डॉ. हड़ताल के खिलाफ किसी नैतिकता से पैरवी कर रहे हैं एक माह तक कोर्ट का बहिष्कार करने वाले वकील

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जयपुर, 31 मार्च। राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रदेश में निजी चिकित्सकों की हड़ताल के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए वकीलों की खिंचाई की है। एक्टिंग सीजे एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस अनिल उपमन की खंडपीठ ने कहा कि चिकित्सकों की हड़ताल को गलत बताने वाले वकील किस नैतिकता से पैरवी कर रहे है। ये वो ही वकील है जो एक सप्ताह पहले ही एक माह के न्यायिक बहिष्कार के बाद अदालतों में लौटे हैं। अदालत ने कहा कि वकीलों को किसी भी हड़ताल के खिलाफ पैरवी नहीं करनी चाहिए। क्योंकि वे खुद न्यायिक बहिष्कार के नाम पर हड़ताल पर चले जाते हैं। इसके साथ ही अदालत ने मामले में राज्य सरकार, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन व राजस्थान मेडिकल कौंसिल सहित चिकित्सकों की एसोसिएशन से 11 अप्रैल तक जवाब मांगा है। इसके साथ ही अदालत ने महाधिवक्ता को यह भी बताने को कहा है कि राज्य सरकार और चिकित्सकों के बीच हुई वार्ताओं का ब्यौरा भी पेश किया जाए। एक्टिंग सीजे एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस अनिल उपमन की खंडपीठ ने यह आदेश प्रमोद सिंह व अन्य की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को कहा कि उन्होंने बिना होमवर्क किए यह जनहित याचिका पेश की है। उन्हें राइट टू हेल्थ बिल की पूरी जानकारी नहीं है और ना ही उन्होंने इस संबंध में कोई जानकारी जुटाई है। यहां तक की उन्होंने इस संबंध में प्रकाशित किसी खबर की कटिंग तक पेश नहीं की है। वहीं महाधिवक्ता ने कहा कि बिल विधानसभा में लंबी प्रक्रिया के बाद पारित हो गया है। ऐसे में यदि उसके प्रावधान गलत लगते हैं तो उसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है। इसके साथ ही सरकार के मंत्री पहले की कह चुके हैं कि यह व्यापक जनहित का कानून है और इसे वापस नहीं लिया जाएगा। सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता पीसी जैन की ओर से कहा कि याचिका के लंबित रहने के दौरान बिल को स्थगित रखा जाए। इससे इनकार करते हुए अदालत ने संबंधित पक्षकारों से जवाब तलब किया है। जनहित याचिका में निजी चिकित्सकों की हड़ताल को गलत बताने के साथ ही हडताली डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ ही सरकारी अस्पतालों में संसाधनों को पूरा करने की गुहार की गई है।

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