महाराणा राजसिंह प्रथम थे, जिन्होंने औरंगजेब से डरे बगैर श्रीनाथजी और द्वारिकाधीश का किया स्वागत

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राजसमंद सहित कई झीलों का कराया निर्माण, नौ चौकी के साथ विश्व के सबसे बड़े शिलालेख भी लगवाए, मेवाड़ ने मनाई जयंती

उदयपुर, 30 अक्टूबर(ब्यूरो): मेवाड़ के 58 वें श्री एकलिंग दीवान महाराणा राजसिंह प्रथम की 394 वीं जयंती सोमवार को संपूर्ण मेवाड़ में मनाई गई। इधर,
महाराणा मेवाड़ चेरीटेबल फाउण्डेशन उदयपुर की ओर से मनाई गई। सिटी पेलेस म्यूजियम स्थित राय आंगन में सोमवार को उनके चित्र पर माल्यार्पण व पूजा-अर्चना कर मंत्रोच्चारण के साथ दीप प्रज्जवलित किया गया तथा आने वाले पर्यटकों के लिए उनकी ऐतिहासिक जानकारी प्रदर्शित की गई। फाउण्डेशन के प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने यह बताया कि महाराणा राजसिंह प्रथम की गद्दीनशीनी वि.सं. 1709 कार्तिक वदी 4 ( सन 1652) को हुई। राज्याभिषेक के दिन उन्होंने रत्नों का तुलादान किया। महाराणा ने कई राज्यों पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। स्थानीय भील जनजातियों के साथ शांति स्थापित कर उन्हें अपनी सेना में भर्ती किया। और रक्षा को मजबूत किया। महाराणा के शासनकाल में जब औरंगजेब ने वल्लभ सम्प्रदाय की गोवर्धन की मुख्य मूर्तियों को तोड़ने की आज्ञा दी तब भगवान द्वारकाधीश जी की मूति मेवाड़ में लाई गई और कांकरोली में उसकी प्रतिष्ठा कराई गई। गोवर्धन में स्थित श्रीनाथजी के गोसांई ठाकुरजी (श्रीनाथजी) को लेकर बूंदी, कोटा, पुष्कर, किशनगढ़ तथा जोधपुर गये, परन्तु जब किसी राजा ने औरंगजेब के भय से उन्हें अपने राज्य में रखना स्वीकार नहीं किया। तब गुसांई दामोदर का काका गोपीनाथ चांपासणी से महाराणा राजसिंह के पास आए। वह मूर्ति मेवाड़ में लाई गई और सिहाड़ (नाथद्वारा) गांव में स्थापित की गई।

महाराणा राजसिंह प्रथम ने ही राजसमुद्र तालाब (अब राजसमंद झील) के साथ नौचौकी के पास पर्वत पर महल तथा कांकरोली के पासवाली पहाड़ी पर द्वारकाधीश जी का मन्दिर बनवाया। राजनगर नामक कस्बा भी उन्होंने बनाया। राजसमुद्र तालाब के निर्माण में उस समय 1 करोड़ 5 लाख 7 हजार 608 रुपए का खर्चा आया। नौ चौकी पर 25 शिलाओं पर खुदा हुआ ‘राजप्रशस्ति महाकाव्य’ लगवाया, जो विश्व के सबसे बड़े शिलालेख हैं। उन्होंने ने ही रंग सागर और जनासागर झील जिसे अब बड़ी का तालाब कहते हैं, का निर्माण कराया। महाराणा राजसिंह रणकुशल, साहसी, वीर, निर्भीक, सच्चा क्षत्रिय, बुद्धिमान, धर्मनिष्ठ और अपने पिता जगतसिंह की तरह ही बडे ही दानी थे।

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