नीमराना ।नीमराना में पंचायत समिति गेट के बाहर बीजेपी कार्यकर्ताओं ने आज नीमराना बहरोड को जिला नहीं बनाने को लेकर धरना दिया एवं एसडीएम मुकुट सिंह को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिया गया। बीजेपी जिला अध्यक्ष उम्मेद सिंह भाया ने संबोधित करते हुए कहा कि गहलोत सरकार ने घोषणा पत्र में कहीं भी एक साथ १९ जिले बनाने की घोषणा नहीं की हुई थी जबकि कल शुक्रवार को एक साथ १९ जिले बनाकर जनता को झूठे आश्वासन में फांसने का कार्य किया है। बहरोड नीमराना को जिला नहीं बनाने का हम पुरजोर विरोध करते हैं। कोटपुतली हमें जिला स्वीकार नहीं है। अन्य वक्ताओं ने भी कोटपुतली जिला में नीमराना बहरोड़ को शामिल करने का विरोध जताया। धरने के दौरान बहरोज्
गहलोत के सियासी दांव से त्रिशंकु विधानसभा के बन रहे आसार या रचेगा इतिहास
रिवाज-परंपरा तोडऩे की कोशिश में , ११३ विधानसभा सीटों पर साधा निशाना
-अपनों को खुश करने के साथ ही भाजपा के गढ़ में भी सेंधमारी का प्रयास
-तेलंगाना सीएम के. चंद्रशेखर के २१ जिले का एलान कर चुनाव फतेह करने वाले रास्ते पर चल रहे गहलोत
-बांसवाड़ा को संभाग व सलंबूर को जिला बनाकर आदिवासियों से नजदीकी का प्रयास
-दो हजार करोड़ के बजट से विकसित होंगे नए जिले तो फिर रेवन्यू भी बढऩे के आसार
-एक्सपर्ट की सोच कि आर्थिक भार एक बार सहना होगा, लेकिन विकास के पथ पर अग्रसर होंगे जिले
जयपुर, १८ मार्च (ब्यूरो) : चुनावी साल में चल रहे प्रदेश में सीएम अशोक गहलोत ने भी सियासी दांव चलते हुए १९ नए जिले व ३ संभाग का एलान कर सभी को हैरान कर दिया। गहलोत ने अपनी जादूगरी का कमाल दिखाते हुए अपनों के साथ ही विपक्ष को भी हैरान कर मौन साधने पर विवश कर दिया। राजनीतिक दांव चलते हुए सीएम ने प्रदेश की करीब ११३ विधानसभा सीटों का गणित सुधारने की कोशिश की है। इसी के माध्यम से उन्होंने भाजपा के गढ़ में भी सेंधमारी की कोशिश की है। गहलोत ने जो दांव चला है वह भाजपा के लिए किसी सदमे से कम नहीं है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस नए दांव से कांग्रेस को कई सीटों पर फायदा होगा तो कुछ पर नुकसान भी हो सकता है। इस स्थिति के चलते इस बार त्रिशंकु विधानसभा बनने के आसार बनते नजर आ रहे हैं या फिर रिवाज-परंपरा बदल भी सकती है। दूसरी ओर एक्सपर्ट की सोच है कि नए जिलों के गठन से एक बार तो प्रदेश पर आर्थिक भार पड़ेगा, लेकिन भविष्य के लिए जिलों में विकास के नए द्वार खुल जाएंगे और लोगों को काफी फायदे होंगे। इसी के लिए सरकार ने नए जिलों में डवलपमेंट को लेकर दो हजार करोड़ का बजट आवंटित करने का एलान किया है। साथ ही नए जिले बनेंगे तो रेवन्यू जनरेट होना भी शुरू होगा।
राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले गहलोत ने २०१६ में तेलंगाना सीएम के चंद्रशेखर राव ने विधानसभा चुनाव के पहले एक साथ २१ जिलों के गठन का एलान कर सभी को चौंकाया था। चुनाव के पहले इस्तीफा दिया और फिर चंद्रशेखर ने इन्हीं नए जिलों के बल पर सत्ता में वापसी की थी। कुछ इसी तर्ज पर अब सीएम गहलोत भी चलते हुए नजर आ रहे हैं। सियासी दांव चलते हुए गहलोत ने अपनी इस सौगात से जयपुर की १९, जोधपुर की १०, अलवर की ११, अजमेर की ८, श्रीगंगानगर की ६, बाड़मेर की ७, भरतपुर की ७, नागौर की १०, संवाईमाधोपुर की ४, जालोर की ५, उदयपुर की ७, बांसवाड़ा की ५, पाल की ६, सीकर की ८ विधानसभा सीटों पर निशाना साधा है। इसके साथ ही उन्होंने अपने नाराज मंत्री सुख्रराम बिश्नोई को सांचोर, राजेंद्र यादव को कोटपूतली-बहरोड़, बिश्वेंद्र सिंह को डीग, प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिह डोटासरा को सीकर संभाग, सलाहकार रामकेश मीणा को गंगापुर शहर और बाबूलाल नागर को दूदू , डिप्टी व्हिप महेंद्र चौधरी को कुचामन सिटी-डीडवाना देकर उनकी नाराजगी दूर करने की भी कोशिश की है।
गहलोत ने अपने करीबी रघुवीर मीणा को सलंबूर, बसपा से कांग्रेस में आए दीपचंद्र खेरिया को खेरथल] बांसवाड़ा को संभाग व सलंूबर को जिला बनाकर आदिवासियों के बीच घुसपैठ करने की कोशिश की है। साथ ही गुजरात प्रभारी व पूर्व मंत्री रघु शर्मा को केकड़ी जिला देकर उनकी नाराजगी भी दूर करने का प्रयास किया है। इसी प्रकार जोधपुर में तीन जिले बनाकर भाजपा के गढ़ में सेंधमारी की कोशिश की गई है। पाली, जालोर, सिरोही भाजपा के गढ़ हैं और इसी के चलते सीएम ने सांचोर को जिला व पाली को संभाग बनाकर इन एरिया में अपनी पैठ मजबूत करने का प्रयास किया है।
श्रीगंगानगर संभाग के अनूपगढ़ में भी भाजपा को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया है। एक्सपर्ट रिटायर्ड आईएएस विजेंद्र सिंह का कहना है कि दो हजार करोड़ से नए जिलों का गठन हो सकता है। आर्थिक भार पड़ेगा लेकिन एक बार जिले में विधिवत काम शुरू होने के बाद रेवन्यू जनरेट के कई रास्ते खुलेंगे और डवलपमेंट तेजी से होगा। छोटे जिले होने से आखरी व्यक्ति एवं घर तक प्रशासन व सरकार की पहुंच होगी। राजनीतिक दृष्टिकोण की बात करें तो जो लोग नए जिले की मांग कर रहे थे वह खुश हैं, जिनकी मांग पूरी नहीं हुई वह नाराज हैं और जिनके एरिया बिना मांग से इधर से उधर हुए वह भी नाराज हैं। वर्तमान स्थिति में यदि वोटिंग होती है, तो कांग्रेस को कहीं से फायदा तो कहीं से नुकसान भी होगा। कोई चमत्कार नहीं हुआ या फिर लोगों के मन में रिवाज-परंपरा की बात रही तो अलग बात है नहीं तो फिर विशेषज्ञ फिलहाल की स्थिति में त्रिशंकु विधानसभा का आंकलन कर रहे हैं। इस स्थिति में एक बार फिर हनुमान बेनीवाल, किरोड़ीलाल मीणा एवं निर्दलीय की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी।
प्रदेश के आईएएस के पास दूसरे प्रदेश की तुलना में पांच गुना अधिक एरिया
क्षेत्रफल के हिसाब से देखा जाए तो जहां अन्य राज्यों में एक आईएएस को करीब २०० से २१५ वर्ग किलोमीटर का इलाका संभालना होता है। दूसरी ओर राजस्थान में एक आईएएस अफसर के जिम्मे अन्य राज्यों से करीब ५ गुना ज्यादा १०९० वर्ग किलोमीटर इलाका होता है। राजस्थान में क्षेत्रफल और आबादी के हिसाब से लगभग ३६५ आईएएस अफसरों का कैडर निर्धारित होना चाहिए। राजस्थान कैडर में अभी करीब १०० और आईएएस की जरूरत है। राजस्थान कैडर में आईएएस के ३१३ पद स्वीकृत हैं। इनके एवज में अभी करीब २४८ अफसर ही काम कर रहे हैं। हरियाणा की बात करें तो वहां एक करोड़ लोगों पर ७७ आईएएस पद आवंटित हैं। वहीं पंजाब में ७७, एमपी में ५२, तमिलनाडू में ४९, छत्तीसगढ़ में ६० जबकि राजस्थान में केवल ३९ पद ही आवंटित हैं। देश के जिन तीन राज्यों में तय कैडर से १०० पदों से ज्यादा कम हैं, उनमें राजस्थान तीसरे नंबर पर है। यूपी में २०८, बिहार में १२३ तो राजस्थान में १०९ अधिकारियों की कमी मानी जा रही है।
दिल्ली जाकर सीएम रिवाज-परंपरा बदलने का गणित समझाएंगे या जनता की सहानूभुति लेने की है कोशिश
शनिवार शाम को सीएम अशोक गहलोत दिल्ली जाकर हाईकमान के सामने प्रदेश में रिवाज-परंपरा बदलने का पूरा गणित समझाएंगे या फिर जनता की सहानुभूति लेने की जुगत लगा रहे हैं। एक साथ १९ जिले व तीन संभाग के साथ ही अभूतपूर्व बजट तीन दिन तक पेश कर राजस्थानियों के दिल तक जगह बनाने की अपनी जादूगरी से भी अवगत कराएंगे। गहलोत की गुगली से सचिन पायलट बोल्ड हो गए, लेकिन भाजपा तो पूरे मामले में निरुत्तर नजर आ रही है। गहलोत की जादूगरी के चलते इस समय भाजपा अब नए सिरे से चुनावी रणनीति बनाने के साथ ही सीएम को घेरने की रणनीति बनाने में जुट गई है। सूत्रों की मानें तो गहलोत ने जो भी चाल चली है उसके लिए हाईकमान को पहले ही अपने विश्वास में ले लिया था। इसे चर्चा कहें या फिर अफवाह कि सीएम के कई करीबियों एवं अधिकारियों की फोन टेपिंग की जांच करीब-करीब पूरी हो गई है। चुनाव के पहले जांच एजेंसी उन पर शिकंजा कस सकती है। सीएम ने यह दांव चलकर प्रदेश में ऐसा माहौल बना दिया है कि यदि इस मामले में उनका नाम आया भी तो जनता की उनके प्रति सहानूभुति रहेगी कि बेहतर काम करने एवं चुनाव जीतने की आशंका के चलते केंद्रीय जांच एजेंसी उन पर बेवजह कार्रवाई कर रही है।
विधानसभा व लोकसभा क्षेत्र एवं चुनाव पर असर नहीं
नए जिले व संभाग बनने से लोगों के बीच चर्चा है कि क्या इसका असर लोकसभा व विधानसभा चुनाव व क्षेत्र पर भी पड़ेगा। एक्सपर्ट के अनुसार इसका असर चुनाव पर कतई नहीं होगा। कारण चुनाव क्षेत्र का परिसीमन आबादी के आधार पर होता है ना कि क्षेत्र या जिले के आधार पर। इसके चलते प्रदेश में २०० विधानसभा सीट तो लोकसभा की २५ सीट ही रहेंगी और पूर्व की भांति ही चुनाव प्रक्रिया होगी।
राजधानी जयपुर ही रहेगी: रामलुभाया
नए संभाग एवं जिलों के गठन का एलान होने के साथ ही जयपुर के अंदर दो जिले बनने से राजधानी को लेकर चर्चाओं व अफवाहों का बाजार गर्म है। नए जिले के गठन को लेकर सरकार द्वारा गठित हाईपावर कमेटी के चेयरमैन आईएएस रामलुभाया ने १० मार्च को अपनी अंतरिम रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। हालांकि अभी जिलों को लेकर कुछ मांगों को विश्लेषण एवं अंतरिम रिपोर्ट कमेटी को देना है। रही बात राजधानी की तो रामलुभाया का कहना है कि देश की राजधानी के अंदर तो ११ जिले हैं और फिर भी वह राजधानी है, तो उसी तर्ज पर प्रदेश की राजधानी जयपुर ही रहेगी। रही बात जयपुर उत्तर व दक्षिण जिले की तो उसकी संरचना कुछ इस प्रकार हो सकती है। जयपुर उत्तर जिले के अंदर आदर्श नगर, किशनपोल, सिविल लाइंस, आमेर, हवामहल, जमवारामगढ़, आमेर तहसील, कूकस, अचरोल का कुछ हिस्सा आ सकता है। रहीं बात दक्षिण जिले की तो उसमें झोटवाड़ा, मालवीय नगर, सांगानेर, बगरू, विद्याधरनगर, शिवदासपुरा, कोटखावदा, गोनेर, बस्सी, चाकसू, सीकर रोड, चौमू व जोबनेर का कुछ हिस्सा शामिल हो सकता है। हालांकि जब तक नए जिले व संभाग को लेकर सरकार का नोटिफिकेशन जारी नहीं हो जाता, तब तक कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।
एक को ५७ साल का इंतजार तो दूसरे को ३५ दिन में मिला जिला
बाड़मेर जिले के लोग बालोतरा को जिला बनाने के लिए पिछले ५७ साल से मांग कर रहे थे, कई बार आंदोलन किए, संघर्ष किया और अंत में विधायक मदन प्रजापत ने जिला नहीं बनाने तक नंगे पैर रहने का संकल्प ले लिया। तब जाकर शुक्रवार को सीएम गहलोत ने विधायक एवं लोगों को राहत देते हुए बालोतरा को जिला बनाने का एलान किया। वहीं दूसरी ओर जयपुर जिले के दूदू कस्बे की बात करें तो यहां पंचायत थी। लोगों की मांग पर गहलोत ने दस फरवरी को इसे नगर पालिका का दर्जा देने की घोषणा की। इसके बाद शुक्रवार को करीब ३५ दिन बाद ही दूदू को जिला बनाने का एलान कर सभी को चौंका दिया। यानि ३५ दिन में ही दूदू के लोगों को जिले की सौगात मिल गई।
नए जिलों के गठन से समस्याएं होंगी छूमंतर
-जिला मुख्यालय लोगों के करीब होंगे, दूरियां कम होंगी
-नए-नए अधिकारियों या साइड लाइन पड़े अधिकारियों को जिम्मेदारी मिलेगी
-अधिकारियों की अपने क्षेत्र में पकड़ मजबूत होगी और अधिकारियों के बीच तालमेल बेहतर होगा
-अधिकारी व जनता के बीच बेहतर तालमेल होगा
-समस्याओं का निदान जल्द होगा और कनेक्टिविटी बढ़ेगी
-डवलपमेंट प्लान बनाने से लेकर उसे सिरे चढ़ाने की प्रक्रिया में तेजी आएगी
-प्रमोशन पाकर नीचे से ऊपर तक पहुंचने वाले अधिकारियों को जिले की जिम्मेदारी मिलेगी।
-ट्रैफिक व्यवस्था का स्थायी निदान निकालने में मदद मिलेगी
-अपराध एवं अपराधियों पर लगाम कसना आसान होगा
-प्रदेश की आबादी ८ करोड़ के करीब है और जिले बढऩे से उसी के अनुपात में सुविधाएं बढऩे की संभावनाएं
-प्लानिंग करने में सुविधा होगी और गांव, पंचायत, ब्लॉक का जिला मुख्यालय से सीधा संपर्क होगा
-छोटे जिले होने से प्लानिंग करने में सुविधा होगी, बजट बनाने से लेकर डवलपमेंट प्लानिंग में आसानी होगी
-न्यायिक व्यवस्था में भी सुधार आएगा
-रोजगार के अवसर बढ़ेंगे
-औद्योगिक इकाईयों की स्थापना में सुविधा होगी
-प्रॉपर्टी के रेट में भी बूम आ सकता है।
नए जिलों के गठन की राह मुश्किलभरी
-जयपुर, कोटा, जोधपुर में सरकार ने दो-दो निगम बना दिए, ताकि लोगों को सहूलियत मिले, लेकिन हुआ इसके विपरीत
-नगर निगम के समान कहीं छोटे-छोटे जिले भी राजनीति की भेंट ना चढ़ जाएं
-नए जिलों में सरकारी कार्यालय निर्माण, स्टॉफ सहित अन्य संसाधन जुटाने में समय व धन दोनों लगेगा
-एक-दूसरे से सटे छोटे-छोटे जिलों में सीमा निर्धारण भी एक बड़ी समस्या बन सकता है
-जिलों की सीमा का निर्धारण सही नहीं होने पर लोगों के काम लंबित होंगे और अधिकारी एक जगह से दूसरी जगह भेजकर बेवजह परेशान कर सकते हैं
-सरकार पर आर्थिक बोझ पड़ेगा
-आईएएस, आईपीएस अधिकारियों की पूर्ति करना आसान नहीं
-पेपर लीक जैसी विकराल समस्या के चलते स्टॉफ की भर्ती बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।
-अस्तित्व में नए जिलों को लाकर पूर्णतया सुचारू रूप से संचालन में काफी समय लगेगा
-अस्थायी काम शुरू करने में भी तीन-चार माह का समय लग सकता है।
तेलंगाना की राह पर राजस्थान
दो जून २०१४ को आंधप्रदेश से अलग कर तेलंगाना का गठन किया गया था। उस समय तेलंगाना के १० जिले थे। अक्टूबर २०१६ में तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव ने भी विधानसभा चुनाव के पहले एक बड़ा दांव चलते हुए एक साथ २१ नए जिलों के गठन का एलान कर पूरे देश को चौंका दिया था। चुनाव के छह महीने पहले चंद्रशेखर ने इस्तीफा दिया और चुनाव में उनकी पार्टी ने बाजी भी मारी। कुछ उसी तर्ज पर राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत भी अपने कदम आगे बढ़ाते नजर आ रहे हैं। उन्होंने भी चुनाव के पहले बड़ा दांव खेलते हुए एक साथ १९ जिले व तीन संभाग का एलान कर चंद्रशेखर के उठाए गए कदम की याद ताजा कर दी। अब बस यह देखना बाकी है कि क्या गहलोत भी विधानसभा चुनाव में चंद्रशेखर के समान बाजी मारेंगे या फिर प्रदेश की रिवाज-परंपरा कायम रहेगी।
कमिश्नरेट सिस्टम रहेगा, लेकिन जिले में एसपी की जगह लेंगे डीसीपी
राजस्थान में जनवरी २०११ में जयपुर एवं जोधपुर में कमिश्नरेट सिस्टम लागू किया गया था। अब जब जयपुर-जोधपुर के अंदर ही दो-दो जिले बनाने का एलान किया गया है, तो फिर कमिश्नरेट को लेकर सवाल उठने लगे हैं। हालांकि एक्सपर्ट की माने तो जयपुर-जोधपुर में कमिश्नर रहेंगे, लेकिन यहां बनने वाले चारों जिले में दो-दो डीसीपी की तैनाती कर दी जाएगी। यानि इन कमिश्नरेट वाले जयपुर-जोधपुर से निकलने वाले जिले में एसपी की पोस्ट नहीं रहेगी। हालांकि इन चारों जिले में एक-एक कलेक्टर की तैनाती अवश्य होगी।
प्रदेश के जिलों की कहानी
एक नवंबर १९५६ को राजस्थान का गठन हुआ और उस समय २६ जिले थे। इसके बाद तत्कालीन सीएम शिवचरण माथुर ने भरतपुर से अलग कर १५ अप्रैल १९८२ को धौलपुर को २७वां जिला बनाया। १० अप्रैल १९९१ को तत्कालीन सीएम भैरोंसिंह शेखावत ने कोटा से अलग कर २८वां जिला बारां, जयपुर से दौसा को अलग कर २९वां जिला और उदयपुर से अलग कर ३०वां जिला राजसमंद को बनाया। १२ जुलाई १९९४ को तत्कालीन सीएम शेखावत ने श्रीगंगानगर जिले से अलग कर हनुमानगढ़ को ३१वां जिला तो १९ जुलाई १९९७ को संवाई माधोपुर से अलग कर करौली को ३२वां जिला घोषित किया। तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे ने २६ जनवरी २००८ को बांसवाड़ा, उदयपुर, चित्तौडग़ढ़ जिले को तोडक़र प्रतापगढ़ को ३३वां जिला बनाया था। अब सीएम गहलोत ने एक साथ 19 जिले का एलान कर दिया और इसके साथ ही अब राजस्थान ने जिलों के मामले में अद्र्धशतक लगा दिया।
एक्सपर्ट व्यू
नए जिले को मिलनी चाहिए आर्थिक आजादी – एक्सपर्ट
१. राजस्थान यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर डॉ. मीना माथुर का कहना है कि सरकार का यह कदम दूरगामी परिणाम लेकर आएगा। बड़े जिलों को बांटकर दो छोटे जिले बनाने के साथ ही उनको वित्तीय आजादी मिलना भी बहुत जरूरी है। नए जिले बनाने का मकसद सिर्फ नए कॉलेज और अस्पताल खुलवाने तक सीमित नहीं रहना चाहिए। बेहद जरूरी है कि नए जिलों को साधन और अधिकार भी मिलें। अगर आम लोगों को नए जिले बनने से होने वाले फायदों की बात करें तो इससे उनकी सभी मुख्यालयों तक पहुंच आसान हो जाती है। वहीं, सडक़, बिजली, पानी जैसी जरूरी सुविधाओं में जिले के छोटे होने के कारण सुधार होता है। इसके लिए सरकार व प्रशासन को मिलकर काम करना होगा और इससे निश्चित रूप से रेवन्यू में वृद्धि होगी। जो टैक्स नहीं देते थे वह भी छोटे जिले होने के कारण नजर आएंगे और इससे रेवन्यू जनरेट होगा।
२. सेवानिवृत्त आईएएस इंदरजीत खन्ना की सोच है कि सरकार के इस फैसले से लोगों को सर्वाधिक फायदा होगा। प्रशासन तक पहुंच आसान हो जाएगी और दूरियां खत्म होंगी। सरकार पर आर्थिक भार पड़ेगा, लेकिन सिर्फ शुरुआत में फिर रेवन्यू जनरेट होने लगेगा। जनता को इस सौगात से बहुत फायदे होंगे और अधिकारियों की पकड़ मजबूत होगी। इससे सिस्टम जहां सुधरेगा वहीं लॉ एंड ऑडर मैंटेन करने में आसानी रहेगी।
३. कांग्रेस नेता एवं पूर्व मंत्री रघु शर्मा का कहना है कि सरकार का बहुत बढिय़ा कदम है। गहलोत की गुगली के आगे सभी फिलहाल पस्त नजर आ रहे हैं। केकड़ी जिला बनाने की मांग कर रहा था और उसे पूरा कर क्षेत्रवासियों को बहुत बड़ी सौगात भी मिली है। चुनाव में निश्चित रूप से कांग्रेस को इसका फायदा मिलेगा। अब लग रहा है कि जिस प्रकार से बेहतर बजट के बाद यह सौगात दी है उससे प्रदेश की परंपरा-रिवाज बदल सकता है।
४. कांग्रेस नेता सुशील असोपा का कहना है कि यदि मोदी मैजिक चला तो फिर गहलोत की सारी योजनाओं पर पानी फिर सकता है। हालांकि नए जिले-संभाग बनाने को लेकर जो संघर्षरत थे वह खुश होंगे, लेकिन जिनके यहां क्षेत्र में बदलाव हुआ इससे नाराज भी हो सकते हैं। किसको क्या फायदा होगा यह तो चुनाव के समय ही पता चलेगा। फिलहाल त्रिशंकु विधानसभा बनने की संभावनाएं बनती नजर आ रही हैं। पूर्व में बनाए गए जिले, तहसील का इतिहास खंगाला जाए तो इसका अधिक फायदा होते नहीं दिखा है।