जयपुर, 15 जुलाई। राजस्थान हाईकोर्ट ने पट्टा जारी करने की एवज में रिश्वत से जुड़े मामले में हेरिटेज नगर निगम की तत्कालीन मेयर मुनेश गुर्जर की याचिका को खारिज कर दिया है। मुनेश ने अपने तीसरे निलंबन को चुनौती दी थी। जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ चल रही न्यायिक जांच तीन माह में पूरी की जाए। जनता के चुने हुए प्रतिनिधि को अनंतकाल तक निलंबित नहीं रखा जा सकता। अदालत ने कहा कि जनप्रतिनिधि से गरिमा के साथ काम करने की उम्मीद की जाती है। प्रकरण में याचिकाकर्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में आरोप पत्र पेश किया गया है, जिसे समाज के कैंसर के रूप में जाना जाता है। याचिकाकर्ता ने आरोप पत्र को चुनौती नहीं दी है और न्यायिक जांच में भाग लिया है, जिसका निर्णय आना अभी बाकी है। अदालत ने राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि यह बड़ा चौंकाने वाला है कि अदालती आदेश के बावजूद भी सरकार नौ माह तक निष्क्रिय रही और जांच प्रक्रिया कछुए की चाल के समान रही। अदालत ने 1 दिसंबर, 2023 को एक माह में जांच पूरी करने को कहा था, लेकिन जून 2024 को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया। यह अवमानना की श्रेणी में आता है।
याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता को 5 अगस्त, 2023 को निलंबित किया गया था। जिस पर हाईकोर्ट की रोक लगने के बाद राज्य सरकार ने 1 सितंबर को निलंबन वापस ले गया। वहीं 22 सितंबर, 2023 को उसे पुन: निलंबित किया। जिसे 1 दिसंबर को अदालत ने रद्द कर नया जांच अधिकारी नियुक्त करने को कहा। याचिका में कहा गया कि स्वायत्त शासन विभाग ने 12 सितंबर, 2024 को याचिकाकर्ता को नोटिस देकर तीन दिन में जवाब मांगा। जिस पर याचिकाकर्ता ने अपनी आपत्ति पेश कर दी। वहीं 18 सितंबर को दूसरा नोटिस देकर जवाब मांगा। इस पर याचिकाकर्ता ने जांच अधिकारी नियुक्त करने का आदेश मांगा। जिसे विभाग ने नोटिस का जवाब मानते हुए उसे 23 सितंबर, 2024 को निलंबित कर दिया। किसी जनप्रतिनिधि को इस तरह से बिना सुनवाई का मौका दिए निलंबित नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से एएजी जीएस गिल ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ एसीबी ने आरोप पत्र पेश किया है। याचिकाकर्ता ने नोटिस का जवाब देने के बजाए तकनीकी आपत्तियां दी थी। याचिकाकर्ता के खिलाफ न्यायिक जांच लंबित है। एक बार न्यायिक जांच आरंभ होने के बाद प्रारंभिक जांच का कोई महत्व नहीं रहता है। याचिकाकर्ता ने न तो आरोप पत्र को चुनौती दी है और ना ही न्यायिक जांच की प्रक्रिया को, सिर्फ निलंबन को चुनौती दी गई है। ऐसे में याचिका को खारिज किया जाए। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए तीन माह में जांच पूरी करने को कहा है।
2025-07-10