समलैंगिक कानून के विरोध में सामने आए कई संगठन

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राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपकर की समलैंगिक विवाह की खिलाफत, कानून पर रोक लगाने की मांग
जोधपुर। समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में दायर की याचिकाओं का शहर में अब लगातार विरोध हो रहा है। कई संस्था-संगठन इस संबंध में जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर समलैंगिक विवाह की खिलाफत कर रहे है।
विश्व हिंदू परिषद सहित कई समाजों के प्रतिनिधियों ने शुक्रवार को सर्व समाज के साथ सन्तों के सान्निध्य में राष्ट्रपति के नाम समलैंगिक विवाह कानून के विरोध में ज्ञापन दिया। इस दौरान विहिप के प्रांत विधि संयोजक अधिवक्ता मोतीसिंह राजपुरोहित ने कहा कि विश्व में जिस राष्ट्र को उसकी अनूठी संस्कृति, सांस्कृतिक विरासत के लिए पहचाना जाता हो ऐसे भारत की संस्कृति का विनाश करता यह समलैंगिकता विवाह का कानून नई पीढ़ी को विनाश अंधकार में ले जाने का काम करेगा। सुप्रीम कोर्ट जल्दबाजी में कुछ लोगों के लिए ऐसा कानून लाने की तैयारी कर रही है जिससे भविष्य में देश की करोड़ों जनता प्रभावित होकर नुकसान उठाएगी। यह नित नए विवाद को जन्म तो देगा ही साथ ही भारतीय संस्कृति के लिए घातक सिद्ध होगा। जहा एक ओर समलैंगिक को प्रकट करने के लिए भी मना किया गया वही दूसरी तरफ उनके विवाह की अनुमति विचार करना गलत है इससे निजता का उल्लंघन होगा। सन्तों के साथ सिख समुदाय के ज्ञानी जेलसिंह ने भी कहा कि यह कानून हमारी संस्कृति के साथ आने वाली पीढ़ी को नष्ट कर विकृत मानसिकता वाले समाज का निर्माण करेगा। जो राष्ट्र को गहरे खड्डे में ले जाने का कार्य होगा। सुप्रीम कोर्ट को इस पर पुनर्विचार करते हुए हम राष्ट्रपति से मांग कर ऐसे कानून को लागू नहीं करने की मांग करते है। ज्ञापन देने में कुम्हार, सोनी, सैन, जैन, ब्राह्मण, राजपूत, रावणा राजपूत, जाट, विश्नोई सहित 30 समाज प्रमुखों का प्रतिनिधित्व रहा। महिला प्रमुख रश्मि चौहान सहित महिलाओं ने भी एक सुर में इस कानून का विरोध किया।
वहीं उड़ान फाउंडेशन ने भी न्यायपालिका द्वारा समलैंगिक कानून बनाने के विरोध में एडीएम एमएल नेहरा को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन देकर विरोध दर्ज कराया। फाउंडेशन के अध्यक्ष वरुण धनाडिया ने बताया कि समलैंगिक कानून भारतीय संस्कृति के लिए बिल्कुल ग़लत और हमारी संस्कृति और सभ्यता के रीति नीति के खिलाफ़ है। हमारी संस्कृति और सभ्यता में वैदिक काल से ही केवल जैविक पुरुष एवं जैविक महिला के मध्य विवाह को मान्यता दी है। सभी धर्मों में केवल विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों की विवाह को दो अलग लैंगिकों में मान्यता देते हुए भारत का समाज विकसित हुआ है। ज्ञापन में राष्ट्रपति से निवेदन किया है कि न्यायपालिका द्वारा जो समलैंगिक कानून बनाया जा रहा है उस पर रोक लगे। इस प्रकार की पाश्चात्य संस्कृति पर अंकुश लगाने पर ही हमारी संस्कृति और सभ्यता सुरक्षित रह सकती है। इस अवसर पर निलेश सोनी, मनीष गौड़, दुष्यंत व्यास, प्रतीक सोनी, सौरव वाल्मीकि, धर्मेश मालवीय, मुकेश शर्मा व अन्य मौजूद थे।
इसी तरह समलैंगिक विवाह की मान्यता पर काया पलट जन सेवा समिति ने भी विरोध जताया है। समिति के जि़लाध्यक्ष जयेश चौहान ने बताया कि समिति के मुरली मनोहर ओझा, सुमित चौहान, मनोज पंवार, नंदू चौहान, विक्रम सांखला, निकी राखेचा, गुमान जाणी, जितेंद्र दवे, अमित दवे, विशाल परिहार, विशाल वैष्णव आदि सभी ने मिलकर ज्ञापन दिया है। जि़ला अध्यक्ष जयेश ने बताया कि यह विवाह नयें विवादों को जन्म देगी और भारतीय संस्कृति के लिए अत्यंत घातक भी होगा। यदि ऐसं विवाह को अनुमति दी तो कई नए विवादों की उत्पति होगी। समिति के मुरली ओझा ने बताया कि सम लैंगिक क़ानून भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर कुठाराघात है इसलिए समिति के सभी सदस्यों ने सम लैंगिक क़ानून पर रोक लगने का निवेदन किया है। विशाल वैष्णव ने बताया कि सम लैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दीं जाए इससे समाज में विकृतियां बढ़ेगी।

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