हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि नेगोशिएबल इंट्रयूमेंट्स एक्ट की धारा 147 (कम्पाउंडेबल होने के लिए अपराध) के तहत अदालतों को अपराध को कम्पाउंड करने के लिए पर्याप्त शक्तियां दी गई हैं, यहां तक कि उन मामलों में भी, जहां आरोपी को दोषी ठहराया जाता है। जस्टिस संदीप शर्मा ने एक याचिका की सुनवाई के दरमियान उक्त टिप्पणियां की। याचिकाकर्ता/अभियुक्त ने याचिका में इस आधार पर एनआई एक्ट की धारा 147 के तहत अपराध को कंपाउंड करने के लिए प्रार्थना की थी कि याचिकाकर्ता/अभियुक्त ने मामले से समझौता कर लिया है और उत्तरदाता और पूरी राशि का भुगतान कर दिया गया है।समझौते के कारण आरोपी ने धारा 482 सीआरपीसी के तहत अदालत से संपर्क कर अधिनियम की धारा 147 के तहत अपराध के कम्पाउंडिंग के लिए प्रार्थना की थी। प्रतिवादी ने अपने बयान में कहा था कि चूंकि अभियुक्त ने मुआवजे की पूरी राशि जमा कर दी है, इसलिए उन्हें अपराध के कम्पाउंडिंग के लिए अभियुक्तों की प्रार्थना पर कोई आपत्ति नहीं है। इस प्रकार अभियुक्त की रिहाई को स्वीकार कर लिया गया। रिकॉर्ड की जांच करने के बाद बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता/अभियुक्त को पहले ही अधिनियम की धारा 138 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है। उसे छह महीने के साधारण कारावास की सजा दी गई है, और 1.20 लाख रुपये जुर्माना लगाया गया है।बेंच ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता/आरोपी ने एक अपील दायर की थी, लेकिन इसे भी खारिज कर दिया गया, जिसके बाद उसने धारा 397 सीआरपीसी तहत संशोधन याचिका के जरिए हाईकोर्ट से संपर्क किया। हालांकि उसे भी योग्यता पर खारिज कर दिया गया। अधिनिर्णय के लिए मौजूद प्रश्न यह था कि क्या निचली अदालत की ओर से दी गई दोषी ठहराने के फैसले और सजा के आदेश के निर्णयों को बरकरार रखने के बाद हाईकोर्ट अपराध को कम्पाउंट करने के लिए आगे बढ़ सकता है या नहीं?
जस्टिस शर्मा ने कहा कि अदालत दोषी ठहराने के फैसले और सजा के आदेश की रिकॉर्डिंग के बाद अधिनियम की धारा 138 के तहत अपराध को कम्पाउंड करने के लिए आगे बढ़ सकती है। दामोदर एस प्रभु बनाम सईद बाबला एच (2010) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए, पीठ ने कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि ट्रायल कोर्ट की ओर से दर्ज किए गए दोषी ठहराने के फैसले और सजा के आदेश को इस अदालत ने बरकरार रखा है, अधिनियम की धारा 147 पर्याप्त रूप से इस अदालत को सजा की रिकॉर्डिंग के बाद अपराध को कम्पाउंड करने की शक्ति देता है, इसलिए आवेदन में की गई प्रार्थना को स्वीकार किया जा सकता है।
इस मामले में पार्टियों के बीच हुए समझौते को देखते हुए जस्टिस शर्मा ने देखा कि प्रतिवादी को याचिकाकर्ता/अभियुक्त को सलाखों के पीछे भेजने में कोई दिलचस्पी नहीं है। तदनुसार बेंच ने संशोधन में पारित आदेश को वापस ले लिया और इस मामले को कम्पाउंड करने का आदेश दिया। बेंच ने निचली अदालतों के फैसले और सजा के आदेश को रद्द कर दिया।
केस टाइटल: नरेश कुमार बनाम त्रिलोक चंद। साइटेशनः 2023 (एचपी) 9