सरकार बनी तो पॉवरफुल रहेंगे पूनिया, प्रदेश में बड़ा पद मिलने के आसार

Share:-


जयपुर, 3 अप्रैल (ब्यूरो) : भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को उपनेता प्रतिपक्ष बनाना डैमेज कंट्रोल की कवायद है। राजनीतिक जानकार वीरेंद्र सिंह की मानें तो पार्टी ने उन्हें यह पद देकर फिलहाल जाट, संघ नेताओं, पूनिया व कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने का प्रयास किया है। साल 2023 में यदि भाजपा की सरकार बनी तो निश्चित रूप से पूनिया को पॉवरफुल मंत्रालय देकर उनके गिले-शिकवे दूर किए जा सकते हैं। या कहें कि उनके साढ़े तीन साल के प्रदेशाध्यक्ष कार्यकाल का इनाम पार्टी चुनाव पश्चात देगी।
उपनेता या प्रदेशाध्यक्ष से निकलेगा रास्ता
प्रदेशाध्यक्ष जो पूरी पार्टी की अगुवाई करता था और अब उपनेता प्रतिपक्ष बनाने से क्या भाजपा के अंदर सब कुछ ठीक चल रहा है के सवाल पर राजनीतिक जानकार वीरेंद्र सिंह कहते हैं कि पार्टी में कोई पद बड़ा या छोटा नहीं होता। हर पद की अपनी मर्यादा होती है। पार्टी ने पूनिया के लिए कुछ सोच रखा होगा, इसलिए उन्हें प्रदेश में ही दायित्व दिया है ताकि सत्ता आने पर वे सरकार में अहम भूमिका में रह सकें। यदि राष्ट्रीय कार्यकारिणी या केंद्र में वे जाते तो फिर प्रदेश में उनकी वापसी मुश्किल थी। अब चुनावी साल है और इस समय पार्टी किसी को नाराज नहीं करना चाहती। जातिगत समीकरण साधना ही मुख्य लक्ष्य होता है, इसलिए कई बार ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं।

पद-कुर्सी की लालसा नहीं : पूनिया
मैं किसान का बेटा हूं और आमेर क्षेत्र मेरे लिए सबसे अहम है। पद-कुर्सी की कभी लालसा नहीं रही। पार्टी ने जो जिम्मेदारी दी, उसका ईमानदारी से निर्वाहन किया और आगे भी करता रहूंगा। पार्टी का निर्णय मेरे लिए अहम है और उसी के अनुसार काम किया और आगे भी करते रहेंगे। उपनेता प्रतिपक्ष बनाया तो यह जिम्मेदारी भी निभाऊंगा और आगे जो शीर्ष नेतृत्व आदेश देगा उसका पालन करूंगा। मेरा किसी से कोई विवाद, गुटबाजी नहीं है। एकजुटता के साथ चुनावी मैदान में कूदेंगे और एतिहासिक जीत दर्ज कराएंगे।

चुनाव अभियान समिति अध्यक्ष के लिए जोर-अजमाइश
भाजपा शीर्ष नेतृत्व चाहे लाख गुटबाजी की खबरों को खारिज करे, लेकिन अंदरखाने सब ठीक नहीं चल रहा। पार्टी में अब चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनने के लिए लॉबिंग शुरू हो गई है। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, सतीश पूनिया इसके लिए सक्रिय हैं। इस पद के माध्यम से पॉवरफुल केंद्र बनने की कोशिश की जा रही है। हालांकि भाजपा शीर्ष नेतृत्व जिस पर एतबार करता है और जो उनकी सुनेगा, उसे ही यह पद मिलने के आसार हैं। पूर्व सीएम व दिल्ली के बीच व्याप्त दूरियों से सभी वाकिफ हैं। इसी के चलते शीर्ष नेतृत्व भी दूसरे पहलुओं पर विचार कर रहा है। भाजपा अपने निर्णयों से हमेशा चौंकाती रही है। चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष के नाम को लेकर भी ऐसा ही सोचा जा रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *