जोधपुर आईआईटी का चार साल में शोध पूरा… अब सर्प का जहर भरेगा घाव

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रोगाणुरोधी-कीटाणुनाशक मरहम जल्द आएगा बाजार में

जोधपुर, 18 सितम्बर : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर के शोधकर्ताओं ने सांप के जहर से एक ऐसा मरहम तैयार किया है, जो न केवल घाव भरने के काम आएगा, बल्कि यह रोगाणुरोधी और कीटाणुनाशक भी है। इस मरहम के लिए पिछले चार साल से चल रहा शोध अब जाकर सफल हुआ है। जल्द ही यह बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध होगा। इसे पेटेंट कराने के लिए ई-फाइल किया गया है।
आईआईटी जोधपुर के बायोसाइंस व बायोइंजीनियरिंग विभाग और स्मार्ट हेल्थकेयर विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुरजीत घोष ने बताया कि एक रोगाणुरोधी पेप्टाइड अणु, एसपी1वी3-1 की संकल्पना को डिजाइन और संश्लेषित किया है, जिसके द्वारा ई. कोली और पी. एरुगिनोसा, निमोनिया और एमआरएसए (मेथिसिलिन-प्रतिरोधी स्टैफिलोकोकस ऑरियस) जैसे ग्राम-पॉजिटिव और ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया को नष्ट किया जा सकता है। यह पेप्टाइड मोलेक्यूल बैक्टीरियल मेम्ब्रेन्स के साथ इंटरऐक्ट करते समय एक हेलिकल संरचना का निर्माण करता है, जिससे बैक्टीरिया को खत्म किया जाता है। विभिन्न अध्ययनों में पेप्टाइड मोलेक्यूल को गैर विषैले की श्रेणी में रखा गया है। म्यूरिन मॉडल में इस पेप्टाइड को शीघ्र घाव भरने और एमआरएसए द्वारा शल्य चिकित्सा के बाद घाव पर संक्रमण को रोकने में भी मददगार पाया गया।
जहर का जोखिम खत्म, गुण आएंगे काम
इस डिजाइन रणनीति में प्रमुख लक्ष्य सांप के जहर के रोगाणुरोधी गुण को खोए बिना उसके जहर से होने वाले जोखिम को कम करना है, इसलिए सांप के जहर के पेप्टाइड को छोटा कर दिया और सांप के जहर के जहरीले हिस्से को हटा दिया है। इसके अलावा एन-टर्मिनस पर हेलिकल शॉर्ट पेप्टाइड को जोड़ दिया, ताकि जीवाणु कोशिका के अंदर हमारे नए डिजाइन किए गए उपचार को आसानी से प्रवेश कराया जा सके। यह शोध दो प्रमुख समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। पहला, इस पेप्टाइड्स की मेम्ब्रेनोलिटिक क्षमता गैर-विशिष्ट प्रकृति बैक्टीरिया को इसके खिलाफ प्रतिरोध उत्पन्न करने का बहुत कम मौका देती है। दूसरा, इसमें गतिविधि का एक व्यापक स्पेक्ट्रम है यानी, यह अच्छी जैव अनुकूलता को बनाए रखते हुए ई. कोली, पी. एरुगिनोसा, के. निमोनिया और एमआरएसए जैसे ग्राम-नकारात्मक और ग्राम-पॉजिटिव दोनों को प्रभावी ढंग से मार सकता है।

बैक्टीरियल एंटीबायोटिक प्रतिरोध वैश्विक खतरा
प्रोफेसर डॉ. सुरजीत घोष उन्होंने बताया कि बैक्टीरियल एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक व्यापक वैश्विक खतरा है। इससे निपटने के लिए वैज्ञानिकों को दुनियाभर में समाधान खोजना होगा। अधिकांश प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रोगाणुरोधी पेप्टाइड्स में अलग-अलग हाइड्रोफोबिसिटी और चार्ज संरचनाएं होती हैं, जो उनकी शक्तिशाली बैक्टीरिया नष्ट करने की क्षमता के बावजूद मानव चिकित्सीय अणुओं के रूप में उनके उपयोग को काफी हद तक सीमित करती है।
शोध टीम के चेहरे
दवा को विकसित करने वाली टीम में आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ता प्रो. डॉ. सुरजीत घोष के साथ डॉ. साम्या सेन, रामकमल समत, डॉ. मौमिता जश, सत्यजीत घोष, राजशेखर रॉय, नबनिता मुखर्जी, सुरोजीत घोष और डॉ. जयिता सरकार शामिल रहीं।

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