वैध प्राधिकारी के समक्ष सद्भावना से की गई शिकायत में लगाए गए आरोप मानहानि का अपराध आकर्षित नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने सब डिविजनल मजिस्ट्रेट के समक्ष अपनी शिकायत में मानहानिकारक आरोप लगाने के आरोपी एक व्यक्ति के खिलाफ मानहानि का मामला रद्द कर दिया। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि किसी भी व्यक्ति के खिलाफ आरोप की विषय-वस्तु के संबंध में उस व्यक्ति पर कानूनी अधिकार रखने वाले लोगों में से किसी के खिलाफ सद्भावना में आरोप लगाना मानहानि नहीं है।

इस मामले में किशोर बालकृष्ण नंद ने अनुमंडल दंडाधिकारी को संबोधित लिखित शिकायत दर्ज करायी थी, जिसमें कहा गया था कि एक व्यक्ति ने कुछ जमीन पर अतिक्रमण कर दुकान बना ली है। इस शख्स ने मानहानि का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई। मजिस्ट्रेट ने शिकायत पर संज्ञान लिया और किशोर को समन जारी किया। बाद में मजिस्ट्रेट ने इस समन को ‘रिकॉल’ किया। सत्र न्यायालय ने इस ‘रिकॉल’ आदेश को रद्द कर दिया और हाईकोर्ट ने भी इसकी पुष्टि की।

शीर्ष अदालत के समक्ष अपील में अपीलकर्ता-अभियुक्त ने तर्क दिया कि चूंकि कथित मानहानिकारक शब्द या बयान एसडीएम जैसे सार्वजनिक प्राधिकारी को संबोधित लिखित रूप में की गई शिकायत में किए गए हैं और सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, इसलिए यह आईपीसी की धारा 499 की कठोरता को आकर्षित नहीं करेगा। अदालत ने आईपीसी की धारा 499 के प्रावधानों, विशेष रूप से आठ अपवादों का उल्लेख किया। पीठ ने कहा, “हमारा विचार है कि कथित अपराध के लिए अपीलकर्ता पर मुकदमा चलाने के लिए कोई मामला नहीं बनता है। ऐसी कोई मानहानि नहीं है। आईपीसी की धारा 499 का अपवाद 8 स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि अच्छे विश्वास के साथ आरोप लगाना मानहानि नहीं है किसी भी व्यक्ति के खिलाफ उन लोगों में से किसी के खिलाफ जिनके पास आरोप के विषय-वस्तु के संबंध में उस व्यक्ति पर वैध अधिकार है। शिकायत में लगाए गए आरोपों को ध्यान में रखते हुए भी हम संतुष्ट हैं कि मानहानि का कोई मामला नहीं बनाया गया है।”

मामले का विवरण : किशोर बालकृष्ण नंद बनाम महाराष्ट्र राज्य | 2023 आईएनएससी 675

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