जयपुर जिले नतीजे एक नजर में

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सीट जीते/अंतर
कोटपुतली हंसराज पटेल (भाजपा) 321 राजेन्द्र यादव (कां)
विराट नगर कुलदीप धनखड़ (भाजपा) 17589 इंद्राज गुर्जर (कां)
शाहपुरा मनीष यादव (कां) 64908 आलोक बेनीवाल (नि)
चौमूं डॉ. शिखा मील बराला (कां) 5695 रामलाल शर्मां (भाजपा)
फुलेरा विद्याधर चौधरी (कां) 26898 निर्मल कुमावत (भाजपा)
दूदू प्रेम चंद बैरवा (भाजपा) 35497 बाबूलाल नागर (कां)
झोटवाड़ा राज्यवर्धन राठौड़ (भाजपा) 50167 अभिषेक चौधरी (कां)
आमेर प्रशांत शर्मा (कां) 9092 सतीश पूनिया (भाजपा)
जमवारामगढ़ महेन्द्र मीणा (भाजपा) 38427 गोपाल मीणा (कां)
हवामहल बालमुकुंद आचार्य (भाजपा) 974 आरआर तिवाड़ी (कां)
विद्याधर नगर दिया कुमारी (भाजपा) 71,368 सीताराम अग्रवालए (कां)
सिविल लाइंस गोपाल शर्मा (भाजपा) 28329 प्रताप सिंह खाचरियावास (कां)
किशनपोल अमीन कागजी (कां) 7056 चंद्र मनोहर बटवाड़ा (भाजपा)
आदर्श नगर रफीक खान (कां)14073 रवि नैय्यर (भाजपा)
मालवीय नगर कालीचरण सराफ (भाजपा) 35494 डॉ. अर्चना शर्मा (कां)
सांगानेर भजनलाल शर्मा (भाजपा) 48081 पुष्पेन्द्र भारद्वाज (कां)
बगरू कैलाश वर्मा (भाजपा) 45250 गंगा देवी, (कां)
बस्सी लक्ष्मण मीणा (कां) 6314 चंद्रमोहन मीणा (भाजपा)
चाकसू रामअवतार बैरवा (भाजपा) 49380 वेदप्रकाश सोलंकी (कां)

छोटे दलों के कट गए वोट, नई पार्टी का उदय
जयपुर, 3 दिसंबर (ब्यूरो): प्रदेश में इस बार निर्दलीय और अन्य दलों से जीतकर आने वाले विधायकों की संख्या में कमी दर्ज हुई है। वर्ष 2018 के चुनावों में निर्दलीयों की संख्या 13 रही थी और अन्य दलों से आने वाले विधायक 14 थे। इसमें बसपा के 6, आरएलपी के 3, माकपा के 2 आरएलडी का एक तथा बीटीपी के 2 विधायक थे। वहीं इस बार कुल 15 अन्य विधायक विधानसभा पहुंचे हैं। जिसमें से 8 निर्दलीय है। इनके अलावा आरएलपी से एक, बसपा से दो और दक्षिणी राजस्थान की नवोदित पार्टी भारतीय आदिवासी पार्टी के 3 विधायक जीते हैं।

जयपुर को छोडक़र सभी संभागों में कमल खिला
जयपुर, 3 दिसंबर (ब्यूरो): संभागवार बात की जाए तो भी भाजपा ने ही बाजी मारी है। मेवाड़, मारवाड़, हाड़ौती और मेवात में एक तरफा कमल के फूल पर वोट पड़े है तो जयपुर में कांग्रेस आगे रही है।
जयपुर संभाग के अन्तर्गत जयपुर जिले में 19 में से 12 सीटों पर भाजपा ने बाजी मारी है। तो अलवर जिले में कांग्रेस भारी पड़ी है। यहां पर 11 में से 6 सीटें कांग्रेस के खाते में गई है। सीकर में भी कांग्रेस आगे रही है। यहां पर 8 में से 5 सीटें कांग्रेस के खाते में गई है। झुंझुनंू जिले में भी कांग्रेस का पलड़ा मजबूत रहा है, यहां पर 7 में से 3 सीटें ही भाजपा के खाते में गई है, जबकि 4 पर कांग्रेस का परचम लहराया है। इससे उलट दौसा जिले में 5 में से 4 सीटें भाजपा की झोली में गई है।
जोधपुर संभाग में जोधपुर जिले में 10 में से 8 भाजपा के खाते में, जालौर जिले में दो भाजपा, दो कांग्रेस और एक निर्दलीय के पास गई है। पाली में 7 में से 5 सीटें भाजपा को मिली है। बाड़मेर में 7 में से 4 भाजपा, दो निर्दलीय तो एक कांग्रेस को मिली है। जैसलमेर जिले में दोनों ही सीटों पर भाजपा का वर्चस्व रहा है। सिरोही जिले में दो सीटें भाजपा को तो एक कांग्रेस को मिली है। खास बात यह रही कि सिरोही से सीएम के सलाहकार संयम लोढ़ा 35 हजार वोटों से हारे है।
उदयपुर संभाग की बात की जाए तो 8 में से 6 सीटें भाजपा के खाते में गई है, जबकि कांग्रेस को 2 मिली है। जबकि राजसमन्द जिले की चारों सीटें भाजपा को मिली है। डूंगरपुर जिले में नवगठित भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी)ने जीत कर सबको चौंकाया है। जिले में 4 में से 2 बीएपी, एक भाजपा और कांग्रेस को मिली है। बांसवाड़ा जिले में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया है। यहां पर 5 में से 4 कांग्रेस और एक पर भाजपा ने बाजी मारी है। प्रतापगढ़ जिले में एक बीएपी तो एक सीट भाजपा के पास गई है।
अजमेर संभाग में अजमेर जिले में 8 में से 7 भाजपा के खाते में गई है तो नागौर जिले में 10 सीटों में से 5 भाजपा, 4 कांगे्रस और एक आरएलपी के खाते में गई है। भीलवाड़ा जिले में कांगे्रस का खाता भी नहीं खुल पाया है। यहां पर 7 में से 6 सीटें भाजपा को और एक निर्दलीय के पास गई है। टोंक जिले में दो भाजपा और दो सीटें कांग्रेस को मिली है।
बीकानेर संभाग में बीकानेर जिले में 7 में से 6 सीटों पर भाजपा ने परचम लहराया है तो एक सीट कांग्रेस को मिली है। श्रीगंगानगर में 5 में से 4 सीटें भाजपा को मिली है। हनुमानगढ़ में 5 में से एक ही सीट भाजपा को मिल पाई है, जबकि तीन कांग्रेस को और एक निर्दलीय के खाते में गई है। चूरू जिले ने इस बार तगड़ा उलटफेर किया है। 6 में से 4 कांग्रेस, एक भाजपा और एक बसपा के खाते में गई है।
भरतपुर संभाग ने भी इस बार चौंकाया है। भरतपुर जिले में 7 में से 5 भाजपा, धौलपुर जिले में एक बसपा और तीन कांग्रेस को मिली है। सवाईमाधोपुर में दो भाजपा और दो कांग्रेस तो करौली में भी दो भाजपा को मिली है।
कोटा संभाग में कोटा जिले में 6 में से 4 भाजपा को, बूंदी में सभी 3 सीटें कांग्रेस को, बारां में सभी 4 सीटें भाजपा को और झालावाड़ जिले में 4 में से 3 सीटें भाजपा को आई है।

धौलपुर, बूंदी में भाजपा, जैसलमेर, प्रतापगढ़, भीलवाड़ा में कांग्रेस का नहीं खुला खाता
राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में भले ही भाजपा ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की है, लेकिन धौलपुर और बूंदी जिलों में भाजपा खाता भी नहीं खोल पाई है। जबकि वर्ष 2018 के चुनावों में धौलपुर में एक तथा बूंदी में 2 सीटों पर भाजपा का कब्जा था। इसी क्रम में प्रतापगढ़, जैसलमेर और भीलवाड़ा ऐसे जिले रहे हैं जहां कांग्रेस का खाता नहीं खुल पाया है। इसमें प्रतापगढ़ में पहले कांग्रेस की दो, जैसलमेर में दो तथा भीलवाड़ा में 2 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा था।

7 अल्पसंख्यकों ने की जीत दर्ज
राज्य विधानसभा में इस बार 7 मुस्लिम अल्पसंख्यक नेता जीतकर सदन का हिस्सा बने हैं। इसमें से 6 विधायक तो कांग्रेस तथा एक निर्दलीय है। जीत दर्ज करने वालों में फतेहपुर से हाकम अली खान, किशनपोल से अमीन कागजी, आदर्श नगर से रफीक खान, अलवर के रामगढ़ से जुबेर खान, मकराना से जाकिर हुसैन गैसावत कांग्रेस पार्टी के विधायक बने हैं। वहीं डीडवाना से युनूस खान निर्दलीय निर्वाचित होकर विधायक बने हैं।

भाजपा का बढ़ा, कांग्रेस का घटा वोट प्रतिशत
विधानसभा चुनावों में भाजपा के वोट प्रतिशत में पिछले बार के मुकाबले 2.41 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वहीं कांग्रेस को इस बार वर्ष 2018 के मुकाबले वोट प्रतिशत में 0.29 फीसदी गिरावट आई है। राज्य में भाजपा को इस बार 41.69 फीसदी वोट मिले है, जबकि पिछली बार 39.28 प्रतिशत वोट शेयर था। वहीं कांग्रेस को पिछली बार 39.82 प्रतिशत वोट मिले थे जो इस बार घटकर 39.53 फीसदी ही रह गए। इसी प्रकार बसपा को पिछली बार 4.08 प्रतिशत वोट मिले थे जो इस बार घटकर 1.82 प्रतिशत ही रह गए।

प्रदेश में दिया कुमारी की सबसे बड़ी जीत, हंसराज पटेल की जीत का अंतर सबसे कम
जयपुर, 3 दिसंबर (भगवान चौधरी): प्रदेश की 199 सीटों के परिणाम रविवार को सामने आए। जिसमें विद्याधर नगर से भाजपा प्रत्याशी दिया कुमारी की सबसे बड़ी जीत रही। उन्होंने कांग्रेस के सीताराम अग्रवाल को 71,368 वोटों से हराया। इसके साथ ही प्रदेश में सर्वाधिक मत अंतर से जीत का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया। वहीं, सबसे कम वोट से जीत का अंतर कोटपुतली में देखने को मिला है। यहां से भाजपा के हंसराज पटेल ने महज 321 वोट से जीत हासिल की है। उन्होंने कांग्रेस के राजेन्द्र यादव (गृह राज्य मंत्री) को हराया है। इसके अलावा एक हजार से कम के आंकड़े से जीतने वालों में कठूमर से भाजपा के रमेश खींची (409), उदयपुरवाटी से कांग्रेस के भगवानाराम सैनी (419), जहाजपुर से भाजपा के गोपीचंद मीना (580), नोहर से कांग्रेस के अमित चाचन (895) और हवामहल से भाजपा के बालमुकुंदाचार्य (974) है।
दिग्गज का घटा वोट बैंक
आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल को आखिरी राउंड में जीत नसीब हुई। बेनीवाल महज 2059 वोट से जीत कर अपनी लाज बचा पाए। इस जीत ने बेनीवाल के भविष्य की लकीर खींच दी है। वहीं, अशोक गहलोत 26,396 वोट से जीते, वसुंधरा राजे 53,193 वोट से जीतीं, सचिन पायलट 29,475 वोट से जीते हैं। जबकि ये तीनों दिग्गज पिछले चुनाव में दुगुने वोटों से जीते थे।
इनकी जीत 50 हजार पार
विधानसभा चुनाव में नौ उम्मीदवार ऐसे रहे जिनकी जीत का अंतर 50 हजार से अधिक वोटों से रहा। इसमें दिया कुमारी का नाम सबसे टॉप पर है। वहीं वसुंधरा राजे भी 50 हजार फ्रेम में सेट हो गई है।
दिया कुमारी – 71,368
राजकुमार रोत – 69,177
मनीष यादव – 64,908
लादू लाल पितलिया – 62,519
लालाराम बैरवा – 59,258
वसुंधरा राजे – 53,193
डॉ. सुरेश धाकड़ – 50,661
डूंगरराम गेदर – 50,459
राज्यवर्धन राठौड़ – 50,167

…जोड़ो जयपुर जिले की 19 सीटें…

सिविल लाइंस
कांग्रेस सरकार में अपने तल्ख बयानों से चर्चा में रहने वाले प्रताप सिंह खाचरियावास को पाला बदलना रास नहीं आया। कभी सचिन पायलट के खास माने जाने वाले खाचरियावास पूरे कार्यकाल में दो बार अलग-अलग विभागों में मंत्री रहे और इस दौरान वो हमेशा सीएम अशोक गहलोत के गुणगान भी गाते रहे। लेकिन जानकार बताते हैं कि प्रताप सिंह का बड़बोलापन ही उनको ले डूबा। जब भाजपा ने गोपाल शर्मा का टिकट फाइनल किया तो प्रताप सिंह ने गोपाल शर्मा के लिए कहा था कौन गोपाल शर्मा मैं नहीं जानता। इसके अलावा जयपुर हैरिटेज मेयर मुनेश गुर्जर से तल्खी और कुछ विवादास्पद खास पार्षदों एवं कार्यकर्ताओं से उनकी नजदीकियां भी खाचरियावास पर भारी पड़ी। इसके साथ ही भाजपा की कुशल रणनीति का ही नतीजा था कि पूर्व प्रत्याशी अरूण चतुर्वेदी की नाराजगी भी दूर होती चली गई और चतुर्वेदी के कार्यकर्ता भी गोपाल शर्मा से जुड़ गए।
बगरू
गंगादेवी से क्षेत्रीय लोगों की नाराजगी उन पर भारी पड़ गई। लेकिन बताया यह भी जाता है कि कुछ खास कार्यकर्ताओं का करप्शन और दलाली की खबरें लगातार सामने आ रही थी, जिसकी तरफ गंगादेवी ने कोई ध्यान नहीं दिया। क्षेत्र के विकास कार्यों की ओर भी गंगादेवी से लोगों को काफी शिकायतें थी। जीते हुए विधायक कैलाश वर्मा पूर्व में वसुंधरा सरकार के समय संसदीय सचिव रह चुके हैं। सूत्र यह भी बताते हैं कि कैलाश वर्मा का टिकट भी वसुंधरा खेमे की तरफ से ही फाइनल हुआ है।
दूदू
जिले के विधानसभा क्षेत्र दूदू से भी कांगे्रस के कद्दावर नेता बाबूलाल नागर की करारी हार हुई है। क्षेत्र के लोगों की माने तो इस बार नागर क्षेत्र से दूर रह कर गहलोत सरकार को संकट से बचाने की जुगत में ही लगे रहे। इसी का खामियाजा उनको भुगतना पड़ा। बिना विकाय कार्यों के दूदू को जिला बनाना भी लोगों को रास नहीं आया। इसके अलावा बाबूलाल का मतदाताओं के प्रति अक्खड़पन भी भारी पड़ गया, जिससे लोगों में नाराजगी बढ़ती चली गई।
आमेर
आमेर से भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष उपनेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया की करीब 10 हजार वोटों से हार भी चौंकाने वाली है। लोगों का मानना है कि पूनिया राजनैतिक गतिविधियों में ज्यादा तल्लीन रहे और इलाके की तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। वो क्षेत्र में न रहकर जयपुर स्थित निवास में ही मिला करते थे, इससे लोगों को उनसे मिलना तक दुभर हो गया। इसके विपरीत कांग्रेस के प्रशांत शर्मा ने काफी पहले से ही इस क्षेत्र में तैयारी शुरू कर दी थी, जिसका लाभ प्रशांत को मिल गया।
मालवीय नगर
पूर्व मंत्री कालीचरण सराफ की जीत इस बार और अधिक मतों से हुई है। इसका एक बड़ा कारण सरकार विरोधी लहर के अलावा कांग्रेस प्रत्याशी अर्चना शर्मा के साथ भीतरघात भी हुआ है। टिकट न मिलने के कारण कांग्रेस के राजीव अरोड़ा और महेश शर्मा की मुखालफत पहले ही उग्र रूप ले चुकी थी। लिहाजा अर्चना का टिकट फाइनल होते ही पूरा चुुनाव प्रचार गुटों में बंटता चला गया। कई पार्षदों और कार्यकर्ताओं ने प्रचार से दूरी बना ली। इसके अलावा अर्चना शर्मा के कुछ ऑडियो और पट्टे बांटने की शिकायतें भी उन पर भारी पड़ गई।
कोटपुतली
मंत्री राजेन्द्र यादव की जीत इस बार भी सुनिश्चित मानी जा रही थी। क्योंकि भाजपा ने इस क्षेत्र से मुकेश गोयल का टिकट काट कर हंसराज पटेल को दिया, गोयल ने निर्दलीय ताल ठोक दी। लेकिन मंत्री के प्रति लोगों में पनप रही नाराजगी को राजेन्द्र यादव भांप नहीं सके और भीतरघात के भरोसे ही रहे। इसके अलावा एनएच-8 के अन्तर्गत आने वाले कोटपुतली क्षेत्र का विकास भी 10 सालों से अटका पड़ा था और यही कारण उन पर भारी पड़ गया।
चौमूं
पिछली दो बार से विधायक रामलाल शर्मा की जीत शुरू से ही मुश्किल लग रही थी। बताया जाता है कि पिछली बार कांग्रेस के निर्दलीय बागी भगवान राम सैनी ने कांग्रेस के काफी वोट काटे थे, लेकिन वो सिक्का इस बार नहीं चला। इसके अलावा कांग्रेस की नई उम्मीदवार डॉ. शिखा बराला की तरफ सभी वर्ग के मतदाताओं का झुकाव भी एक बड़ा कारण था।
विराट नगर
कांग्रेस के इन्द्राज गुर्जर का सचिन पायलट की तरफ झुकाव ही उनकी हार का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। लोगों का मानना है कि पायलट गुट की तरफ होने के कारण क्षेत्र में छोटे स्तर के जनप्रतिनिधि उनके विरोध में होते चले गए। इसके अलावा गुर्जर वोटों के अलावा अन्य किसी वर्ग का सपोर्ट न मिल पाने के कारण भी उनकी हार का एक बड़ा कारण है। कुलदीप धनखड़ की छवि एक दबंग नेता की मानी जाती है और यह उनके लिए सकारात्मक रहा।
फुलेरा
फुलेरा सीट पर निवर्तमान विधायक निर्मल कुमावत के प्रति लोगों की नाराजगी के अलावा विद्याधर चौधरी की मेहनत भी कांग्रेस की जीत का एक बड़ा कारण है। चौधरी ने काफी पहले ही क्षेत्र में पकड़ बनानी शुरू कर दी थी, जिसका परिणाम उनको चुनाव नतीजों में मिला है।
शाहपुरा
यह विधानसभा सीट तीन युवा उम्मीदवारों के बीच मुकाबले को लेकर चर्चा में बनी हुई थी। हालांकि कांग्रेस के जीते विधायक मनीष यादव की सक्रियता इस क्षेत्र में काफी पहले से थी। एक वजह यह भी थी कि भाजपा ने यहां से उम्मीदवार उतारने में काफी देर कर दी और फिर उपेन यादव को मैदान में उतारा। उपेन के खिलाफ युवा वर्ग में पहले ही नाराजगी थी। निर्दलीय आलोक बेनीवाल से लोग नाराज थे, क्योंकि पिछली बार भी वो निर्दलीय जीतकर लोगों में पैठ नहीं बना सके।
चाकसू
चाकसू विधानसभा क्षेत्र के निवर्तमान विधायक वेदप्रकाश सोलंकी सचिन पायलट के कट्टर समर्थक माने जाते हैं। बताया यह भी जाता है कि गहलोत खेमे ने उनका टिकट रुकवाने के लिए एड़ी से चोटी का जोर लगा दिया था। लोगों के अनुसार सोलंकी लगातार गहलोत के विरोध में बयान देते रहते थे और उनका अधिकतर समय राजनैतिक गतिविधियों में ही गुजरता था। सोलंकी के विरोध में कोई बागी तो खड़ा नहीं हुआ, लेकिन लोगों की नाराजगी इतनी अधिक हो गई कि रामअवतार बैरवा को जीतने में कोई खास जोर नहीं लगाना पड़ा।
बस्सी और जमवारामगढ़
सूत्र बताते हैं कि इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों में जातिवाद के फैक्टर ने जमकर काम किया। बस हुआ यूं कि जमवारामगढ़ में भाजपा ने बाजी मारी तो बस्सी की सीट कांग्रेस की झोली में चली गई। जमवारामगढ़ से महेन्द्र मीणा ने एक तरफा जीत हासिल की तो बस्सी की सीट लक्ष्मण मीणा के खाते में गई। लक्ष्मण मीणा पिछली बार निर्दलीय मैदान में उतरे थे, लेकिन इस बार कांग्रेस ने उनको टिकट देकर सही निर्णय लिया।

पार्षदों की भूमिका ने बदले समीकरण
जयपुर, 3 दिसंबर (ब्यूरो): इस बार विधानसभा चुनाव के समीकरण बदलने में हैरिटेज और ग्रेटर नगर निगम के पार्षदों की मुख्य भूमिका रही। पार्षदों की जहां नाराजगी रही, वहां उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा। वहीं, जो उम्मीदवार पार्षदों को साथ लेकर चले उनके सिर पर जीत का सेहरा बंधा है। इसका नमूना आदर्श नगर और किशनपोल में देखने को मिला। यहां के उम्मीदवार रफीक खान और अमीन कागजी ने चुनाव से पहले नाराज पार्षदों को अपने समर्थन में कर लिया। वहीं, मालवीय नगर, सिविल लाइंस, हवामहल, बगरू, झोटवाड़ा और विद्याधर नगर के उम्मीदवारों ने पार्षदों को दरकिनार किया। उनके इस रवैये से नाराज पार्षदों ने समीकरण बिगाड़ दिए। खास बात यह कि इन सीटों पर पार्टी के दबाव में पार्षद साथ तो नजर आए। मगर भीतरघात करने से भी पीछे नहीं रहे। सबसे पहले मालवीय नगर में कांग्रेस पार्षदों के बगावती सुर देखने को मिले। उम्मीदवार अर्चना शर्मा ने पार्षदों की नाराजगी दूर करने के बजाय उन्हें पार्टी से दूर कर दिया। जिसका खामियाजा हार के रूप में सामने आया। इसी तरह सिविल लाइंस उम्मीदवार प्रताप सिंह खाचरियावास की हैरिटेज निगम महापौर को हटाने और कमेटियों के गठन को रोकने के कारण पार्षदों में नाराजगी थी। उनकी निगम में बढ़ती दखलअंदाजी को पार्षदों ने चुनाव में दूर किया। इसी तरह अन्य सीटों पर भी पार्षदों ने समीकरण बदले।
इन्होंने बदला पाला
आदर्श नगर से कांग्रेस पार्षद नीरज अग्रवाल ने चुनाव से कुछ समय पहले भाजपा का दामन थामा था। जबकि उन्हें रफीक खान का नजदीकी माना जाता था। वहीं, तीन साल से नाराज पार्षद उमरदराज को चुनाव के आखिरी समय में रफीक खान ने मना लिया। मतगणना के दौरान दोनों साथ नजर आए।
ग्रेटर नगर निगम के निर्दलीय पार्षद विकास बारेठ और जय वशिष्ठ भाजपा में शामिल हो गए। वहीं, सांगानेर के भाजपा पार्षद दो धड़ों में दिखे। मानसरोवर के अधिंकाश पार्षद पूर्व विधायक अशोक लाहोटी के इशारे पर चुनाव में निष्क्रिय रहे। हालांकि सांसद रामचरण बोहरा गुट के पार्षद चुनाव में सक्रिय रहे। वहीं, सांगानेर के कांग्रेस पार्षदों की करतूतों के कारण भारद्वाज को नुकसान उठाना पड़ा।

दावेदारों का नहीं, कार्यकर्ताओं के जश्न का दिन : अरूण सिंह
-मुख्यमंत्री संसदीय बोर्ड, विधायक दल तय करेगा
-पंजाब केसरी से भाजपा प्रदेश प्रभारी अरूण सिंह एक्सक्लूसिव
जयपुर, 3 दिसंबर (ब्यूरो): राजस्थान में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनने के बाद पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में जश्न के माहौल के बीच राजस्थान प्रभारी अरूण सिंह ने पंजाब केसरी ने जीत पर त्वरित प्रतिक्रिया ली। अरुण सिंह ने इसे पार्टी कार्यकर्ताओं की जीत करार दिया।

प्र. राजस्थान समेत तीन राज्यों में बड़ी जीत पर आपकी प्रतिक्रिया?

उ. देखिए, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व की यह जीत है। उनके मार्गदर्शन की जीत है। देश की जनता का भरोसा उन पर हैं, मोदी पर गरीब, किसान, महिला और युवाओं का भरोसा है। इतना बड़ा भरोसा है तभी इतनी बड़ी जीत मिलती है। हमारा राजस्थान की जनता के प्रति अभिनंदन है। हम आभार व्यक्त करते हैं।

प्र. गहलोत की गारंटियों पर मोदी का चेहरा भारी रहा, अब भाजपा के वादों को पूरा करने की क्या गारंटी है?
उ. यह तो 2014 से ट्रैक रिकॉर्ड देखिए पीएम ने जो कहा, उसे किया और तभी तो लोगों को भरोसा है। भाजपा संस्कारवान कार्यकर्ताओं की पार्टी है। जो वादे किए हैं, वो निभाएंगे।

प्र. राजस्थान में अब भी मुख्यमंत्री के चेहरे पर सस्पेंस बरकरार है, क्या कहेंगे?
उ. मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर हमारा संसदीय बोर्ड तय करेगा और तीस साल पुराना राजस्थान का इतिहास है, वो एक बार फिर रिपीट हुआ है। अभी तो कार्यकर्ता, नेता, सरकार आने के जश्न में डूबे हैं।
…फोटो…3अरुण सिंह…

जमानत भी नहीं बचा पाए भाजपा प्रत्याशी राजवी
– बाहरी और स्थानीय का नारा पड़ा भारी
चित्तौडग़ढ़, 3 नवंबर (विवेक वैष्णव) : सीट से भाजपा के दिग्गज नरपतसिंह राजवी इस बार अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। उन्हें तीसरे नंबर पर जाना पड़ा। साल 1993 व 2003 में वे चित्तौडग़ढ़ सीट का नेतृत्व कर चुके हैं। इस बार राजवी को मात्र 19,913 वोट ही मिले। प्रत्याशी घोषणा के बाद से ही इस सीट पर बाहरी प्रत्याशी का नारा सुर्खियों में रहा। ऐसे में स्थानीय उम्मीदवार आक्या को जनता ने जीत का सेहरा पहना दिया। हालाकि राजवी को जिताने के लिए यूपी के सीए योगी आदित्यनाथ व असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा की चुनावी सभाएं भी कराई गईष। इसके बावजूद राजवी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा।

सुबह 8 बजे से काउंटिंग…11 बजे तक कांग्रेस बढ़त में रही, 12 बजे बाद भाजपा ने बाजी मारी
जयपुर, 3 दिसंबर (ब्यूरो): जेएलएन मार्ग स्थित राजस्थान कॉलेज व कॉमर्स कॉलेज में रविवार को जयपुर जिले की 19 विधानसभा सीटों के वोटों की गणना हुई। सुबह आठ बजे से देर शाम तक काउंटिंग चली। सबसे पहले पोस्टल बैलेट की काउंटिंग की गई। उसके बाद ईवीएम में बंद मतों की गणना हुई। इस दौरान प्रारंभ में कांग्रेस को बढ़त मिली। दोनों काउंटिंग सेंटर्स पर सुबह 11 बजे तक झोटवाड़ा, हवामहल, सिविल लाइंस, कोटपूतली, विराटनगर और जमवारामगढ़ सीटों पर कांग्रेस आगे रही। इन सीटों पर 6 से 8 राउंड तक कांग्रेस प्रत्याशी बढ़त बनाते रहे। मगर दोपहर 12 बजे बाद अचानक पासा पलटा और भाजपा को बढ़त मिलने लगी। दोपहर करीब एक बजे तक दोनों दलों के प्रत्याशियों की हार-जीत की स्थिति साफ होने लगी। जिसे देखकर दूदू, विद्याधरनगर, झोटवाड़ा, बगरू, सांगानेर, चाकसू, हवामहल, कोटपूतली, विराटनगर, सिविल लाइंस और मालवीय नगर के कांग्रेस विधायक प्रत्याशियों ने मैदान छोड़ दिया। वहीं, भाजपा प्रत्याशियों और उनके कार्यकर्ताओं की भीड़ बढऩे लगी। इधर, सोशल मीडिया पर नतीजे वायरल होने के बाद गांधी नगर, बजाज नगर रोड और ओटीएस चौराहा के आस-पास कार्यकर्ताओं ने जमकर पटाखे फोड़े। शाम तक भाजपा को 12 सीटों पर जीत मिली और कांग्रेस 7 पर सिमट गई। जीतने के बाद भाजपा-कांग्रेस प्रत्याशी सीधे मंदिर-मस्जिद पहुंचे और जीत का श्रेय जनता को दिया।
सीएम सलाहकार सबसे पहले हारे
राजस्थान कॉलेज में सबसे पहले दूदू विधानसभा का परिणाम सामने आया। दोपहर 12 बजे तक 13 राउंड तक भाजपा के डॉ. प्रेमचंद बैरवा आगे रहे। यह देखकर कांग्रेस के बाबूलाल नागर (सीएम सलाहकार) नाराज होकर चुपचाप चले गए। जाते-जाते उन्होंने हार का ठीकरा सचिन पायलट पर फोड़ दिया। इसी तरह सांगानेर से पुष्पेंद्र भारद्वाज पहले राउंड से लेकर अंतिम 22वें राउंड तक भजनलाल से पीछे रहे। रूझान देखकर भारद्वाज दस बजे चले गए थे। वहीं, झोटवाड़ा में 8 राउंड तक कांग्रेस के अभिषेक चौधरी साढ़े चार हजार वोटों से आगे रहे। इसके बाद एकाएक भाजपा को वोट प्रतिशत बढऩे लगा और अंत में भाजपा के राज्यवद्र्धन को जीत मिली।
खुशी से फफक पड़े अमीन व हंसराज
किशनपोल के नतीजे सामने आने के बाद विजयी प्रत्याशी अमीन कागजी भावुक हो गए। यह उनकी दूसरी जीत है। वहीं, कोटपूतली से कांग्रेस प्रत्याशी एवं गृह राज्य मंत्री राजेंद्र यादव को भाजपा के हंसराज पटेल ने महज 315 वोट से हराया। जीत की सूचना मिलते ही हंसराज फफक पड़े। इधर, कम मार्जिन से हार को यादव पचा नहीं पाए। उन्होंने तुरंत रिकाउंटिंग करवाई। लेकिन नतीजा नहीं बदला। पटेल ने कहा कि मैंने तीन हजार करोड़ की फर्म को हराया है। जनता के आशीर्वाद से बढक़र कुछ नहीं है।

दिया कुमारी
काउंटिंग के तीन घंटे बाद दिया कुमारी पहुंचीं। उन्होंने कहा कि पहले राउंड से ही बढ़त मिली है। जनता का प्यार और आशीर्वाद है कि 71 हजार से अधिक वोटों से जीत हुई है। जीतने के बाद जयपुर के आराध्य गोविंद देव जी के दर्शन किए।

रफीक खान
दिनभर चली काउंटिंग में रफीक खान ही एक मात्र ऐसे प्रत्याशी रहे जो आखिरी राउंड तक मैदान में टिके रहे। जीत की घोषणा के बाद उन्होंने मीडिया को बताया कि मैं सबको साथ लेकर चलता हूं। कुछ अपने नाराज थे, लेकिन ये हमारा परिवार है जहां रूठना-मनाना चलता रहता है। पिछली बार से अधिक वोटों से जीत मिली है।

कालीचरण सराफ
भाजपा जनता के लिए काम करती है। कांग्रेस के भ्रष्ट तंत्र से जनता परेशान थी। इसलिए भारी बहुमत से जीत मिली है।

बालमुकुंदाचार्य
चारदीवारी को ट्रैफिक मुक्त करेंगे, पर्यटन को बढ़ावा देंगे। कांग्रेस ने षड्यंत्र के तहत 12 हजार से अधिक वोट कम किए। हमारा प्रयास रहेगा उन्हें वापस लाकर बसाना।

गोपाल शर्मा
कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति से जतना त्रस्त थी। मंत्री ने अपनी ही बोर्ड की महापौर के खिलाफ षड्यंत्र रचा। जनता ने सब देखा है, इसलिए अब विकास का साथ दिया है। आम आदमी के साथ पत्रकारों के हितों के लिए काम करूंगा। मैं पहले पत्रकार था, अब पत्रकारों का वकील बन गया हूं।

शिखा ने मारी बाजी
चौमूं से लगातार दो बार विधायक रहे कद्दावर नेता रामलाल शर्मा को हार का सामना करना पड़ा। पहली बार चुनावी मैदान में आई डॉ. शिखा मील बराला ने उन्हें हराया। रामलाल को शुरुआती रूझान में हार नजर आ गई थी। इसलिए वे खामोश नजर आए। वहीं बढ़ते स्कोर से शिखा के कदम मजबूत होते रहे। शिखा ने बताया कि चौमूं में दस साल से विकास नहीं हो रहा। उसी का नतीजा है कि दिग्गज धराशायी हो गए।

बस्सी में लक्ष्मण का डंका
शहर से दूर बस्सी विधानसभा में इस बार फिर लक्ष्मण मीणा का डंका रहा। यह उनकी दूसरी जीत है। हालांकि शुरुआती दौर में भाजपा के चंद्रमोहन आगे रहे। मगर 7 राउंड बाद लक्ष्मण आगे निकल गए और जीत पर जाकर रूके।

जयपुर की सीटें फतेह करने में भाजपा को आया जोर
-भगवा पार्टी जिले की 19 में से 12 सीटें जीती
-7 कांग्रेस की झोली में गई
जयपुर , 3 दिसंबर (ब्यूरो): भाजपा ने जयपुर में उल्लेखनीय जीत हासिल की है। हालांकि भाजपा साल 2013 वाला परिणाम तो नहीं दोहरा पाई, लेकिन 19 में से 12 सीटों पर कब्जा जमाकर राजधानी जयपुर में शानदार प्रदर्शन किया। विद्याधर नगर सीट से भाजपा की दिया कुमारी ने सियासी पारी खेलने के लिए पहली बार जयपुर में कदम रखा और पहली दफा में ही कांग्रेस के सीताराम अग्रवाल को 71 हजार 368 वोटों के भारी भरकम अंतर से हराकर शानदार आगाज किया। मालवीय नगर और सांगानेर में भी भाजपा का जलवा बरकरार रहा। इसके अलावा सबसे अधिक चौंकाने वाला परिणाम सिविल लाइंस का रहा, जहां पर कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाने वाले और दो विभागों के मंत्री रहे प्रताप सिंह खाचरियावास पहली बार चुनाव लड़ रहे गोपाल शर्मा से बड़े अंतर से चुनाव हार बैठे। वहीं दिलचस्प मुकाबला हवामहल सीट में भी रहा, जहां पर नजदीकी मुकाबले में भाजपा के बालमुकुंद आचार्य ने कांग्रेस के आरआर तिवाड़ी को बहुत ही मामूली अंतर से हराया। खास बात यह रही कि उपनेता प्रतिपक्ष और भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया जैसे दिग्गज नेता को भी हार का मुंह देखना पड़ा। पूनिया आमेर सीट से कांग्रेस के प्रशांत शर्मा से लगभग 10 हजार वोटों से चुनाव हारे हैं। वैसे किशनपोल और आदर्श नगर सीट कांग्रेस के खाते में गई है, लेकिन यह कोई चौंकाने वाले नतीजे नहीं है। क्योंकि ये दोनों सीटें पहले ही कांग्रेस के खाते में थी। किशनपोल सीट से अमीन कागजी और आदर्श नगर में कांग्रेस के रफ ीक खान ने बाजी मारी है।
विद्याधर नगर
भाजपा ने इस सीट पर पिछली तीन बार से जीत रहे भाजपा के दिग्गज नेता नरपत सिंह राजवी की जगह राजसंमद सांसद दिया कुमारी को मैदान में उतारा। कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार नहीं बदला और सीताराम अग्रवाल पर ही दांव खेला। कांग्रेस की रणनीति नए उम्मीदवार के सामने पुराने प्रत्याशी को दमदार तरीके से पेश करने की थी, लेकिन सत्तारूढ़ दल का दांव उल्टा पड़ गया। दिया कुमारी नामांकन से पहले ही कांग्रेस पर भारी पड़ती दिखाई दे रही थी। परंपरागत शहरी वोट पहले से भी ज्यादा भाजपा के खाते में गए और मुकाबले में सीताराम अग्रवाल कहीं नहीं ठहर पाए।
आदर्श नगर
इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने पिछले तीन बार के प्रत्याशी रहे अशोक परनामी के स्थान पर हिंदूवादी चेहरे के रूप में रवि नैयर को मैदान में उतारा। नैयर का आदर्श नगर और राजापार्क इलाकों में अच्छा वर्चस्व माना जाता है। साथ ही उनकी गोभक्त के रूप में भी पहचान है। लेकिन भाजपा कांग्रेस के अल्पसंख्यक फार्मूले का तोड़ नहीं ढूंढ़ पाई और सीट गंवा बैठी। वैसे बताया यह भी जाता है कि प्रत्याशी बदलने के कारण भाजपा इस क्षेत्र में भीतरघात का शिकार बन गई। कार्यकर्ताओं ने मन से काम नहीं किया, नतीजन भाजपा ने इस बड़ी सीट को गंवा दिया।
सांगानेर
परिसीमन के पहले और बाद में भी कांग्रेस इस सीट पर कमजोर ही सिद्ध होती जा रही है। इस बार भाजपा ने निवर्तमान विधायक अशोक लाहोटी की जगह प्रदेश महामंत्री भजनलाल शर्मा को मैदान में उतारा। माना जा रहा था कि भजनलाल पर बाहरी होने का ठप्पा उनके विरुद्ध काम करेगा, जिससे कांग्रेस के पुष्पेन्द्र भारद्वाज की राह आसान होगी, लेकिन यह मुद्दा कहीं नहीं दिखाई दिया। इसके अलावा पुष्पेन्द्र ने सांगानेर में अल्पसंख्यक छात्रावास की जमीन आवंटन का वायदा भी किया था और यह मामला भी पुष्पेन्द्र के विरोध में चला गया।
झोटवाड़ा
त्रिकोणीय मुकाबले के चलते यह सीट शुरू से ही चर्चा में बनी हुई थी। कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने इस बार अज्ञात कारणों से चुनाव लडऩे से इनकार कर दिया था। जिसके बाद कांग्रेस, युवा नेता के रूप में एनएसयूआई प्रदेशाध्यक्ष अभिषेक चौधरी को आगे लाई। उधर, भाजपा ने सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को मैदान में उतारा और भाजपा के बागी आशुसिंह सुरपुरा ने ताल ठोककर मुकाबले को रोचक बना दिया। लेकिन सुरपुरा और अभिषेक राज्यवर्धन के आगे कहीं नहीं ठहरे। इसके अलावा लालचंद के कार्यकर्ताओं ने भी अपनी पार्टी का साथ नहीं दिया। बाहरी प्रत्याशी का चेहरा भी कार्यकर्ताओं के गले नहीं उतरा और झोटवाड़ा सीट उनके हाथ से छिटक गई।
हवामहल
शहर की सबसे अधिक चर्चित सीट हवामहल मानी जा रही थी। इस हॉट सीट पर मुकाबला भी दिलचस्प ही देखा गया। जीत-हार का फैसला भी अंतिम राउंड में हुआ। मंत्री महेश जोशी को पार्टी ने इस बार टिकट नहीं दिया, जिसके बाद वरिष्ठ कार्यकर्ता आरआर को तिवारी को मैदान में उतारा गया। भाजपा ने हिंदू कार्ड खेलते हुए बालमुकन्दाचार्य को आगे किया, जिसमें नजदीकी मुकाबले में आचार्य बमुश्किल जीते। इसका सबसे बड़ा कारण आप पार्टी के पप्पू कुरैशी का मैदान से हटना माना जा रहा है। जानकारों के मुताबिक यदि पप्पू कुरैशी मैदान में बने रहते तो तिवारी को एक खास समुदाय के वोट काफी कम मिलते जिससे जीत का अंतर और अधिक होता। हालांकि बताया यह भी जाता है कि पीएम नरेन्द्र मोदी के रोड शो के बाद क्षेत्रीय जनता का कुछ हद तक झुकाव भगवा पार्टी की ओर हो गया और यह फैक्टर काम कर गया।
किशनपोल
यह परंपरागत सीट कांग्रेस के खाते में बरकरार रही, जिसका सबसे बड़ा कारण भाजपा की ओर से कमजोर प्रत्याशी को मैदान में उतारना माना जा रहा हैै। जानकारी के अनुसार यदि तीन बार के विधायक मोहन लाल गुप्ता को फिर से टिकट दिया जाता तो अलग नतीजे सामने आते। इसके अलावा इस जीत की वजह भी वो ही थी जो आदर्श नगर की मानी जा रही है।

विधानसभा अध्यक्ष रहे तीनों बड़े दिग्गजों को मिली हार
जयपुर, 3 दिसंबर (ब्यूरो): इस बार विधानसभा चुनावों के कई नतीजे चौंकाने वाले और रोचक दिखे। तीन बार से विधानसभा अध्यक्ष रहे तीनों बड़े दिग्गजों को हार का सामना करना पड़ा। कुछ चेहरे पार्टी से बगावत कर मैदान में भाग्य आजमाने उतरे तो एक के इनकार करने के बावजूद पार्टी ने उन पर दांव खेला। ऐसे ही विधानसभा चुनाव में मात्र एक वोट से हारने वाले मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी को इस बार भी हार का मुंह देखना पड़ा।
दीपेन्द्र सिंह शेखावत
दीपेन्द्र सिंह शेखावत वर्ष 2008 में कांग्रेस सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रहे। उन्हें इस बार पार्टी ने फिर से श्रीमाधोपुर से उतारा था। हालांकि दीपेन्द्र सिंह ने अपनी उम्र व स्वास्थ्य का हवाला देकर चुनाव लडऩे से इनकार कर अपने बेटे को टिकट देने की वकालत की थी। कांग्रेस पार्टी ने उनकी इस बात को दरकिनार कर उन्हीं पर दांव खेला और उन्हें भाजपा के उम्मीदवार झाबरसिंह खर्रा के सामने 14 हजार 459 मतों से मुंह की खानी पड़ी। दीपेन्द्र सिंह, सचिन पायलट कैंप के माने जाते हैं और वे बगावत के दौर में मानेसर में हुई विधायकों की बाड़ेबंदी में भी पहुंचे थे। एक समय वे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सबसे नजदीकियों में थे।
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कैलाश मेघवाल
वर्ष 2013 में भाजपा सरकार के समय कैलाश चन्द्र मेघवाल विधानसभा अध्यक्ष बने थे। मेघवाल ने शाहपुरा भीलवाड़ा विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी के रूप में करीब 75 हजार मतों से जीत दर्ज कराई थी। इन्हें वसुन्धरा राजे कैंप का माना जाता था, मगर पूर्व में उन्होंने राजे पर ही भ्रष्टïाचार के आरोप लगाकर उनके खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया था। बाद में वे खुलकर पार्टी विरोधी क्रिया-कलाप में शामिल हुए तो भाजपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। मेघवाल ने टिकट की दावेदारी ठोकी, मगर उनकी उम्र और पार्टी विरोधी गतिविधियां बाधा बनीं। बाद में उन्होंने बागी होकर भीलवाड़ा के शाहपुरा से निर्दलीय के रूप में ताल ठोकी तो सीधा मुकाबला तो दूर उन्हें तीसरे स्थान पर जाकर संतोष करना पड़ा। यहां से भाजपा प्रत्याशी लालाराम बैरवा ने जीत दर्ज कराई है।
डॉ. सीपी जोशी
कांग्रेस सरकार ने डॉ. सीपी जोशी को वर्ष 2018 में विधानसभा अध्यक्ष बनाकर इस बार नाथद्वारा विधानसभा सीट से मैदान में उतारा। जोशी को भाजपा प्रत्याशी और पूर्व राजघराने के विश्वराज सिंह मेवाड़ के सामने 7 हजार 504 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। डॉ. जोशी को वर्ष 2008 में इसी सीट से मात्र 1 वोट से हार का मुंह देखना पड़ा था। उस वक्त वे मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे माने जाते थे, मगर हार के चलते रेस से हटना पड़ा। हालांकि पार्टी ने उन्हें लोकसभा चुनाव लड़वाकर संसद में भेजा और केन्द्रीय मंत्रीमंडल में शामिल किया।
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