रय द्वारा उठाना चाहता है। इस मामले में इतना पर्याप्त है कि- एक न्यायालय द्वारा उस विक्रय की पुष्टि कर दी गई। दूसरे न्यायालय को उसी विक्रय की पुष्टि करने के लिए आवेदन करना अर्थहीन है। नियम 83 (3) के उपबन्ध बंधक (गिरवी) की सम्पत्ति का प्राइवेट-विक्रय करने की अनुमति नहीं देते हैं।

(ग) इस संहिता की धारा 64 में किसी बात के होते हुए- इस नियम की शर्तों की पालना हो जाने पर, धारा 64 के होते हुए भी, निजी (प्राइवेट) अन्यसंक्रामण केवल डिक्रीदार के दावे के विरुद्ध ही नहीं वरन कुर्की के अधीन लागू सभी दावों के विरुद्ध सम्पूर्ण हो जाता है, परन्तु न्यायालय द्वारा प्रमाणपत्र स्वीकृत किये जाने से पहले किए गए दूसरे डिक्रीदार की कुर्की के अधीन लागू करने योग्य दावों के विरुद्ध सम्पूर्ण नहीं होगा।

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