चुनाव आयोग ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव का एलान कर दिया है। 10 मई को यहां वोट डाले जाएंगे। अभी यहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) सत्ता में है। सूबे में चुनावी सरगर्मी तेज हो गई है। राजनीतिक दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है। राहुल गांधी ने यहां 20 दिन तक भारत जोड़ो यात्रा की। राहुल की इस यात्रा को काफी समर्थन भी मिला। भाजपा के दिग्गज नेता भी तीन महीने से कर्नाटक में डटे हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद तीन महीने में सात बार कर्नाटक का दौरा कर चुके हैं। गृहमंत्री शाह ने भी 10 से ज्यादा सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरकत कर चुके हैं।
पहले कर्नाटक का समीकरण जान लेते हैं
कर्नाटक के अंदर 2018 में जब विधानसभा चुनाव हुए थे तो भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। पार्टी को स्पष्ट बहुमत तो नहीं था, लेकिन 104 सीटों पर जीत जरूर मिली थी। सरकार बनाने के लिए कर्नाटक में बहुमत का आंकड़ा 113 है। बहुमत का आंकड़ा न होने के बावजूद भाजपा के बीएस येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। हालांकि, वह सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाए। छह दिन बाद ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
इसके बाद कांग्रेस और जेडीएस ने गठबंधन करके सरकार बनाई। हालांकि, एक साल बाद ही दोनों पार्टियों के कई विधायकों ने पाला बदल लिया। इन विधायकों की मदद से भाजपा ने सरकार बनाई। बीएस येदियुरप्पा राज्य के मुख्यमंत्री बने। लेकिन 2021 में भाजपा नेतृत्व ने उनकी जगह बसवराज बोम्मई को सीएम बना दिया। पार्टी बसवराज के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने जा रही है।
भाजपा के सामने कौन सी चुनौतियां?
2021 में बीएस येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया। बताया जाता है कि बोम्मई को येदियुरप्पा की सलाह पर ही सीएम बनाया गया। हालांकि, उसके बाद से येदियुरप्पा जरूर धीरे-धीरे साइड लाइन चले गए। कर्नाटक में येदियुरप्पा की पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है। खासतौर पर लिंगायत समुदाय में उन्हें काफी पसंद किया जाता है।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष भी कर्नाटक से ताल्लुक रखते हैं। इस चुनाव में वह भी काफी एक्टिव हैं। कुछ समय पहले तक बीएल संतोष, बीएस येदियुरप्पा और बोम्मई के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। भाजपा में तीन फ्रंट खुल चुके थे। बोम्मई कैबिनेट के भी कुछ सीनियर मंत्री भी मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। इनका एक अलग मोर्चा बन गया है।
गृहमंत्री अमित शाह ने इसे ठीक करने के लिए कमान संभाली। शाह ने इस गुटबाजी को खत्म करने के लिए काफी काम किया है। हालांकि, अभी भी कुछ चुनौतियां हैं, जिनसे भाजपा को दो चार होना पड़ रहा…
1. संगठन और सरकार में तालमेल की कमी: ये एक बड़ी चुनौती है। आमतौर पर भाजपा को सरकार और संगठन के बीच तालमेल बनाए रखने के लिए जाना जाता है, लेकिन कर्नाटक में इसके उलट होता है। यहां सरकार और संगठन के बीच तालमेल की भारी कमी बताई जाती है।
2. नेतृत्व की कमी : येदियुरप्पा के बाद अब पार्टी में कोई ऐसा चेहरा नहीं है, जिसके नाम पर पूरी पार्टी एकजुट हो सके। कुल मिलाकर प्रदेश स्तर पर पार्टी में नेतृत्व की बड़ी कमी है। इसी के चलते कई नेता पार्टी छोड़कर कांग्रेस और जेडीएस का दामन भी पकड़ रहे हैं।
3. भ्रष्टाचार के आरोप: भाजपा सरकार पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। हाल ही में भाजपा के एक विधायक के बेटे को विजिलेंस ने घूस लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा था। अब भाजपा विधायक भी इस मामले में गिरफ्तार हो चुके हैं। विपक्ष लगातार इस मुद्दे पर भाजपा को घेरने में जुटा है।
कांग्रेस के सामने क्या हैं चुनौतियां?
कर्नाटक में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 20 दिनों तक रही। इस यात्रा के बाद कर्नाटक कांग्रेस ने नारा दिया कि ‘अबकी बार, कांग्रेस 150 पार’। राहुल ने कर्नाटक के अंदर काफी रणनीति तैयार की। यात्रा के दौरान सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी भी पहुंचीं।
दक्षिणी कर्नाटक का यह पूरा हिस्सा वोक्कालिंगा समुदाय का गढ़ माना जाता है। जो मूल रूप से जेडीएस से जुड़ा है। ऐसे में जेडीएस का हिस्सा पाने के लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही अपनी अपनी निगाहें लगाए बैठी हैं। खासकर मैसूर इलाके में पारंपरिक रूप से लड़ाई कांग्रेस और जेडीएस के बीच में है। हालांकि, यहां बीजेपी अपना पैर जमाने की कोशिश कर रही है।
कांग्रेस ने पिछले छह महीने के अंदर कर्नाटक में खूब जोरआजमाइश की है। राहुल की रैली से इसे समझा जा सकता है, हालांकि यहां भी उठापठक तेज है। पार्टी बड़े पैमाने पर भाजपा के नाराज नेताओं को अपने पाले में करने में जुटी है, लेकिन इससे खुद की पार्टी में नाराजगी बढ़ती जा रही है। डीके शिवकुमार के अलावा पार्टी में कोई ऐसा नेता नहीं है जो सभी नेताओं को एकजुट रख सके। ये चुनाव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की अग्निपरीक्षा भी है। खरगे कर्नाटक से ही ताल्लुक रखते हैं।
सतीश के अनुसार, कांग्रेस और जेडीएस अलग-अलग चुनाव लड़ रही है। आम आदमी पार्टी ने भी मैदान में उतरने का एलान किया है। लेफ्ट पार्टियां भी मैदान में हैं। इन सभी का फोकस मुसलमान वोटर्स पर है। ऐसे में मुस्लिम वोटों के बंटने की चुनौती भी कांग्रेस के सामने है। भाजपा सरकार ने हाल ही में सूबे में मुसलमानों को मिलने वाले चार प्रतिशत आरक्षण को खत्म कर दिया। अब जेडीएस ने एलान किया है कि अगर वह सत्ता में आते हैं तो फिर से ये आरक्षण लागू करेंगे।