लोक अदालत के पास मोबाइल टॉवर की स्थापना से संबंधित विवादों पर फैसला करने का कोई क्षेत्राधिकार नहीं, राजस्थान हाईकोर्ट ने रिलायंस जियो को राहत दी

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राजस्थान हाईकोर्ट ने गुरुवार को स्थायी लोक अदालत, जयपुर के एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक मोबाइल टावर को जब्त करने और उसे 15 दिनों के भीतर नष्ट करने का निर्देश जारी दिया गया था। हाईकोर्ट ने आदेश को इस इस आधार पर रद्द कर दिया कि स्थायी लोक अदालत के पास ऐसे मामलों पर फैसला देने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है क्योंकि यह कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 22 ए (बी) के तहत ‘सार्वजनिक उपयोगिता सेवा’ की परिभाषा में शामिल नहीं है।

जस्टिस अनूप कुमार ढांड की सिंगल जज बेंच ने कहा,

“सार्वजनिक उपयोगिता सेवा” की परिभाषा, पटना हाईकोर्ट और पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के निर्णयों के को देखने के बाद इस न्यायालय का मानना है कि मोबाइल टावर की स्थापना से संबंधित विवाद “सार्वजनिक उपयोगिता सेवा” परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है, जैसा कि 1987 के अधिनियम की धारा 22ए(बी) के तहत परिभाषित है, इसलिए, पीएलए (स्थायी लोक अदालत) के पास ऐसे मामलों पर निर्णय लेने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है और पीएलए ऐसी शिकायतों पर विचार नहीं कर सकता है।
याचिकाकर्ता (रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड) ने स्थायी लोक अदालत (पीएलए), जयपुर मेट्रोपॉलिटन द्वारा पारित 29 मई, 2023 के आदेश को चुनौती दी है, जिसके तहत जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) के उपायुक्त और प्रवर्तन अधिकारी को एक निर्देश जारी किया गया था कि संबंधित साइट पर स्थापित मोबाइल टावर को जब्त कर 15 दिनों के भीतर उसे नष्ट कर दे और उपरोक्त प्रक्रिया में हुए खर्च की राशि याचिकाकर्ता से वसूल करे।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता-कंपनी द्वारा वर्ष 2014 में साइट पर एक मोबाइल टावर स्थापित किया गया था और 8 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद, प्रतिवादी नंबर एक ने कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 (1987 का अधिनियम) की धारा 22 सी के तहत इसे हटाने के लिए शिकायत दर्ज की थी।

याचिकाकर्ता द्वारा आगे प्रस्तुत किया गया कि प्रतिवादी नंबर 1 ने शहरी विकास और आवास विभाग द्वारा जारी 06 फरवरी, 2017 के आदेश के खंड 15 (4) के अनुसार जिला दूरसंचार समिति से संपर्क किया। यह तर्क दिया गया कि जब प्रतिवादी नंबर एक ने पहले से ही वैकल्पिक उपाय का लाभ उठाया था, तो उसके पास 1987 के अधिनियम की धारा 22 सी के तहत शिकायत दर्ज करने का कोई कारण और अवसर उपलब्ध नहीं था।

यह प्रस्तुत किया गया था कि प्रतिवादी नंबर एक द्वारा दायर की गई उपरोक्त शिकायत पीएलए के समक्ष विचारणीय नहीं थी क्योंकि शिकायत में शामिल मुद्दा ‘सार्वजनिक उपयोगिता सेवा’ के दायरे में नहीं आता है, जैसा कि 1987 के अधिनियम की धारा 22 ए (बी) के तहत परिभाषित किया गया है।

दूसरी ओर, प्रतिवादियों की ओर से पेश वकील ने कहा कि जेडीए की ओर से याचिकाकर्ता को प्रतिवादी नंबर एक की भूमि पर टावर स्थापित करने की कोई अनुमति नहीं दी गई थी।

आगे प्रस्तुत किया गया कि इस संबंध में अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करते समय एक विशिष्ट शर्त रखी गई थी कि यदि कोई शिकायत या कोई प्रतिकूल स्थिति पाई जाती है तो जेडीए याचिकाकर्ता से वसूले जाने वाले व्यय के साथ मोबाइल टावर को हटाने के संबंध में निर्णय लेगा।

न्यायालय के समक्ष विचार के लिए निम्नलिखित मुद्दे थे-

-क्या स्थायी लोक अदालत के पास मोबाइल टावर की स्थापना से संबंधित विवाद का फैसला करने का अधिकार क्षेत्र है?

-क्या मोबाइल टावर की स्थापना या उसे हटाना कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 22ए (बी) के तहत परिभाषित ‘सार्वजनिक उपयोगिता सेवा’ की परिभाषा के अंतर्गत आता है?

-न्यायालय ने कहा कि 1987 के अधिनियम की धारा 22बी(1) के तहत स्थापित पीएलए को केवल ‘सार्वजनिक उपयोगिता सेवा’ के संबंध में अधिकार क्षेत्र का उपयोग करना है और मोबाइल टावर की स्थापना के संबंध में विवाद सार्वजनिक उपयोगिता सेवा’ ‘की परिभाषाओं के अंतर्गत नहीं आता है।

न्यायालय ने मेसर्स एसेंड टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड बनाम अजय कुमार और अन्य एआईआर 2022 पटना 179 मामले में पटना हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि मोबाइल टावर की स्थापना से संबंधित विवाद सार्वजनिक उपयोगिता सेवा की परिभाषा में शामिल नहीं है, जैसा कि 1987 के अधिनियम की धारा 22 ए (बी) के तहत परिभाषित किया गया है।

न्यायालय ने फूल कौर बनाम स्थायी लोक अदालत, गुड़गांव, हरियाणा और अन्य 2011 एससीसी ऑनलाइन पी एंड एच 9547 और मैसर्स भारती इंफ्रास्ट्रक्चर वेंचर्स लिमिटेड और अन्य स्थायी लोक अदालत और अन्य [सीडब्ल्यूपी नंबर 14658/2013] में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसलों पर भरोसा जताया।

न्यायालय ने माना कि मोबाइल टावर की स्थापना से संबंधित विवाद 1987 के अधिनियम की धारा 22 ए (बी) के तहत ‘सार्वजनिक उपयोगिता सेवा’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है। इस प्रकार, न्यायालय ने स्थायी लोक अदालत, जयपुर की ओर से पारित आदेश को रद्द कर दिया।

न्यायालय ने जिला दूरसंचार समिति, जयपुर को 06 फरवरी, 2017 के सरकारी आदेश के खंड 15(4) के अनुसार मामले को देखने और 24 जून 2014 की एनओसी और जेडीए द्वारा 18 नवंबर, 2015, 30 मई, 2022 और 20 जून, 2022 को जारी पत्रों को ध्यान में रखते हुए शिकायतकर्ता की शिकायत पर निर्णय लेने का निर्देश दिया।

केस टाइटलः रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड बनाम डॉ हरीश अग्रवाल और अन्‍य

केस नंबर: एसबी सिविल रिट पीटिशन नंबर 9488/2023

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