सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 137: आदेश 21 नियम 97 व 98 के प्रावधान

Share:-

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 21 का नाम डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 97 एवं 98 पर प्रकाश डाला जा रहा है।

नियम-97 स्थावर सम्पत्ति पर कब्जा करने में प्रतिरोध या बाधा

(1) जहां स्थावर सम्पत्ति के कब्जे की डिक्री के धारक का या डिक्री के निष्पादन में विक्रय की गई ऐसी किसी सम्पत्ति के क्रेता का ऐसी सम्पत्ति पर कब्जा अभिप्राप्त करने में किसी व्यक्ति द्वारा प्रतिरोध किया जाता है या उसे बाधा डाली जाती है वहां वह ऐसे प्रतिरोध या बाधा का परिवाद करते हुए आवेदन न्यायालय से कर सकेगा।

(2) जहां कोई आवेदन उपनियम (1) के अधीन किया जाता है वहां न्यायालय उस आवेदन पर न्यायनिर्णयन (इसमें) अन्तर्विष्ट उपबंधों के अनुसार करने के लिए अग्रसर होगा। नियम-98 न्यायनिर्णय के पश्चात् आदेश 21 नियम 101 में निर्दिष्ट प्रश्नों के अवधारण पर, न्यायालय ऐसे अवधारण के अनुसार और उपनियम (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए- (क) आवेदन को मंजूर करते हुए और यह निदेश देते हुए कि आवेदक को सम्पत्ति का कब्जा दे दिया जाए या आवेदन को खारिज करते हुए, आदेश करेगा; या

(ख) ऐसा अन्य आदेश पारित करेगा जो वह मामले की परिस्थितियों में ठीक समझे।

(2) जहां ऐसे अवधारण पर, न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि निर्णीतऋणी उसके उकसाने पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से या किसी अन्तरिती द्वारा, उस दशा में जिसमें ऐसा अन्तरण वाद या निष्पादन की कार्यवाही के लम्बित रहने के दौरान किया गया था, प्रतिरोध किया गया था या बाधा डाली गई थी वहां वह निदेश देगा कि आवेदक को सम्पत्ति पर कब्जा दिलाया जाए और जहां इस पर भी कब्ज़ा अभिप्राप्त करने में आवेदक का प्रतिरोध किया जाता है या उसे बाचा डाली जाती है वहां न्यायालय निर्णीतऋणी को या उसके उकसाने पर या उसकी ओर से कार्य करने वाले व्यक्ति को ऐसी अवधि के लिए, जो तीस दिन तक की हो सकेगी, सिविल कारागार में निरुद्ध किए जाने का आदेश भी आवेदक की प्रेरणा पर दे सकेगा।

क्रेता पहले नियम 95 या 96 के अधीन निष्पादन के रूप में न्यायालय को आवेदन करेगा। इस आवेदन में बाधा डालने वाले किसी व्यक्ति विशेष का उल्लेख नहीं होना चाहिए। यदि इन नियमों के अधीन निष्पादन की प्रक्रिया का प्रतिरोध किया जाता है, तब इस नियम 97 के अधीन आवेदन करना चाहिये। यह नियम केवल उस सम्पत्ति को लागू होता है, जो कि एक डिक्री या न्यायालय नीलाम को विषय सामग्री है और जो सम्पत्ति निजी रूप से निर्णीत-ऋणी द्वारा अन्तरित कर दी गई, उस के बारे में यह नियम लागू नहीं होगा।

इस नियम के अधीन केवल स्थावर सम्पत्ति के आधिपत्य को डिक्री का धारक या ऐसी सम्पत्ति को न्यायालय-नीलाम का क्रेता ही कार्यवाही कर सकता है। जब डिक्रोदार या क्रेता बाधा डालने की शिकायत करता है, तो न्यायालय को उस बाधा डालने वाले व्यक्ति को सूचना देकर उसके दावे को जाँच करनी चाहिये और उसे संक्षेप में ही बल प्रयोग द्वारा बेदखल नहीं करना चाहिये। घोषणात्मक एवं सम्पत्ति के कब्जे हेतु न्यायालय ने एक पक्षीय डिक्री पारित की। वादग्रस्त सम्पत्ति का हक बताने वाले व्यक्ति ने कार्यवाही में प्रतिवादी बनने हेतु प्रार्थना पत्र पेश किया। उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि चूंकि ऐसा पक्षकार दावा (Suit) में पक्षकार नहीं है इसलिए न्यायालय को डिक्री उस पर प्रभावी नहीं। आवश्यकता पड़ने पर ऐसे व्यक्ति आदेश 21 नियम 97 और 99 में न्यायालय में आवेदन पत्र प्रस्तुत करें। एक वाद में न्यायालय ने अचल सम्पत्ति के कब्जे की प्राप्ति हेतु डिक्री पारित की। यदि तीसरा पक्षकार निष्पादन न्यायालय में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करता है कि यह डिक्री से बाध्य नहीं है एवं डिक्री में अन्तवर्तित सम्पत्ति पर कब्जा है, ऐसा व्यक्ति आदेश 21 नियम 97 में प्रयुक्त शब्द कोई व्यक्ति में शामिल माना जायेगा एवं उसके प्रार्थना पत्र को आदेश 21 नियम 97 सपठित नियम 98, 101, 102 एवं 103 के अनुसार निर्णीत किया जायेगा।

स्वत्वाधिकार (टाइटिल/हक) का प्रश्न- जहां आदेश 21, नियम 92 में बेदखली के आवेदन में विपक्षी द्वारा स्वत्वाधिकार का प्रश्न उठाया जाता है, तो न्यायालय उस आवेदन को स्वीकार करने से पहले उस प्रश्न का निर्णय कर सकता है। 1976 के संशोधन का एक महत्वपूर्ण परिवर्तन यह है कि डिक्रीदार अब भी अलग से वाद ला सकता है, परन्तु यदि वह नियम 97 में कार्यवाही करना चाहता है, तो वह वाद में नियम 103 के अनुसार वाद नहीं ला सकेगा।

पर-व्यक्ति द्वारा आवेदन- एक पर व्यक्ति, जो डिक्री से बाध्य नहीं है, स्थावर सम्पत्ति में अपने अधिकार की रक्षा के लिए, अपने को कब्जा होन किए जाने से पहले आदेश 21, नियम 97 के अधीन या धारा 151 के अधीन वैकल्पिक रूप से आवेदन कर सकता है, जो चलने योग्य है। यह न्ययालय का कर्तव्य है कि वह देखे कि उसकी (न्यायालय को) कार्यवाही किसी को हानि नहीं पहुँचावे। किसी दी गई परिस्थिति यदि अन्तर्निहित शक्ति का प्रयोग न्यायालय द्वारा अपनी शक्ति को परिवर्तित करने के लिए नहीं किया जाता है तो इससे एक सही व्यक्ति पर अन्याय को देरो सगने को सुविधा मिलेगी।

जहाँ कोई व्यक्ति प्रस्तगत सम्पत्ति के सवत्व को घोषणा करने के लिए अलग से वाद संस्थित करता है और उस वाद को खारिज कर दिया जाता है, तो यह आदेश 21, नियम 97 के अधीन एतराज नहीं उठा सकता।

विनिर्दिष्ट अनुपालना के वाद में पर- व्यक्ति का आदेश 1 नियम 10 के अधीन पक्षकार बनने का आवेदन खारिज होने के पश्चात् ऐसा पर-व्यक्ति आदेश 21 नियम 97 व 101 के अधीन आपत्तियाँ नहीं चला सकता। बन्धकदार और क्रेता बंधकदार ने दावा किया और मोचन के लिए डिक्री प्राप्त कर ली। विवाद के लम्बित रहते समय, बंधकिती ने उस सम्पत्ति का अन्तरण कर दिया। क्रेता ने आदेश 21, नियन 97 के अधीन बंधकदार को कब्जा देने के बारे में एक एतराज उठाया कि उसने स्वत्व प्राप्त किया है और वह बंधकदार (निर्णीत-ऋणी) का हित प्रतिनिधि नहीं है। अभिनिर्धारित कि यह एतराज चलने योग्य नहीं है। कोई व्यक्ति एक हित को अपने द्वारा धारित हित से अधिक अन्तरित नहीं कर सकता। इसके अलावा इस मामले में वादाधीन का सिद्धान्त लागू होता है। बंधकदार का मोचन का बाद उस समय लम्बित था, जब कि अन्तरण किया गया और उस वाद में प्राप्त डिक्रो के प्राप्त फल को बंधकिती द्वारा वादाधीन होते हुए अन्तरण द्वारा पराजित नहीं किया जा सकता। प्रतिरोध किया जाता है या उसमें बाधा डाली जाती है- आदेश 21, नियम 97-इस पद का अर्थ यह नहीं है कि कब्जेदार द्वारा भौतिक प्रतिविरोध किया या बाधा डाली जाए या बल का प्रयोग किया जाए- कब्जा देने के सम्बन्ध में आपत्ति करने और निष्पादन न्यायालय के आवेदन करने से हो उक्त प्रतिविरोध किया गया या बाधा दो गई मान ली जाएगी।

नियम 97 अनुज्ञापक – आदेश 21 के नियम 97 का उपबंध अनुज्ञापक है न कि आज्ञापक और निष्पादन न्यायालय डिक्रीधारी को इस बात के लिए विवश नहीं कर सकता कि यह उक्त नियम के अधीन आवेदन करे और वे कब्जे को डिक्री से असंबद्ध व्यक्ति को निष्पादन न्यायालय में आवेदन करने को कोई विधिक स्थिति प्राप्त नहीं है।

आदेश अपीलनीय [सिविल प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1976 द्वारा यथा-संशोधित आदेश 21, नियम 97 (सपठित पुराना नियम 103) एक मामले में कहा गया है कि यदि निष्पादनकारी न्यायालय द्वारा 1 फरवरी, 1977 के पश्चात् आदेश 21, नियम 97 के अधीन किसी आवेदन का, जो उस तारीख को लंबित था, निपटारा करते हुए आदेश पारित किया जाता है तो निष्पादनकारी न्यायालय द्वारा पारित आदेश संशोधित संहिता के उपबन्धों के अधीन अपीलीय है और व्यथित पक्षकार को संहिता के उपबंधों के अधीन जैसा कि संहिता संशोधित किए जाने के पहले थी, वाद फाइल करने का कोई अधिकार नहीं हैं।

पुलिस सह्ययता का प्रश्न पुलिस सहायता के लिए आवेदन सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21, नियम 97 के अर्थान्तर्गत निष्पादन हेतु आवेदन नहीं है। यदि ऐसे व्यक्तियों के, जिनके अधिभोग में परिसर है, आचरण के कारण पुलिस सहायता के बिना डिक्री का निष्पादन नहीं कराया जा सकता है, तो डिक्रीधारक कारण बताते हुए ऐसी सहायता दिये जाने के लिए न्यायालय को आवेदन कर सकता है।

पर-व्यक्ति द्वारा बेकब्जा होने के बाद नियम 100 के अधीन आवेदन- (आदेश 21, नियम 97, 99, 101 और 103) डिक्री के निष्पादन का विरोध करने वाले पर व्यक्ति को, कब्जा किए जाने से पूर्व, अपने अभिकथित अधिकार या हक का निष्पादन-न्यायालय द्वारा अन्वेषण किए जाने का दावा करने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसा परव्यक्ति बेकब्जा किए जाने के पश्चात् आदेश 21 के नियम 100 के अधीन जांच के लिए आवेदन कर सकता है-चूंकि आदेश 21, नियम 97 डिक्रीधारक नीलामकर्ता के फायदे के लिए मात्र समर्थनकारी उपबंध है, अतः उसे उक्त उपबंध के अधीन आवेदन करने के लिए परोक्ष रूप से भी विवश नहीं किया जा सकता-वह इसके विपरीत कब्जे के लिए नए वारंट के लिए आवेदन कर सकता है।

आदेश 21, नियम 97 का निर्वचन- यदि प्रश्नगत सम्पत्ति पर जिसका कब्जा डिक्री के अधीन डिक्रीदार या नीलामक्रेता को दिलाया जाना है, किसी अन्य पक्षकार कर, जो न तो निर्णय ऋणी है और न डिक्री से अन्यथा आबद्ध है, करता है और यह कब्जा देने से इन्कार करता है तो निष्पादन न्यायालय को ऐसे कब्जेदार-अन्य पक्षकार को बेदखल करने और डिक्रीदार को कब्जा दिलाने को अधिकारिता प्राप्त नहीं है किन्तु यदि डिक्रीदार के आवेदन पर न्यायालय यह अभिनिधर्धारित करे कि ऐसा अन्य पक्षकार डिक्री से आबद्ध है तो निश्चय हो वह ऐसे अन्य पक्षकार को बेदखल करके डिक्रीदार आदि को सम्पति का कब्जा दिला सकता है।

निर्णीत-ऋणी के निमित कब्जेदार की स्थिति आदेश 21 नियम 97 सपठित नियम 99 स्थावर संपत्ति से बेदखली को डिक्रों से केवल वही व्यक्ति आबद्ध नहीं होता है जो आवश्यक रूप में निर्णीत- ऋणो हो उससे वह व्यक्ति भी आबद्ध होता है जिसका कब्जा निणात ऋणों के निमित होता है- निर्णीत ऋणी के निमित कब्जा रखने वाले व्यक्ति को निर्णीत-ऋणी से अधिक संरक्षण प्राप्त नहीं हो सकता। आदेश 21 नियम 97 सीपीसी में वर्णित कोई व्यक्ति न केवल तृतीय पक्ष और अनजान को समाहित करता है बल्कि इसमें निर्णीत ऋणो भी शामिल है। किन्तु सम्पत्ति को पहचान को आपत्ति मान्य नहीं

परव्यक्ति द्वारा प्रतिरोध (आदेश 21 नियम 97 और 95) नीलामी क्रेता को कब्जे के परिदान का अपने ही अधिकार से करने का दावा करने वाले परव्यक्ति द्वारा प्रतिरोध किया जाना। उक्त स्थिति में नीलामी क्रेता के लिये दो उपचार खुले हैं, अर्थात् वह या तो उस व्यक्ति के विरुद्ध कब्जे के लिये नियमित वाद चला सकता है या उक्त आदेश 21 के नियम 97 के अधीन आवेदन कर सकता है किन्तु वह ऐसा आवेदन करने के लिए आबद्ध नहीं है, किन्तु न्यायालय प्रथमदृष्टया या साक्ष्य के आधार पर समाधान कर सकता है कि कब्जे के परिदान का विरोध करने वाला व्यक्ति संपत्ति को निर्णीत-ऋणो को ओर से धारण किये है या अपने अधिकार से। यदि ऐसे परव्यक्ति का दावा प्रथमदृष्टया सरोकार्य और स‌द्भावपूर्ण न हो, बल्कि सारहीन हो तो आदेश 21 नियम 95 के अधीन कब्जे के परिदान के लिए द्वितीय वारण्ट जारी किया जा सकता है, अन्यथा नहीं।

एक परव्यक्ति (तृतीय पक्षकार) अपने आधिपत्य को केवल एक स्वंतत्र वाद लाकर रक्षित कर सकता है, जिसमें उसे अस्थायी व्यादेश मांगते हुए एक सुदृढ़ प्रारम्भिक दृष्टया मामला बनाना होगा, जो यह दर्शित करे कि उसका आधिपत्य का अधिकार निर्णीत ऋण से स्वतंत्र है। आदेश 21, नियम 100 में परव्यक्ति को प्रेरणा से उसके आधिपत्य के बारे में जांच उसके आधिपत्य होन हो जाने पर हो को जाना अपेक्षित है।

निष्पादन में तृतीय-पक्षकार (परव्यक्ति) द्वारा बाधा डालना- ऐसी स्थिति में डिक्रीदार के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह आदेश 21, नियम 97 के अधीन आवेदन पेश करे। निष्पादन के बारे में आक्षेप न्यायालय की शक्तियाँ – ऐसे आक्षेप का निर्णय करते समय वाद को पूरी प्रक्रिया को नये सिरे के अनुसरण करने को आवश्यकता नहीं है। बाधाधाकर्ता (Obstructionist) कब्जे का अपना स्वतंत्र अधिकार स्थापित नहीं कर सका, फिर भी वह निष्पादन का इस आधार पर प्रतिरोध कर सकता है कि निष्पादनाधीन डिको अकृत (शून्य) है। निष्पादन में पूर्व न्याय जब लागू नहीं एक डिक्री के निष्पादन में आदेश 21 के नियम 97 के अधीन आवेदन देश किया गया, जिस पर न्यायालय ने आदेश पारित कर दिया। यदि ऐसा आदेश गुणावगुण के आधार पर पारित किया जाता है, तो वह पूर्व-न्याय के रूप में लागू होगा। परन्तु जहां नियन 97 के अधीन आवेदन वापस लिये जाने पर खारिज कर दिया गया, तो यह आदेश पूर्व न्याय के रूप में लागू नहीं होगा और दूसरा आवेदन वर्जित नहीं होगा।

आदेश 23 का नियम । भी यहां लागू नहीं होगा। पर व्यक्ति द्वारा आक्षेप डिक्री की विषय सामग्री के रूप में एक परिसर से हटाये जाने के बाद ही कोई व्यक्ति (निर्णीत-ऋणी के अलावा) अपने को कब्जा-हीन करने की शिकायत करते हुए एतराज करता है, तो ऐसे एतराज संधारणीय (चलने योग्य) हैं। यदि तृतीय पक्षकार के दावे का अन्तिम निर्णय करने तक निष्पादन न्यायालय अपने हाथ (कार्यवाही) रोकता है, तो इससे दिकीदार को लगातार बेकार दावे फाइल करने के कारण अपने कब्जे से बंचित रहता होगा।

तृतीय पक्षकार (पर व्यक्ति) द्वारा आवेदन एक विवादस्पद प्रश्न क्या आदेश 21, नियम 97 के अधीन डिक्रीदार/नीलाम क्रेता के अलावा अन्य (तृतीय) पक्षकार द्वारा आवेदन सक्षम है। यह प्रश्न विवादास्पद रहा है।

(1) सिकिम उच्च न्यायालय के अनुसार, ऐसा आवेदन सक्षम है, क्योंकि जहाँ अधिकार है, वहाँ उपचार भी होगा, और किसी पक्षकार को न्यायालय में जाने के लिए समर्थ बनाने वाले किसी स्पष्ट उपबंध के अभाव में निष्पक्षता पूर्वक यह दर्शित नहीं होता कि-कोई पक्षकार अपने अधिकार को लागू करवाने के लिए न्यायालय को निवेदन नहीं कर सकता। इससे विपरीत मत मध्य प्रदेश तथा राजस्थान उच्च न्यायालयों का है कि-ऐसा आवेदन अनुज्ञेय नहीं है। मध्य प्रदेश-मत के अनुसार तृतीय पक्षकार एक स्वतंत्र वाद ला सकता है, जिसमें स्वत्व की घोषणा चाही जा सकती है और उसके कब्जे की रक्षा के लिए अस्थायी व्यादेश की मांग की जा सकती है, परन्तु आदेश 21. नियम 97 लागू नहीं होता, जो अनुज्ञेय (Permissive) है न कि आज्ञापक। डिकीदार अपनी इच्छा के विरुद्ध इसका सहारा लेने के लिए बाध्य नहीं है। जब डिक्रीदार या नीलाम-क्रेता आधिपत्य प्राप्त करने के लिए आवेदन करता है, तो किसी तृतीय पक्षकार के स्वत्व या आधिपत्य के बारे में जांच करना किसी भी दर पर उसकी (डिक्रीदार / नीलामकर्ता की) प्रेरणा पर आदेश 21 के नियम 35 और 36 या नियम 97 के अधीन अनुध्यात नहीं है (चाही नहीं गई है) इसके बाद में जब डिक्रीदार या नीलाम-क्रेता को कब्जा प्राप्त करने में बाधा या संपर्ष का सामना करना पड़ता है, तो उसके सामने कई विकल्पों में से एक नियम 92 के अधीन आवेदन करना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *