कांग्रेस अपनी योजनाओं के दम पर तो बीजेपी केंद्र की योजनाओं से सत्ता की डगर हासिल करने में जुटी

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-कांग्रेस की ओर से अकेले सीएम अशोक गहलोत ने ही संभाली पूरे प्रदेश की कमान, तो बीजेपी की ओर से पीएम व केंद्रीय मंत्रियों ने
जयपुर, 24 नवंबर (विशेष संवाददाता) : मरुधरा का रण जीतने के लिए कांग्रेस अपने मौजूदा मंत्री-विधायक एवं अपनी योजनाओं के दम पर चुनावी मैदान में है, तो बीजेपी केंद्र की योजनाओं के दम पर सत्ता तक का सफर तय करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। प्रचार-प्रसार की बात करें तो कांग्रेस की ओर से सीएम अशोक गहलोत ही अकेले किला लड़ाते नजर आए। गहलोत ने पूरा प्रदेश नापा हालांकि राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, मल्लिकार्जुन खरगे ने भी प्रदेश के दौर किए, लेकिन पूरी कमान गहलोत के कंधों पर ही थी। दूसरी ओर बीजेपी की ओर से पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ सहित केंद्रीय मंत्रियों की पूरी फौज राजस्थान में सक्रिय थी।
कांग्रेस ने साफ कर दिया कि वह अपनी योजनाओं को ही मुख्य जीत का हथियार बनाएगी और इसी दम पर वह चुनावी मैदान में भी है। हालांकि उसने मरुधरा का रण जीतने के लिए अधिकतर अपने मौजूदा विधायक व मंत्रियों पर ही दांव लगाया है और इनके दम पर ही वह प्रदेश की रिवाज-परंपरा का मिथक तोडऩे की कोशिश करती नजर आ रही है। महंगाई राहत कैंप के बाद 7 गारंटी के दम पर कांग्रेस को उम्मीद है कि वह सत्ता में रिपीट करेगी। इन दोनों योजना में लाखों लोगों के रजिस्ट्रेशन से कांग्रेस उत्साहित है और मानकर चल रही है कि रजिस्ट्रेशन कराने वाले लोग निश्चित रूप से उसे वोट देंगे। साथ ही सीएम अशोक गहलोत इस चुनाव में अकेले अपने दम पर ही प्रचार-प्रसार संभालते नजर आए। इस पूरे चुनाव में बीजेपी ने केंद्र व मोदी सरकार द्वारा किए गए देश व जनहित के कार्यों को जनता के सामने रखा। इन काम के आधार पर ही बीजेपी सत्ता में आने की कोशिश कर रही है। वहीं बीजेपी ने कांग्रेस सरकार पर महिला अपराध, दलित अपराध, पेपर लीक, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, ईआरसीपी, लाल डायरी, घोटालों पर घेरते हुए पूरे जोर से ध्वस्त कानून व्यवस्था एवं बढ़े हुए अपराधों के आंकड़ों के आधार पर कांग्रेस सरकार को घेरने की कोशिश की।
पायलट टोंक व आधा दर्जन जगह ही रहे सक्रिय :
बताया जाता है कि 2018 का चुनाव जीतने के बाद सचिन पायलट अपनी विधानसभा में सक्रिय नहीं रहे और इसी के चलते इस बार उन्हें भी अपनी सीट पर जीत के लिए पसीना बहाना पड़ा। 2018 में पायलट व सीएम गहलोत ने एक साथ पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी संभाली थी। इस बार दोनों के बीच व्याप्त दूरियां के चलते दोनों अलग-अलग राह पर चलते नजर आए। पायलट ने अपने क्षेत्र में अधिकतर समय दिया तो करीब आधा दर्जन अपने गुट के प्रत्याशियों की विधानसभा क्षेत्र भी पहुंचे।
गुर्जर समाज गेमचेंजर :
इस चुनाव में गुर्जर वोटर गेमचेंजर साबित हो सकते हैं। कांग्रेस का यह पारंपरिक वोट बैंक 2018 में समाज के सचिन पायलट को सीएम नहीं बनाने से खासा नाराज है। वहीं गहलोत सरकार में पूरी तरह साइड लाइन रहे पायलट एवं चुनाव में भी उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं देने से गुर्जर समाज बीजेपी की ओर खिसकता नजर आ रहा है। यदि ऐसा हुआ तो फिर यह कांग्रेस के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है।
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मरुधरा के रण में किंग मेकर साबित होंगे यूथ वोटर्स
-इस चुनाव में 18-19 साल के 22 लाख 61 हजार यूथ वोटर्स पहली बार डालेंगे वोट
-2018 के चुनाव में कांग्रेस-बीजेपी के बीच एक पर्सेंट से भी कम वोट का था अंतर, इस बार यूथ लिखेंगे नई राजनीतिक इबादत
-सभी दल कर रहे यूथ पर फोकस, लेकिन बीजेपी मार सकती है बाजी
जयपुर, 24 नवंबर (योगेंद्र भदौरिया) : मरुधरा के रण में इस बार 18-19 साल के 22 लाख 71 हजार 647 वोटर इस चुनाव में पहली बार मताधिकार का प्रयोग करेंगे। पिछले चुनाव में कांग्रेस व बीजेपी के बीच मात्र एक परसेंट के मार्जिंन का अंतर था और इसी के चलते सभी की नजर इन यूथ वोटर्स पर है। हालांकि बीजेपी अपने माइक्रो प्लानिंग से यूथ तक अपनी पकड़ बनाने के अभियान में दूसरे दल से आगे नजर आ रही है। नए मतदाता 199 विधानसभा सीटों में से कम से कम 132 सीटों पर किंगमेकर की भूमिका में नजर आ रहे हैं। 132 सीटों पर नए वोटरों की संख्या पिछले विधानसभा चुनाव में दर्ज जीत के अंतर से कहीं ज्यादा है। प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस दोनों की नजर यूथ वोट बैंक पर है। 132 सीटों पर इस बार यूथ निर्णायक की भूमिका में है और इन विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला युवा वोटर करेंगे।
इन सीटों पर युवा मतदाता प्रदेश में किसी भी पार्टी की जीत-हार का गणित बदल सकते हैं। यूथ वोटर्स की संख्या इतनी है कि किसी भी पार्टी की सरकार को स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में ला सकता है। चुनाव आयोग की रिपोर्ट पर नजर डाले तो राजस्थान 66 फीसदी विधानसभा में यूथ वोटर्स (18 से 39 साल की एज ग्रुप) की संख्या 51 फीसदी या उससे ज्यादा है। जिलेवार स्थिति देखे तो दो ऐसे जिले हैं, जहां यूथ वोटर्स की संख्या किसी भी विधानसभा क्षेत्र में निर्णायक नहीं है यानि वहां 51 फीसदी से कम यूथ वोटर्स हैं। जबकि 12 ऐसे जिले है, जहां की सभी विधानसभा सीटों पर यूथ वोटर निर्णायक है। चूरू-बूंदी प्रदेश प्रदेश के ऐसे हैं, जहां 40 साल या उससे ज्यादा एज गु्रप के वोटर्स ज्यादा है। चूरू में 6 सीट है और यहां सभी पर 40 साल से ज्यादा उम्र के वोटर निर्णायक है। यहां की सादुलपुर और सरदारशहर सीट ऐसी है, जहां 60 साल या उससे ज्यादा उम्र के वोटर्स की संख्या 50 हजार से ज्यादा है। वहीं बूंदी जिले की बूंदी शहर सीट ऐसी है, जहां यूथ वोटर्स की संख्या 51 फीसदी से थोड़ी कम है, जबकि केशवारायपाटन और हिंडौली यूथ वोटर्स की संख्या 51 फीसदी से कम है। राजस्थान हर बार सत्ता परिवर्तन देखता है, क्या इस बार भी ऐसा ही होगा या यह परंपरा टूटेगी, ये तो 3 दिसंबर को ही साफ होगा, लेकिन जीत हार का अंतर काफी करीबी होगा। इसकी वजह है नए वोटर। नए वोटर ही इस बार राजस्थान में लगभग हर सीट पर प्रत्याशियों की जीत-हार तय कर सकते हैं।
इसलिए युवा वोटर का रोल होगा अहम :
अगर आप इस बार के फस्र्ट टाइम वोटरों की संख्या की तुलना 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी को मिले वोट के अंतर से करेंगे तो यह 12 गुना से ज्यादा है। यही नहीं, पिछले विधानसभा चुनाव में 132 से ज्यादा सीटों पर जीत और हार का अंतर इस बार जुड़े नए वोटरों से कम था। इसमें भी करीब 10 सीटों पर जीत-हार का मार्जिन 1 हजार वोट से भी कम था। ऐसे में साफ है कि इस बार नए वोटर ही अधिकतर प्रत्याशियों की जीत-हार तय करेंगे। उनका रुझान जिस तरफ होगा उसका पलड़ा भारी हो सकता है। इसी को देखते हुए दोनों दल युवाओं को रिझाने में लगे हैं।
यूथ वोटर्स से कांग्रेस को मात देने की रणनीति :
2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी और अशोक गहलोत की अगुवाई में पार्टी ने सरकार बनाई थी। तब आए नतीजों में दोनों पार्टियों के कुल वोट प्रतिशत में एक पर्सेंट से भी कम का अंतर था। तब कांग्रेस का वोट प्रतिशत 39.3 था, जबकि बीजेपी का वोट प्रतिशत 38.8 था। बीजेपी अब इससे आगे निकलने के लिए यूथ वोटर्स पर फोकस किए हुए है। कांग्रेस पार्टी की बात करें तो अभी तक अपने फार्म में ही कहीं नजर नहीं आई। उसकी आईटी, सोशल मीडिया टीम भी खानापूर्ति तक ही सीमित रही। यूथ वोटर्स तक अपनी पकड़ बनाने के लिए भी कांग्रेस की टीम कोई विशेष रणनीति पर काम करती नजर नहीं आ रही है। उसकी टीम सिर्फ प्रेसनोट व बयानबाजी तक ही सीमित है।
बीजेपी की मजबूत किलेबंदी :
बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत डिजिटल तंत्र पर लगाकर यूथ तक अपनी पकड़ में लगाई है। इसके लिए उसने फेसबुक पर पार्टी के पौने तीन मिलियन फॉलोअर्स बनाए तो ट्वीटर पर 9 लाख फॉलोअर्स हैं। वहीं 66 हजार वाट्सअप ग्रुप के साथ प्रदेश के 70 लाख लोगों के वाट्सअप ग्रुप बनाकर लोगों को पार्टी से सीधा कनेक्ट किया है। वहीं सात संभाग में आधुनिक कॉल सेंटर्स के साथ हर विधानसभा में अलग से कॉल सेंटर तैयार किया है। ताकि कम समय में वह लोगों तक अपनी बात पहुंचा सके। वहीं नव मतदाता अभियान चलाकर 25 लाख नए मैंबर बनाए हैं। अब इन सभी को अपने तरकश में समेटकर बीजेपी तीर छोडऩे में जुटी हुई है। प्रदेश संगठन महामंत्री चंद्रशेखर ने आधुनिक संसाधनों के माध्यम से यूथ तक अपनी पकड़ बनाकर उनके वोट से अब सत्ता तक का सफर तय करने की दिशा में अपने कदम आगे बढ़ा दिए हैं।
फोटो 24 वाईएसबी 2 : ग्राफिक्स
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पूर्वी राजस्थान व शेखावाटी की 60 सीटों से बढ़त बनाने की बीजेपी की रणनीति
-2018 के परिणाम भूल 2013 का रिकॉर्ड दोहराने की कवायद में जुटा बीजेपी संगठन
-बीजेपी के स्टॉर प्रचारक पीएम, गृहमंत्री, रक्षामंत्री से लेकर यूपी सीएम सहित अन्य ने संभाला मोर्चा
जयपुर, 24 नवंबर (योगेंद्र भदौरिया) : मरुधरा का रण जीतकर सत्ता तक का सफर तय करने के लिए बीजेपी ने इस बार पूर्वी राजस्थान एवं शेखावाटी का रास्ता अख्तियार किया है। बीजेपी यहां की 60 सीटों पर फतेह करने को लेकर अपने मिशन में आगे बढ़ रही है। इसके लिए वह 2018 के परिणाम को भूलकर एक बार फिर 2013 के रिकॉर्ड को रिपीट करने की कोशिश कर रही है। इसी के चलते बीजेपी के स्टार प्रचारक पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, यूपी के फायर ब्रांड सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर केंद्रीय मंत्रियों की फौज ने इन दोनों एरिया में जमकर पसीना बहाया है। इन दोनों एरिया में 2018 के चुनाव में बीजेपी फिसड्डी साबित हुई थी और इसी के चलते इस बार उसने राजस्थान की सत्ता तक का सफर तय करने के लिए इन्हीं दो एरिया में अधिक फोकस किया हुआ है।
राजस्थान का शेखावाटी में तीन जिले की 21 विधानसभा सीटें हैं। यहां का मतदाता किसी पार्टी का सगा नहीं है। स्थानीय मुद्दों और प्रत्याशियों के हिसाब से मतदाता हर चुनाव में अपना रुख बदलता है। शेखावाटी में सीकर, चूरू व झुंझुनूं जिले आते हैं और यहां पर 21 विधानसभा सीट हैं। इनमें चूरू जिले में चूरू, सुजानगढ़, सरदारशहर, रतनगढ़, तारानगर एवं सादुलपुर तो झुंझुनूं जिले में सात विधानसभा सीटें खेतड़ी, मंडावा, झुंझुनूं, नवलगढ़, उदयपुरवाटी, पिलानी और सूरजगढ़ आती हैं, वहीं सीकर जिले में 8 विधानसभा सीटें नीमकाथाना, दांतारामगढ़, लक्ष्मणगढ़, खंडेला, सीकर, धोद, श्रीमाधोपुर और फतेहपुर विधानसभा सीट आती हैं। 2018 की बात करें तो बीजेपी को शेखावाटी की 21 सीट में से मात्र 4 सीट मिली थी। वहीं कांग्रेस 15, बसपा व निर्दलीय ने एक-एक सीट पर बाजी मारी थी।
शेखावाटी के 2013 व 2018 के आंकड़ें :
2018 में सीकर जिले में बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था। जबकि कांग्रेस ने 7 व एक निर्दलीय यहां से चुनाव जीते थे। वहीं 2013 में बीजेपी ने 5, कांग्रेस ने 2 व एक निर्दलीय ने बाजी मारी थी। झुंझुनूं की बात करें तो यहां की 7 सीट पर 2018 में कांग्रेस 4, बीजेपी 2 व बसपा एक सीट पर जीती थी। वहीं 2013 में बीजेपी 3, कांग्रेस 1, बसपा 1 एवं निर्दलीय ने 2 सीट जीती थी। चूरू जिले की बात करें तो 2018 में यहां की 6 सीटों में से कांग्रेस ने 4, बीजेपी ने दो सीट जीती थी। 2013 में बीजेपी ने 3, कांग्रेस व बसपा ने एक-एक तो एक निर्दलीय ने बाजी मारी थी।
1977 के बाद कांग्रेस की पकड़ हुई ढीली :
शेखावाटी कांग्रेस का गढ़ रहा है। 1975 तक यहां पार्टी के लिए कोई चुनौती नहीं थी, लेकिन, आपातकाल के बाद कांग्रेस की पकड़ ढीली हो गई। साल 1977 में जनता पार्टी ने सरकार बनाई और भैरोंसिंह शेखावत पहले गैर कांग्रेसी सीएम बने। इसके बाद यहां भाजपा की स्थिति मजबूत हुई। तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के साल 1999 में जाट आरक्षण की घोषणा करने के बाद पार्टी के वोट बैंक का विस्तार हुआ। हालांकि बीजेपी शेखावाटी क्षेत्र में अब तक पूरी तरह से अपनी पकड़ नहीं बना पाई है।
जाट बहुल्य शेखावाटी किसानों का गढ़ :
यहां चुनावों में किसानों के मुद्दों के साथ-साथ स्थानीय मुद्दे भी असर डालते हैं। शेखावाटी के मतदाता केंद्र सरकर की योजनाओं को देखकर या नेताओं का भाषण सुनकर नहीं, बल्कि स्थानीय प्रत्याशी को ध्यान में रखकर वोट देता है। प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में भाजपा-कांग्रेस का चुनाव चिह्न देखकर वोट दिया जाता है, जबकि शेखावाटी में सीपीएम, बसपा और निर्दलीय उम्मीदवारों का भी उतना ही प्रभाव होता है। यहां के मतदाताओं का मूड हर चुनाव में बदलता है, हालांकि, आंकड़ों पर नजर डाले तो एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस के खाते में बढ़त दिखती है, लेकिन, अन्य पार्टियां भी अपनी जगह बनाने में पीछे नहीं हैं।
2018 में पूर्वी राजस्थान की 39 सीट में से बीजेपी 4 पर सिमटी :
बीजेपी 2018 में कमजोर हो चुकी अपनी कड़ी को फिर से मजबूत करने के लिए पिछले 6 महीने से लगातार पूर्वी राजस्थान में सक्रिय है। कारण पूर्वी राजस्थान के 7 जिलों में फैली 39 विधानसभा सीटों में भाजपा पिछले चुनाव में महज 4 सीटों पर सिमट गई थी। जबकि 2013 के चुनाव में पार्टी को यहां से 28 सीटों पर जीत मिली थी।
पूर्वी राजस्थान का सियासी गणित :
7 जिलों की 39 सीटें पूर्वी राजस्थान के अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, टोंक, सवाई माधोपुर, दौसा में 39 विधानसभा सीटें हैं। 2013 में भाजपा ने सर्वाधिक 28 सीटें जीती थीं। कांग्रेस को 7, डॉ. किरोड़ीलाल मीणा की पार्टी एनपीपी को 3 और एक सीट बसपा को मिली थी। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को महज 4 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। जबकि कांग्रेस को 25, बसपा को 5, निर्दलीयों को 4 और एक सीट आरएलडी को मिली। बसपा का विलय कांग्रेस में हो गया। आरएलडी एवं निर्दलीयों का समर्थन भी कांग्रेस को था। वहीं सवाई माधोपुर में 4 विधानसभा सीटों की बात करें तो 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सभी 4 सीटें जीती थी। जबकि 2018 में बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था।
फोटो 24 वाईएसबी 1 :
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सवा 5 करोड़ मतदाता होंगे भाग्यविधाता
जयपुर, 24 नवंबर (विशेष संवाददाता) : मरुधरा के रण में इस बार 5 करोड़ 26 लाख 80 हजार 545 वोटर्स प्रदेश की 199 विधानसभा सीटों के प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे। इनमें 2 करोड़ 73 लाख 58 हजार 626 पुरुष तो 2 करोड़ 51 लाख 79 हजार 422 महिला वोटर्स हैं। वहीं 80 साल से अधिक 11 लाख 70 हजार वोटर्स तो 624 थर्ड जेंडर हैं।
सबसे अहम 18-19 साल के 22 लाख 71 हजार 647 वोटर इस चुनाव में पहली बार मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इसी प्रकार पीवीटीजी सहरिया आदिवासी मतदाता 77 हजार 343 वोटर्स हैं। 22 लाख 61 हजार वोटर्स पहली मर्तबा वोटिंग करेंगे। दिव्यांग वोटर्स 5 लाख 61 हजार तो 100 साल से अधिक वोटर्स की संख्या 18 हजार 462 है। पोस्टल बैलेट वोट डालने वालों की संख्या 1 लाख 41 हजार है। चुनावी मैदान में 1875 प्रत्याशी बचे हैं। हालांकि इनमें से करीब एक दर्जन दूसरे प्रत्याशियों का समर्थन करते नजर आ रहे हैं। मतदान को लेकर शुक्रवार को प्रदेश के अलग-अलग जिलों से पोलिंग पार्टियां ट्रेनिंग उपरांत बूथों के लिए रवाना हो गईं। सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम किए गए है।
एक परिवार या एक गांव के लिए भी बनवाया मतदान केंद्र
इस बार ऐसे भी बूथ है, जहां एक परिवार या फिर एक ही गांव के लिए मतदान केंद्र बनवाया गया है। सुचारू रूप से मतदान के लिए प्रदेश में 69,114 पुलिस के जवान, 32,876 राजस्थान होमगार्ड, फोरेस्ट गार्ड और आरएसी जवान है। जबकि अति संवेदनशील एरिया में सीएपीएफ की 700 कंपनियां तैनात की गई है। वोटिंग के दिन जांच और निगरानी के लिए हर विधानसभा क्षेत्र में 3 फ्लाइंग स्कवॉड, 3 एसएसटी दल तैनात रहेंगे। शुक्रवार सुबह मतदान दलों को ट्रेनिंग दी गई। इसके बाद जरूरी दिशा-निर्देश दिए गए इसके बाद पोलिंग पार्टी अपने-अपने बूथों के लिए रवाना हो गईं।
सबसे अधिक और कम मतदाता इन विधानसभा क्षेत्रों में :
सबसे ज्यादा झोटवाड़ा विधानभा क्षेत्र में 4,28,067, बगरू में 3,52,418, सांगानेर में 3,50,032, विद्याधरनगर में 3,41,649, लूणी में 3,34,621, बाली में 3,32,730, सांचोर में 3,15,259 मतदाता पंजीकृत हैं। सबसे कम मतदाता किशनपोल विधानसभा क्षेत्र में 1,92,641 मतदाता, जोधपुर में 1,99,577, बसेड़ी में 2,02,944, अजमेर उत्तर में 2,09,560, सांगोद में 2,09,869 मतदाता पंजीकृत हैं।
सबसे अधिक और कम महिला मतदाता यहां :
सबसे अधिक 2,05,673 महिला मतदाता झोटवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में, बगरू में 1,67,686, सांगानेर में 1,66,920, विद्याधर नगर में 1,63,951, बाली में 1,59,369, लूणी में 1,58,950 महिला मतदाता पंजीकृत हैं। सबसे कम 91,896 महिला मतदाता किशनपोल में, 92,513 बसेड़ी में, 98,830 जोधपुर में, 99,039 राजाखेड़ा में, 1,00,862 महिला मतदाता पीपल्दा में पंजीकृत हैं।
1 लाख 42 हजार से अधिक सर्विस वोटर्स :
सर्विस वोटर्स की संख्या 1 लाख 42 हजार 221 है, इनमें 4852 महिला सर्विस वोटर्स हैं। सबसे अधिक 8101 सर्विस वोटर्स सूरजगढ़ विधानसभा क्षेत्र, 4774 बहरोड़ में, 4759 खेतड़ी में और 3861 मुंडावर विधानसभा क्षेत्र में पंजीकृत हैं। सबसे कम 3 सर्विस वोटर्स कुशलगढ़ में, धरियावद में 8, बागीडोरा में 12 और 13 झाडोल विधानभा क्षेत्र में पंजीकृत हैं।

हर गाडिय़ां जीपीएस से ट्रैक होगी :
जिला निर्वाचन अधिकारी प्रकाश राजपुरोहित ने बताया कि जयपुर की 19 सीटों पर इस बार 4 हजार 691 पोलिंग बूथ बनाए है, जिन पर 50.95 लाख मतदाता वोट डालेंगे। उन्होंने बताया कि जिन गाडिय़ों में पोलिंग पार्टियां और ईवीएम मशीनें रवाना की गई है, उन सभी पर मॉनिटरिंग के लिए उनमें जीपीएस सिस्टम लगाए गए है, ताकि गाडिय़ां हमारे निर्धारित रूट से अलग न जा सके। इसके लिए कंट्रोल रूम में हर गाड़ी पर निगरानी रखी जाएगी।

मॉक पोल के जरिए चैक करवाई जाएगी ईवीएम :
जिला निर्वाचन अधिकारी ने बताया कि पोलिंग पार्टियों के बूथ पर पहुंचने के बाद वहां सभी व्यवस्थाएं करके पोलिंग पार्टियां सबसे पहले प्रत्याशियों के एजेंटों को ईवीएम की जांच करवाएगी। इसके लिए प्रत्येक बूथ पर मॉक पोल करवाए जाएंगे और वोट डलवाए जाएंगे। ताकि एजेंट सुनिश्चित हो सके कि ईवीएम मशीनें ठीक है और उनके कोई गड़बड़ी नहीं है। ये प्रक्रिया पूरी होने और एजेंटों के सुनिश्चित होने के बाद सभी ईवीएम को क्लियर करके सील पैक कर किया जाएगा और वोटिंग के दिन खोला जाएगा।

वोटर्स गाइड
1. क्या वोटर आईडी कार्ड बिना दे सकते हैं वोट :
अगर आपके पास वोटर आईडी कार्ड नहीं है, तो भी आप वोट दे सकते हैं, लेकिन वोटर लिस्ट में आपका नाम होना जरूरी है। नाम ना होने की दशा में कोई वोट नहीं दे सकता, लेकिन अगर नाम है और वोटिंग आईडी कार्ड नहीं तो वोट दे सकते हैं। इस स्थिति में आप अन्य आईडी पु्रफ दिखाकर वोट दे सकते हैं। इस स्थिति में आप वोटिंग के दिन वोटर आईडी कार्ड के अलावा आधार कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड, बैंक पासबुक, बीमा स्मार्ट कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड, पासपोर्ट आदि को दिखाकर भी वोट दे सकते हैं। इस दौरान सरकारी फोटो आईडी कार्ड होना आवश्यक है।
2. वोटिंग के बाद 7 सेकेंड तक दिखेगी पर्ची, किसे दिया वोट :
इस बार प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में मतदान केन्द्रों की संख्या के साथ दस-दस प्रतिशत रिजर्व कन्ट्रोल और बैलट यूनिट और तीस प्रतिशत रिजर्व के साथ वीवीपेट की व्यवस्था की है। इस तरह रिजर्व के साथ 5 हजार 740 कंट्रोल यूनिट, 6 हजार 499 बैलट यूनिट और 6 हजार 243 हजार वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रायल (वीवीपैट) मशीनों को तैयार किए गए है। वीवीपैट मशीन में मतदाता सात सेकंड के भीतर यह देख सकेगा कि उसने जिसे वोट दिया है वह पर्ची पर नजर आ रहा है या नहीं। सात सेकंड के बाद पर्ची बॉक्स में गिर जाएगी।
फोटो कैप्शन लगाना है चुनाव की खबरों में—पारीक 100– चुनाव के लिए कार्टून–
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जीतने के बाद आलाकमान तय करेगा, अभी मुख्यमंत्री पद के बयान सिर्फ जुमलेबाजी
गहलोत के साथ संबंधों पर पायलट की दो टूक
मेरे मुद्दों को आलाकमान ने स्वीकारा, इसीलिए पार्टी मजबूत
राजस्थान चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों सरकार बनाने का दावा कर रही है, इस बीच पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट टोंक से कांग्रेस के प्रत्याशी तो हैं हीं लेकिन अभी से चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस की सरकार बनने पर अपने लिए भूमिका को लेकर भी मुखर हो रहे हैं. पंजाब केसरी से एक्सक्लूसिव बातचीत में सचिन पायलट ने मौजूदा चुनाव को लेकर हर मुद्दे पर बेबाक बात की.पढि़ए, डिजिटल एडिटर विशाल सूर्यकांत के साथ सचिन पायलट के इंटरव्यू के कुछ अंश…

प्र. चुनाव प्रचार कैसा चला, लगातार अभियान चलाए गए.
उ. बहुत इन्ट्रेस्टिंग चुनाव रहा. कांग्रेस ने सक्रिय,संवेदनशील,पॉजेटिव अभियान चलाया. खरगे जी, राहुल जी, प्रियंका जी ने व्यापक अभियान चलाया. राहुल गांधी 4 हजार किलोमीटर चले. कर्नाटक,हिमाचल में सरकार आई. राजस्थान में भी ऐसा होगा. बीजेपी का चुनाव अभियान में दम नहीं रहा. बीजेपी के लोकल नेताओं में इतना खिंचाव था कि बाहर के नेताओं को आना पड़ा. वे लोग हम पर आरोप लगाते थे लेकिन उनके अंदर विस्फोटक स्थिति बनी हुई है.बाहर के आयातित नेता, पीएम,होम मिनिस्टर,चीफ मिनिस्टर सब आ रहे हैं. लेकिन उनका अभियान सिरे नहीं चढ़ पाया
प्र. आप बीजेपी के अभियान पर अटैक करते रहे और वे आपको लेकर मुद्दे उठाते रहे. वे आपकी अनदेखी, आपका अशोक गहलोत से टकराव का मुद्दा उठाते रहे हैं.
उ. राजस्थान में आठ करोड़ लोग रहते हैं. कांग्रेस पार्टी ऐसी है, जब मैं अध्यक्ष था, 21 विधायक थे, वहां से पांच गुना विधायकों की संख्या बढ़ी, हमनें सबको साथ लिया ,इसीलिए कांग्रेस आगे बढ़ी. बीजेपी में बौखलाहट थी, उन्हें कटाक्ष करने की जरूरत नहीं पड़ती. ये सब इसीलिए ताकि जनता बीजेपी से सवाल न पूछे.
प्र. पूर्वी राजस्थान की सीटों पर आपका क्या प्रभाव है ?
उ. 14-15 जिलों में कांग्रेस को अच्छा समर्थन मिला, इसीलिए उन्हें लगता है कि वो वहां सेंधमारी करें. लेकिन वहां उनके मुद्दे अब कारगर नहीं रहे. उनके किसी नेता को मेरी चिंता करने की जरूरत नहीं. मेरा ख्याल रखने के लिए मेरी जनता, मेरे लोग हैं, मेरी पार्टी है.
प्र. भविष्य का नेता सचिन पायलट, लेकिन ये भविष्य कब आएगा ?
उ. कर्म करने वाला मैं व्यक्ति हूं. कर्म ही मेरा धर्म है. पब्लिक में जो सच्चाई से काम करते हैं उन्हें कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता, कोई झुठला नहीं सकता. कोई एक व्यक्ति बनेगा, ये सब जुमलेबाजी है, बहुमत आने के बाद पार्टी का नेतृत्व तय करेगा कि किसे क्या जिम्मेदारी देनी है. 2018 को अध्यक्ष बना तो हम बहुमत लेकर आए. राहुल जी अध्यक्ष थे, उन्होनें तय किया हम सब ने ये माना, अब भी ऐसा ही हर राज्य में होगा.
प्र. क्या वाकई कांग्रेस ने कोई फेस प्रोजेक्ट नहीं किया ?
उ. हम तो किसी को प्रोजेक्ट नहीं करते, बीजेपी ये करती है. उनसे पूछिए कि कोई एक व्यक्ति चुनाव नहीं लड़वा सकता, न जीतवा सकता है. खरगे साहब, राहुल जी ने कहा था कि जो टाइम निकल गया है, उसे भूलो, आगे बढ़ो माफ करो. इसीलिए सब बातों को पीछे छोड़ कर चलते हैं. राजनीति में शब्दों का चयन बहुत सोच समझ कर करना चाहिए.
प्र. मुख्यमंत्री गहलोत से आपके बनते बिगड़ते संबंधों का दौर रहा. इसका क्या असर पड़ेगा ?
उ. देखिए, मुख्यमंत्री गहलोत के बेटे को मैंनें अपनी कार्यकारिणी में रखा. दो जिलों की जिम्मेदारी दी. हमारी कुछ असहमतियां थी. मेरा मानना है कि युवाओ के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का किसी को हक नहीं, मेरी पार्टी ने मेरे स्टेड को माना. पब्लिक परसेप्शन को समझा और कोर्स करेक्शन किया. भ्रष्टाचार के मुद्दे उठाए इससे हमारी विश्वसनीयता बढ़ी. इसका लाभ हमें चुनावों में मिल रहा है.
प्र. पार्टी को लेकर क्या दावा है ?
उ. हमें बहुमत मिलेगा,टारगेट कुछ भी हो सकता है लेकिन हम सरकार बनाएंगे.
फोटो 24 सचिन 1
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सचिन पायलट का विजय रथ रोक पाएंगे भाजपा के अजीत सिंह मेहता ?
टोक, 24 नवंबर (भगवान सहाय शर्मा) : टोंक से सचिन पायलट के चुनाव लडऩे से देश की निगाहें है। पायलट को रोकने के लिए भाजपा ने स्थानीय उम्मीदवार अजीत सिंह मेहता को उतारा है। मेहता ने पायलट को गांव-गांव व घरों-घरों पर जाने को मजबूर कर दिया पर पायलट के विजय रथ को रोकना इतना आसान नहीं होगा।
टोंक का इतिहास रहा है कि इस सीट से दुबारा चुनाव कोई नहीं जीता, यहां यह भी इतिहास रहा है कि जब-जब कांग्रेस उम्मीदवार के सामने मुस्लिम बागी बगावत कर चुनाव लड़ा, तब तब कांग्रेस हारी है। पर इस बार मुस्लिम बागी उम्मीदवार के नहीं होने से पायलट को फायदा पहुंच रहा है। गत चुनाव में पायलट के सामने भाजपा ने युनूस खान को चुनाव मैदान में उतारा था, जो कि लगभग 54 हजार वोटों से हार गए थे।
इस बार भाजपा के उम्मीदवार अजीत सिंह मेहता स्थानीयता का दांव खेल कर दमखम के साथ चुनाव प्रचार में मजबूती से उभरे। उन्होंने पायलट को लगभग डेढ़ सौ गांवों का दौरा करने पर मजबूर कर दिया, लेकिन सवाल यह है कि क्या भाजपा मुस्लिम, गुर्जर, माली एवं एससी वर्ग को अपने पक्ष में कर पाएगी। वहीं, माली समाज भाजपा का वोट बैंक माना जाता है, लेकिन इस बार पायलट ने पूरी कोशिश की है कि माली वोटों में सेंध लगे। पायलट का यह भी प्रयास है कि गत चुनाव से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत सकें।
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सीएम के ट्वीटर पर नजर आए पायलट, ऑल इज वेल का संदेश
जयपुर, 24 नवंबर (विशेष संवाददाता) : कांग्रेस शासन में पूरे समय साइड लाइन रहे सचिन पायलट आखिरकार चुनाव के समय सीएम अशोक गहलोत के ट्वीटर पर जगह बनाने में सफल रहे। गुर्जर वोटरों को साधने के लिए सीएम गहलोत ने पायलट का फोटो लगाकर ऑल इज वेल का संदेश दिया।
राजस्थान विधानसभा चुनाव के प्रचार का शोर थमने के बाद अब राजनीतिक दल और उसके नेता अलग-अलग माध्यमों से आखिरी वोट अपील करते नजर आ रहे हैं। घर-घर वोट की अपील के साथ ही सोशल मीडिया माध्यमों के जरिए भी वोट की अपील हो रही है। इसी क्रम में सीएम अशोक गहलोत ने भी आज एक बार फिर प्रदेशवासियों से कांग्रेस के पक्ष में वोट करने की अपील की। इस बार सीएम गहलोत ने अपने ऑफिशियल सोशल मीडिया हैंडलर्स से वरिष्ठ नेताओं की वीडियो अपील साझा की और पार्टी में ऑल इज वेल होने का भी संदेश दिया। इन्हीं अपीलों में एक अपील पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की भी रही, जो चर्चा का विषय बनी हुई है। दरअसल, सीएम गहलोत के सोशल मीडिया हैंडलर्स पर सचिन पायलट लंबे समय बाद नजर आये हैं। गहलोत के साथ पायलट की तस्वीर लगभग नदारद सी हो गई थी। अब चुनाव नजदीक आने के साथ ही पायलट की तस्वीर को ना सिर्फ कांग्रेस के चुनाव प्रचार सामग्रियों में जगह मिली बल्कि अब सीएम गहलोत के सोशल मीडिया हैंडलर्स में भी नजर आने लगे ह
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