वसुन्धरा और मोदी में घमासान

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पुर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के अलावा भाजपा कोई कद्दावर नेता नहीं।

वसुंधरा जनता की पहली पसंद है लेकिन दिल्ली दरबार कि नही

वसुन्धरा का दांव, और सब चित,फेर दिया बीजेपी के मनसूबों पर पानी और साबित किया मैडम ने कि वह औरों की तरह सिर्फ यस सर नहीं

परबतसर उसने शिद्दत से कोशिश की और आसमान मुट्ठी में ले लिया।
जो डींगे हांक रहे थे अब तक वो देखते ही रह गए।

सुना है कि वसुंधरा अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में कामयाब हो गई।इसे कहते हैं वसुन्धरा,जबकि खुद को तीसमारखा बताने वाले देखते ही रह गए और वसुन्धरा बाजी ले उडी। एक तरफ दो बहिनें वसुन्धरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया तथा दूसरी तरफ पीएम मोदी, अमित शाह और जे पी नड्डा। तीनों के अब तक के राजनैतिक कैरियर में ऐसे ठम ठोक देने वाली एक मात्र वसुन्धरा ही रही है।बाकि सभी अब तक तो नतमस्तक ही नजर आए।ये पांचों हैं तो भाजपा के ही लेकिन अब दो बहिनें एक तरफ और ये तीनों दूसरी तरफ। यानि कि अब उत्तर-दक्षिण। और आश्चर्य कि इन दोनों बहनों ने इन तीनों को हाल ही में पानी पिला दिया। पिछले चार साल से मोदी, अमित शाह और जे पी नड्डा ने वसुन्धरा की दुर्गत ही की,लेकिन अब वसुन्धरा ने एक झटके में तीनों का नशा उतार दिया।उधर वसुन्धरा राजे की छोटी बहन यशोधरा राजे सिंधिया, जो कि मध्यप्रदेश से भाजपा की केन्द्रीय मंत्री हैं तथा मध्यप्रदेश में उनका खासा दबदबा है।उनका रिकार्ड है कि वे आज तक एमपी में कोई भी चुनाव नहीं हारी, ने भी इस बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लडने से साफ इन्कार कर दिया जिससे मध्यप्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया है।हालात यह हैं कि ये दोनों बहिनें इन तीनों पर भारी पड़ रही हैं।कहते हैं कि सौ सुनार की और एक लुहार की। हाल ही 27 सितम्बर को वसुन्धरा राजे ने यही कर दिखाया।27 का योग होता है 9, और 9 का अंक मंगल का है। मंगल यानि कि दंगल और 27 सितम्बर को वही हुआ।।अचानक अमित शाह,जे पी नड्डा और भाजपा के महा सचिव बी एल संतोषी जयपुर आ धमके। प्रदेश भाजपाइयों को इसकी कोई पूर्व सूचना नहीं थी। उन्हें भी एक दिन पहले ही पता चला।6 दिन बाद राजस्थान में चुनाव के तहत अचार संहिता लागू हो जाएगी। इसीलिए केन्द्र सरकार के तीनों महारथी राजस्थान में भाजपा उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर देने की तैयारी के तहत आए थे। लेकिन यहां आते ही उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। वसुन्धरा अपने गुट के लोगों को टिकट दिये जाने को लेकर अड गई, और इसके साथ ही खुद के सीएम फेस को लेकर भी।सीएम पद पर अर्जुन राम मेघवाल की भी नजर है तो दूसरी ओर दीया कुमारी की भी। चूंकि दीया 27 सितम्बर को अमित शाह से जयपुर उतरते ही एयरपोर्ट पर ही मिल ली थी।इससे मैडम को भी ताव आ गया और उन्होंने सीएम पद के लिए अपनी ताल ठोक दी। केन्द्र से तीनों महारथी आए थे कुछ करने लेकिन हो गया कुछ और। इधर पीएम मोदी का चितौड आने का कार्यक्रम है, और उसके बाद 5 अक्टूबर को जोधपुर आने का। ऐसे में हालात बेहद पेचीदा हो गए हैं।27 सितम्बर को बैठक यद्यपि पूरे दस घंटे चली। बावजूद कोई रिजल्ट नही निकला।तैश में अमित शाह ने राज्य के सभी भाजपाइयों को नसीहत दे दी कि सिर्फ और सिर्फ मोदी और कमल पर ध्यान रखो।चुनाव इन्ही की अगुवाई में लडा जाएगा। उन्होंने सभी भाजपाइयों को चेतावनी भी दे दी कि आपसी प्रतिस्पर्धा छोड कर काम पर लग जाएं। लेकिन बात नहीं बनी। और निराश होकर उन्हें वापस दिल्ली लौटना पड़ा।अमित शाह ने कहा कि प्रतिस्पर्धा छोड दें।यानि कि प्रदेश भाजपाई अभी प्रतिस्पर्धा में ही उलझे हुए हैं यह बात साफ हो गई, वह भी अमित शाह के मुंह से।

यह सत्य है कि यह पहला मौका है जब चुनाव राजस्थान में हैं लेकिन उसकी कमान केन्द्र के हाथ में है।अमित लौट तो गए लेकिन काफी नाराज होकर। जयपुर आते ही उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि हम पूरी तैयारी के साथ आए हैं लेकिन आप पैनल भी नहीं बना सके ॽ यहां शाह को संघ के लोगों के साथ भी मीटिंग करनी थी लेकिन वह भी नहीं हो सकी। स्थिति यह है कि इस बार संघ भी भाजपा की हां में हां मिला कर नहीं चल रहा।इससे भाजपा में कसमसाहट भी है और इधर 27 सितम्बर को जो कुछ हुआ उसने सभी को ऊहापोह में ला दिया।अमित शाह एयरपोर्ट से सीधे होटल पहुंचे और बगैर विश्राम किये बैठकों का दौर शुरू कर दिया।जब अमित ने पैनल की तैयारी के लिए पूछा तो कोई भी जवाब नहीं दे सका।पता चला कि पैनल बनना शुरू भी नहीं हुआ।वजह यह थी कि प्रदेश भाजपा के सभी पदाधिकारी और कार्यकर्ता मोदी जी की निर्देशित परिवर्तन संकल्प यात्रा में लगे हुए थे। ऐसे में पैनल बनाने का किसी को ध्यान नहीं रहा।इस पर अमित शाह बुरी तरह उखड़ गए और दिल्ली लौट गए।अब राजस्थान के मुद्दे को लेकर दिल्ली में मैराथन बैठकें चल रही हैं। जल्द से जल्द निर्णय भी लेना है। ऐसे में यदि वसुन्धरा की बात मान ली जाती है तो वसु के दुश्मनों के आग लग जाएगी।वे जलभुन कर राख हो जाएंगे और उसका दुष्परिणाम पार्टी को भुगतना पड़ेगा। क्योंकि वसुन्धरा के जो भी दुश्मन हैं वे ऐसी स्थिति में भाजपा की जीत के लिए उत्साह से काम नहीं करेंगे।पहली बार,पहली बार वसुन्धरा ने दिखा दिया है कि इस बार आर या पार। प्रदेश भाजपा के सभी पदाधिकारी और कार्यकर्ता इस समय दिल्ली में हैं और सभी अपना-अपना जोर लगा रहे हैं। फिलहाल जो कुछ हुआ थोड़ा अच्छा और थोडा बुरा हुआ। अच्छा यह कि पूरे देश में केन्द्र को आंख दिखाने भाजपा का ही कोई लीडर मिला तो वह राजस्थान से एक मात्र वसुन्धरा।बाकी प्रदेश और देश के शेष राज्यों से कोई भी भाजपाई केन्द्र के सामने अब तक तन कर खड़ा नहीं हो सका। और बुरा यह कि एक ही पार्टी के होने के बावजूद केन्द्र और वसुंधरा में अब कभी नहीं बनेगी। एक अलग स्थिति और कि वसुंधरा को नाराज करके केन्द्र राजस्थान में भाजपा की मिट्टी पलीद भी नहीं कराना चाहेगा।वह अच्छी तरह जानता है कि वसु छूटी तो कांग्रेस को इसका सबसे ज्यादा फायदा होगा।इसलिए मैडम को छिटका भी नहीं जा सकता। केन्द्र के लिए मैडम वह फांस बन गई है जो राजस्थान के रण में भाजपा को बुरी तरह चुभ सकती है, इसलिए वह वसुन्धरा से हाथ मिलाने को मजबूर है। फिलहाल आज सुबह 10 बजे पीएम। फिलहाल उम्मीदवारों की सूची जहां फंसी हुई है lराजनितिक गलियारो चर्चा ये भी हो रही है कि*वसु ने जन्मदिन पर दो लाख समर्थको से अभिवादन स्वीकार कर ताकत दिखाई थी
-धीरेन्द्र शास्त्री ने भाजपा की दशा और दिशा का रास्ता साफ कर दिया
* पुर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ही होगी सीएम फेस। तीन महिने पहले वसुंधरा राजे ने अपने जन्मोऊत्सव पर सालासर में उन्नीस सांसद और पचपन विधायको सहित करीब दो लाख समर्थको से अभिवादन स्वीकार कर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया था । जबकि उसी दिन जयपुर में भाजपा द्वारा आयोजित धरना प्रदर्शन मे चार पांच हजार कार्यकर्ता की भीड़ ही कर पाए पुनिया। इससे पहले सतीश पूनिया सालासर में ही मध्य प्रदेश के बागेश्वर धाम वाले धीरेन्द्र शास्त्री के चरण स्पर्श कर अपना भविष्य भी पूछ आए थे । सतीश पूनिया को अपने पैरों में देख बागेश्वर धाम वाले धीरेन्द्र शास्त्री गदगद हो गए ।तपाक से उन्होने कहा कि आपकी 51 हजार की चिट्ठी मंजूर हुई है ।सीएम बनने का सपना पाले हो! मार्ग में वसुंधरा और गजेन्द्र रोडा हैंं , लेकिन क्या करें? राजस्थान मेें बीजेपी दो भागों में बंटी हुई है जिसके 13 लोग सीएम बनना चाहते हैं । हनुमान नाम के एक नेता के कारण बीजेपी हारती है और हारती रहेगी ।यह है बागेश्वर धाम वाले धीरेन्द्र शास्त्री और सतीश पूनिया का वीडियो जो काफी वायरल हुआ था।धीरेन्द्र शास्त्री ने जो कुछ सतीश पूनिया को बताया वह कामन सेंस है ।जो भी बदलते राजनीतिक समीकरणों पर गौर करता हो उसके लिए यह बता देना बेहद सरल है ।धीरेन्द्र शास्त्री ने कोई अनोखी बात नही कही । अब चलते हैंं वसुंधरा राजे की राजनीतिक ताकत की खैर-खबर लेने तो वह फिलहाल सब पर भारी है ।न केवल प्रदेश भाजपा के शेष कद्दावर नेताओं पर बल्कि केन्द्र सरकार पर भी ।आठ नौ महिने पहले सतीश पूनिया सही ट्रेक पर चलते-चलते भटक गए । राजेन्द्र राठोड से धोखा खाया और सरदारपुर सीट हार गए ।फिर किरोड़ी लाल मीणा का समर्थन करने उठे थे कि ठहर गए फलस्वरूप किरोड़ी लाल मीणा उनसे नाराज हो गए ।वसुधरा जब सालासर में अपना जन्मदिन कार्यक्रम मना रही थी तब सतीश जयपुर में गहलोत सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे।इसी दौरान उनसे नाराज किरोड़ी लाल मीणा के समर्थकों ने न केवल उनके खिलाफ नारेबाजी की बल्कि मारपीट पर भी
उतर आए ।इससे पहले भी पिछले साल कोटा से बूंदी आते समय सतीश पूनिया की गाडी पर सैकडों उपद्रवियों ने हमला कर दिया था ।सतीश यह क्यों नही समझ पाए कि किरोडी लाल मीणा वसुंधरा राजे के खास हैं तो फिर उनके धरना को समर्थन देने का फैसला सतीश ने किया ही क्यों जबकि वसु और सतीश उत्तर-दक्षिण हैंं । आरोप तो यहां तक उछले कि प्रदर्शन के दौरान सतीश पूनिया की राजीतिक हत्या का षड्यंत्र था जो किरोडी लाल मीणा गुट ने रचा था ।यद्यपि इसमें कोई सच्चाई नही है बल्कि यह पब्लिसिटी स्टंट था । इससे पहले सतीश पूनिया शेखावत के समर्थन में पीछे आ खडे हुए ।अजीब बात है कि सतीश खुद को सीएम पद का प्रबल दावेदार मान रहे थे जबकि केन्द्र सतीश के नाम पर श्योर नही था इसीलिये केन्द्र ने सीएम पद के लिए गजेन्द्र सिंह शेखावत का नाम आगे किया लेकिन गजेन्द्र के प्रति गहलोत के तीखे तेवर देख केन्द्र ठिठक गया ।सतीश पूनिया क्यों नही समझ रहे हैंं कि केन्द्र उन्हें सिर्फ और सिर्फ यूज कर रहा था । और वो खुशफहमी में चले जा रहे हैंं । तय रूप से केन्द्र वसुंधरा राजे को ही सीएम फेस के रूप मे रखेगी और सतीश पूनिया को उसके नीचे रह कर ही काम करना होगा । क्योंकि वसुंधरा के बिना केन्द्र का राजस्थान जीतना तो दूर राजस्थान मेें पांव तक रख पाना असंभव है । लगता है कि इस बार सतीश या तो सीएम पद सरक जाने के कारण कुंठित हैंं अथवा कनफ्यूज्ड हैंं क्योंकि वे कहीं पर भी सही स्टेप नही ले रहे थे ।समझ नही आता कि सतीश धीरेन्द्र शास्त्री जैसों के पास क्यों चले गए जो अपने भाई का भविष्य नही जानता वो आपका भविष्य कैसे बता सकता है? कभी वह कथा वाचन करता है तो कभी आरएसएस की भाषा बोलता है । सन 2024 के विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा की नैया पार लगाना वसुंधरा के बिना नामुमकिन है । सामने मात्र पच्चास दिन बचे हैं, लेकिन आपसी खींचतान अभी तक न केवल बरकरार है बल्कि और बढ गई है । दो महीन पहले भी विधानसभा में भाजपा के कुछ नेताओं ने फिर इस्तीफा प्रकरण का मुद्दा उठाया था समझ नही आता कि अब अगले चुनाव के लिए छह महीने बचे हैं, ऐसे में इस्तीफा मुद्दे पर बात करना क्या अक्लमंदी है जबकि मामला कोर्ट में है । ऐसा लगता है कि विधानसभा अब फिजूल के मुद्दों पर बहस करने के लिए रह गई है । किसी सार्थक विषय पर बात नही । किसी जन हित के मुद्दे पर बहस नही । ये लोग विधानसभा में बैठ कर इस तरह की बेसिर-पैर की हथाइयां क्यों कर रहे हैंं ।प्रदेश भाजपा की स्थिति वैसे ही खराब है ये लोग उसे और हंसी का पात्र बना रहे हैंं । दिल्ली दरबार के चांद सूरज नाराज होने के बावजूद भी राजस्थान कि जनता में वसुंधरा की लोकप्रियता बरकरार है। राजसथान में वसुंधरा के बिना भाजपा पाताल में पहुंच सकती है जिसकी ताकत से अंदाजा लगाया है। वसु के नाम से लाखों लोगों की भीड़ ससटकारे मे हो जाती है जबकि भाजपा द्वारा कई जतन करने के बावजूद भी हजारों की भीड़ एकत्रित करना मुश्किल हो रहा है। जो पिछले चार साल से वसु और सतीश का शक्ति प्रदर्शन नेता व जनता के सामने जीता जागता उदाहरण देखा गया था। समय रहते दिल्ली दरबार वसुंधरा के नाम पर मोहर लगा देता है तो भाजपा सता में आ सकती हैं नहीं तो कांग्रेस सरकार को दुबारा आने से कोई नहीं रोक सकेगा।जिसकी राजनीतिक गलियारों में चर्चा चर्म सीमा पर हैं जो हर किसी की जुबान से सुना जा सकता है।
वहीं दिल्ली दरबार के महारथी रेल मंत्री अश्विनी कुमार वैष्णव का नाम उछालने के लिए भी उनके खाज चल रही है और ये पाली जिले से है।

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