एक्सपर्ट से जानें क्या है ओसीडी की समस्या, इसके लक्षण, नुकसान और उपचार के बारे में

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ओसीडी एक ऐसी मनोवैज्ञानिक समस्या है जिससे ग्रस्त व्यक्ति के मन में बार-बार एक ही ख्याल आता है या वह किसी एक ही काम को लगातार दोहराने को विवश होता है। क्यों होता है ऐसा आइए जानते हैं इसके बारे में एक्सपर्ट के साथ।

अपने आसपास आपने कुछ लोगों को जरूर देखा होगा, जिन्हें अकसर लोग सनकी कहते हैं। मसलन घर की सफाई, सुरक्षा, सेहत आदि को लेकर थोड़ी सजगता स्वाभाविक है, लेकिन जब इस आदत की वजह से किसी की दिनचर्या, सेहत और रिश्ते प्रभावित होने लगें तो उसे और उसके परिवार वालो को सचेत हो जाना चाहिए क्योंकि यह ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसॉर्डर नामक गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्या का लक्षण हो सकता है।

क्या है यह मर्ज

मनोचिकित्सा के क्षेत्र मं इसे मस्तिष्क से संबंधित समस्याओं की श्रेणी में रखा जाता है। इसमें ब्रेन की कुछ खास तंत्रिकाएं अत्यधिक सक्रिय हो जाती हैं। इसी वजह से पीड़ित व्यक्ति के मन में बार-बार एक ही जैसे विचार आते हैं, लेकिन कोशिश करने के बावजूद वह उन्हें रोकने में असमर्थ होता है। इस समस्या से ग्रस्त लोग बिल्कुल सामान्य दिखते हैं और दूसरों के साथ परेशानी के बारे में बातचीत भी कर सकते हैं। शुरुआती दौर में मरीज़ या उसके परिवार के सदस्य इसके लक्षणों को पहचान नहीं पाते। जिसके बाद में यह समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है।

प्रमुख लक्षण

लोगों में इसके लक्षण अलग-अलग ढंग से दिखाई देते हैं क्योंकि हर इंसान का अपना अलग पर्सनैलिटी ट्रेट होता है। मसलन, अगर कोई व्यक्ति ज्यादा सफाई पसंद है तो वह पूरे दिन डस्टिंग और पोंछा लगाने जैसे कार्यों में व्यस्त रहता है। ऐसे लोगों को अगर कोई समझाने की कोशिश करता है तो वे बुरी तरह नाराज़ हो जाते हैं। इसी तरह कोई व्यक्ति स्वयं को ज्यादा असुरक्षित महसूस करता है तो वह अपनी रखी गई चीज़ों को बार-बार संभालता रहता है।

क्या है नुकसान

ओसीडी से पीड़ित व्यक्ति हमेशा चिंतित और तनावग्रस्त रहता है। इसी वजह से उसके मन में भय, असुरक्षा और निराशा जैसी नकारात्मक भावनाएं घर कर लेती हैं। अगर उसे रोका जाता है तो उसे बहुत बेचैनी महसूस होती है। नतीजतन इस समस्या से ग्रस्त लोगों के निजी और प्रोफेशनल संबंध तनावपूर्ण हो जाते हैं। ऐसे लोगों को अनिद्रा, पाचन संबंधी गड़बड़ी, चिड़चिड़ापन, सिरदर्द और थकान जैसी समस्याएं परेशान करने लगती हैं।

क्या है उपचार

उपचार में काउंसलिंग के साथ कुछ दवाओं की भी जरूरत पड़ती है। जिस माहौल में इस समस्या के लक्षण प्रकट होते हैं, कई बार मरीज को वहां से दूर करने के लिए कुछ दिनों तक हॉस्टिपटल में भर्ती कराने की भी जरूरत पड़ती है। इसका उपचार थोड़ा लंबा होता है और इसमें महीनों लग सकते हैं। ट्रीटमेंट कंप्लीट होने के बाद अगर मरीज में दोबारा कोई लक्षण नज़र आए तो बिना देर किए विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। मरीज़ के व्यवहार की वजह से परिवार के सदस्यों को भी बहुत परेशानी होती है। ऐसे में उनकी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे अपना धैर्य बनाए रखें और उसे पूरा सहयोग दें।

(courtesy Jagrna.com डॉ. नंद कुमार, प्रोफेसर, मनोचिकित्सा विभाग, एम्स, दिल्ली से बातचीत पर आधारित)

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