सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जोशीमठ में हाल ही में भूमि धंसने की घटनाओं से संबंधित याचिका पर विचार करने से इस आधार पर इनकार कर दिया कि उत्तराखंड हाईकोर्ट में पहले ही यह मामला सुनवाई के लिए आ चुका है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ के समक्ष धार्मिक नेता स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती द्वारा दायर जनहित याचिका को सूचीबद्ध किया गया था। शुरुआत में उत्तराखंड के डिप्टी एडवोकेट जनरल जतिंदर कुमार सेठी ने पीठ को अवगत कराया कि हाईकोर्ट पहले से ही इस मुद्दे पर विचार कर रहा है। उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान याचिका के अलावा, इसी मुद्दे को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में एक और याचिका दायर की गई है। इसके अलावा, उन्होंने प्रस्तुत किया कि वर्तमान जनहित याचिका में उठाई गई सभी प्रार्थनाओं पर केंद्र और राज्य सरकार द्वारा कार्रवाई की गई है। सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने यह देखते हुए कि सरकार इस मामले में सक्रिय है या नहीं, इसका आकलन अदालत को करना है, उन्होंने कहा, “सैद्धांतिक रूप से हमें हाईकोर्ट को इससे निपटने की अनुमति देनी चाहिए। यदि हाईकोर्ट मामले को सुन रहा है तो हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते। हम आपको हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता देंगे।” हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील ने इस बात पर प्रकाश डाला कि वर्तमान मामला जोशीमठ के निवासियों के राहत और पुनर्वास से संबंधित है।
आदेश लिखवाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा- “हाईकोर्ट के समक्ष इन कार्यवाहियों के साथ पर्याप्त ओवरलैप होता है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील सुशील कुमार जैन ने कहा कि याचिकाकर्ता राहत और पुनर्वास के पहलुओं पर विशेष रूप से जोर देना चाहता है। संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट, इन कार्यवाहियों में जिन विशिष्ट पहलुओं को उजागर करने की मांग की गई है, उन्हें हाईकोर्ट के समक्ष संबोधित किया जाएगा। तदनुसार हम याचिकाकर्ताओं को या तो उत्तराखंड हाईकोर्ट के समक्ष अनुच्छेद 226 के तहत मूल याचिका दायर करने की अनुमति देते हैं और यह कि इसे लंबित कार्यवाहियों के साथ लिया जा सकता है। चूंकि याचिकाकर्ताओं ने राहत और पुनर्वास से संबंधित मुद्दा उठाया है, हम हाईकोर्ट से अनुरोध करेंगे कि यदि यह इस संबंध में पेश किया जाता है कि हाईकोर्ट उचित प्रेषण के लिए शिकायत पर विचार कर सकता है।”
2023-01-16