धौलपुर में कांग्रेस का ब्राम्हण समाज पर एतबार कम हो रहा है।

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धौलपुर में कांग्रेस का ब्राम्हण समाज पर एतबार कम हो रहा है। एक दर्जन से अधिक बार ब्राम्हण समाज की चुनावी मैदान में रही भागीदारी।

धौलपुर 24 अक्टूबर । आजादी के बाद से ब्राम्हण चेहरे पर दांव खेलने वाली देश की सबसे पुरानी पार्टी ने आखिर जिले के ब्राम्हणों से दूरी बना ली है जिससे अब ब्राम्हण समाज का भी इस पार्टी से मन भटकने लगा है। एक दर्जन से अधिक बार जिलें की धौलपुर और राजाखेड़ा विधान सभा सीट से ब्राह्मण प्रत्याशी रहा है लेकिन अब पार्टी का इस समाज पर शायद एतबार कम होने लगा है। धौलपुर विधान सभा गठन के बाद से अब तक सोलह बार हुए चुनाव में तेरह बार ब्राम्हण चेहरे को चुनावी मैदान में उतारा है हालाकि इस दौरान पार्टी ने एक बार वैश्य वर्ग को भी चुनावी मैदान में उतारा था। धौलपुर,राजाखेड़ा , बाड़ी सहित आरक्षित बसेड़ी सीट पर ब्राम्हण मतदाताओं की संख्या काफी है जिसमे धौलपुर और राजखेड़ा में तो ब्राम्हण मतदाता सबसे अधिक हैं इसी के चलते कांग्रेस धौलपुर विधान सभा में ब्राह्मण समाज के प्रत्याशी पर अपना फोकस करती रही।

धौलपुर विधान सभा का गठन वर्ष 1951 में हुआ था उस समय छ वर्ष का कार्यकाल हुआ करता था। गठन के बाद कांग्रेस पार्टी के बैनर तले ब्राह्मण समाज के श्री गोपाल भार्गव को चुनावी मैदान में उतारा था जिन्होंने जीत का स्वाद चखा।

इसके बाद हुए वर्ष 1957 के चुनाव में वैश्य वर्ग के बहादुर सिंह को चुनावी मैदान में उतारकर सीट अपने कब्जे में रखी ,इसके बाद 1962 में हुए चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी ने ब्राम्हण समाज के हरी शंकर हुंडावल को अपना प्रत्याशी बनाया। वर्ष 1965 में राजाखेड़ा विधान सभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने समाज के दामोदर व्यास पर भी दांव लगाया था। वर्ष 1967 के बाद से 2017 के उपचुनाव तक देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने ब्राम्हण समाज के पूर्व मंत्री बनवारी लाल शर्मा पर हार जीत के बाद भी अपना विश्वास नहीं खोया और उनको अपना प्रत्याशी बनाती रही। इस दौरान पार्टी ने 2008 के चुनाव में पूर्व मंत्री के पुत्र अशोक शर्मा को भी अपना हाथ का साथ थमा दिया था लेकिन वो वह यह बाजी जीत नही पाए। 2018 के बाद कांग्रेस ने समाज के किसी को टिकट नहीं दिया इससे नाराज होकर पूर्व मंत्री बनवारी लाल शर्मा के पुत्र अशोक शर्मा ने भाजपा का दामन थाम लिया। हालांकि इस बार भी ब्राम्हण समाज के कई लोगों ने अपनी दावेदारी पेश की लेकिन भाजपा से निष्काशित विधायक शोभा रानी के कांग्रेस का हाथ पकड़ लेने के बाद से एक बार फिर संभावना कम ही नजर आ रही है।

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