जयपुर, 22 अगस्त। राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कहा है कि प्रदेश स्तर पर सडक़ों और फुटपाथ से अतिक्रमण हटाने का अभियान चलाना चाहिए। वहीं यदि अतिक्रमण को संरक्षण देने में किसी अफसर या पुलिस अधिकारी की भूमिका सामने आती है तो उस पर भी उचित कार्रवाई की जा सकती है। अदालत ने कहा कि अतिक्रमण करने वालों के प्रति किसी तरह की सहानुभूति नहीं दिखाई जा सकती। अदालत ने यूडीएच के अतिरिक्त मुख्य सचिव को कहा है कि वे अतिक्रमण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दिए निर्णय को ध्यान में रखते हुए शहरों और कस्बों के नगर निगमों व नगर परिषदों को अतिक्रमण हटाने के लिए निर्देश जारी करें। जस्टिस एसपी शर्मा और जस्टिस संजीत पुरोहित की खंडपीठ ने यह आदेश विनोद कुमार बोयल की जनहित याचिका को पुनर्जीवित करते हुए दिए।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से प्रार्थना पत्र पेश कर अवमानना कर्ता के रूप में एक अधिकारी को पक्षकार बनाने की गुहार की। अदालत ने प्रार्थना पत्र खारिज करते हुए कहा कि अवमानना के मामले में किसी व्यक्ति को बाद में पक्षकार बनाने का कोई नियम नहीं है। जिस अधिकारी को निर्देश दिए गए थे, अवमानना प्रकरण उस तक ही सीमित रहता है।
अदालत ने कहा कि एसीएस, यूडीएच और जयपुर विकास प्राधिकरण शहर को जोड़ने वाले मार्गो पर किए गए अतिक्रमणों को चिन्हित करने के दौरान मास्टर प्लान व जोनल डवलपमेंट प्लान में तय मानकों का ध्यान रखेंगे। वहीं यदि रोड या फुटपाथ पर अतिक्रमण पाया जाता है तो उसे हटाया जाए। अदालत ने कहा कि सडक़ों और फुटपाथ पर कोई भी अतिक्रमण नहीं होना चाहिए। किसी ग्राम प्राधिकारी की ओर से जारी पट्टा या कोर्ट का आदेश अतिक्रमण हटाने में आड़े नहीं आएगा। कोई भी कोर्ट अतिक्रमण को प्रोत्साहित करने के लिए अधिकृत नहीं है। अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि अतिक्रमण हटाने से पूर्व अतिक्रमण करने वाले को 7-8 दिन का समय दिया जाना चाहिए, ताकि वह अपने स्तर पर कब्जा हटा सके। वहीं इसके बाद प्रशासन कब्जा हटाए और उसमें होने वाला खर्च भी अतिक्रमी से वसूल करे। इसके साथ ही अदालत ने मामले की सुनवाई 7 अक्टूबर को रखते हुए जेडीए सहित अन्य विकास प्राधिकरणों की प्रवर्तन शाखा के मुखियाओं को पेश होने को कहा है।
2025-08-22