करणी सेना के संस्थापक और राजपूत समाज के आक्रामक नेता लोकेन्द्र सिंह कालवी का अंतिम संस्कार मंगलवार को पैतृक गांव कालवी में किया गया। उनके बड़े पुत्र भवानी सिंह ने मुखाग्नि दी। इससे पहले कालवी का शरीर अंतिम दर्शन के लिए उनके गांव में रखा गया जहां प्रदेशभर से आए हजारों लोगों ने श्रद्धांजलि अर्पित की। बता दे कि कालवी का निधन सोमवार देर रात एसएमएस अस्पताल में कार्डियक अरेस्ट के कारण हो गया था। सुबह उनके निधन का समाचार मिलते ही राज्यभर के राजपूत समाज में शोक की लहर दौड़ गई। कालवी के निधन पर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया सहित कई नेताओं ने शोक व्यक्त किया है।
बता दें कि करणी सेना की स्थापना करने वाले लोकेंद्र सिंह कलवी कई वर्षों से अपने समाज के हित और मांगों को लेकर मुखर थे। राजपूत समाज के मुददों को लेकर कालवी अक्सर ही सुर्खियों में बने रहते थे। राजपूत समाज की अस्मिता को लेकर वह काफी सजग और मुखर रहते थे। उनके पिता कल्याण सिंह कलवी राज्य और केंद्र में मंत्री भी रहे थे। उनके निधन के बाद लोकेन्द्र सिंह कालवी ने कुछ समय राजनीति में हाथ आजमाए थे। उन्होंने नागौर से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था, हालांकि, इस चुनाव में उन्हें हार मिली थी। साल 1998 में उन्होंने भाजपा प्रत्याशी के तौर पर बाड़मेर से चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार भी उन्हें शिकस्त मिली थी।
वहीं साल 2003 में देवी सिंह भाटी तथा अन्य समाजों के लोगों के साथ मिलकर उन्होंने एक सामाजिक मंच बनाया और अगड़ी जातियों के लिए आरक्षण देने की मांग को लेकर मुहिम छेड़ी थी। सामाजिक न्याय मंच की मुहीम असफल होने के बाद वे समाज के कार्यों में जुट गए थे और उन्होंने करणी सेना का निर्माण किया था।
कालवी के नेतृत्व में 2008 में फिल्म मेकर आशुतोष गोवारिकर की फिल्म ‘जोधा अकबर’ की रिलीज का पूरे राजस्थान में विरोध किया था। इसी तरह एकता कपूर के सीरियल जोधा अकबर का विरोध करते हुए जयपुर में लिटरेचर फेस्टिवल में काफी हंगामा किया था। साल 2018 में करणी सेना ने फिल्म ‘पद्मावती’ की रिलीज का भी विरोध किया था। विरोध में कालवी ने खुले मंच से कहा था कि फिल्म में राजपूत वंश की गरिमा के खिलाफ दिखाया गया है। हालात यहां तक बने कि शूटिंग के सेट पर न केवल तोड़-फोड़ हुई, बल्कि फिल्म निर्माताओं के साथ मारपीट भी की गई। पद्मावत के विरोध की आग राजस्थान के अलावे अन्य राज्यों में भी पहुंच गई थी, जिसकी वजह से कई राज्यों में फिल्म को रिलीज नहीं किया गया।
इसके अलावा कालवी समाज से जुड़े प्रत्येक आन्दोलन में काफी मुखर रहे थेे। आरक्षण और इतिहास के साथ छेड़छाड़ होने वाली फिल्मों को लेकर किये आंदोलन के बाद वर्ष 2017 का आनंदपाल प्रकरण में करणी सेना ने सरकार को समाज की ताकत भी दिखाई। ऐसा पहली बार था कि अलग-अलग धड़ों में बंटी करणी सेना भी एक मंच पर आ गई थी। 2003 के बाद संभवत: राजपूत समाज की ओर किया गया ये बड़ा आंदोलन था, जिसमे तत्कालीन भाजपा सरकार को भी बैकफुट पर ला दिया था।