जयपुर, 19 सितंबर। राजस्थान हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट एलडीसी भर्ती-2022 के मामले में हाईकोर्ट प्रशासन को आदेश दिए हैं कि आरक्षित वर्ग के जिन अभ्यर्थियों ने सामान्य श्रेणी से अधिक अंक हासिल किए हैं और विशेष लाभ नहीं लिए हैं, उन्हें सामान्य श्रेणी में मानते हुए वर्गवार पुन: लिस्ट बनाए। वहीं इस सूची में आने वाले अभ्यर्थियों के लिए टाइप टेस्ट आयोजित करें। ऐसा करने के बाद यदि आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी सामान्य वर्ग या अपने वर्ग की मेरिट लिस्ट में आते हैं तो उन्हें नियुक्ति दी जाए। इस दौरान यदि पूर्व में नियुक्ति पाने वाले सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी कट ऑफ लिस्ट में शामिल नहीं होते है और खाली पद उपलब्ध नहीं हो तो ऐसे अभ्यर्थियों की सेवाएं समाप्त कर दी जाए। जस्टिस एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस प्रवीर भटनागर की खंडपीठ ने यह आदेश महिपाल यादव व एक हजार से अधिक याचिकाकर्ताओं की पचास से अधिक याचिकाओं पर संयुक्त रूप से सुनवाई करते हुए दिए। याचिकाओं में अधिवक्ता रामप्रताप सैनी व अन्य ने अदालत को बताया कि हाईकोर्ट प्रशासन ने 5 अगस्त, 2022 को हाईकोर्ट, सेशन कोर्ट, न्यायिक अकादमी और विधिक सेवा प्राधिकरण में एलडीसी भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया। वहीं हाईकोर्ट प्रशासन की ओर से लिखित परीक्षा आयोजित कर गत एक मई को टाइप टेस्ट के लिए सफल अभ्यर्थियों की वर्गवार कट ऑफ लिस्ट जारी की। जिसमें एससी, ओबीसी नॉन क्रीमीलेयर, एमबीसी नॉन क्रीमीलेयर और ईडब्ल्यूएस की कट ऑफ सामान्य वर्ग से अधिक आई। याचिकाकर्ता आरक्षित वर्ग के ऐसे अभ्यर्थी है, जो अपने वर्ग की मेरिट लिस्ट में नहीं है, लेकिन उनके अंक सामान्य वर्ग से अधिक हैं। ऐसे में उन्हें सामान्य वर्ग में शामिल करते हुए टाइप टेस्ट में शामिल किया जाए।
सीएम गहलोत का प्रार्थना पत्र खारिज, चलेगा मुकदमा
जयपुर, 19 सितंबर। दिल्ली की राउज एवेन्यू की निचली अदालत ने केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह के मानहानि परिवाद में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से पेश प्रार्थना पत्र प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया है। सीआरपीसी की धारा 256 के तहत पेश इस प्रार्थना पत्र में सीएम अशोक गहलोत ने परिवादी गजेंद्र सिंह के अदालत में पेश नहीं होने के आधार पर उन्हें दोषमुक्त करने की गुहार की है। इस प्रार्थना पत्र पर गत 14 सितंबर को दोनों पक्षों की बहस पूरी हो गई थी।
सीएम गहलोत की ओर से पेश इस प्रार्थना पत्र में कहा गया था कि सीआरपीसी की धारा 256 के तहत प्रावधान है कि यदि मामले का परिवादी अदालत में हाजिर नहीं होता है तो कोर्ट को इस आधार पर परिवाद में आरोपी बनाए गए व्यक्ति को दोषमुक्त कर देना चाहिए। प्रकरण में परिवादी गजेन्द्र सिंह सुनवाई के दौरान अदालत में हाजिर नहीं हो रहे हैं। ऐसे में प्रार्थी को प्रकरण से दोषमुक्त किया जाए। वहीं शेखावत की ओर से कहा गया कि यदि लंबे समय तक परिवादी अदालत में पेश नहीं हो तो इस धारा के तहत कार्रवाई हो सकती है। इसके अलावा बीती दो पेशियों से परिवादी अदालत में हाजिर हो रहे हैं। इसलिए इस प्रार्थना पत्र का अब कोई औचित्य नहीं है। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत में प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया। गौरतलब है कि केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह ने संजीवनी घोटाले में सीएम गहलोत की ओर से उनके खिलाफ बयानबाजी करने पर आपराधिक मानहानि का परिवाद पेश किया है। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सीएम गहलोत को समन जारी कर तलब किया था।
फार्मासिस्ट भर्ती में नियमों की अनदेखी कर चयन का आधार क्यों बदला
जयपुर, 19 सितंबर। राजस्थान हाईकोर्ट ने फार्मासिस्ट भर्ती-2023 में नियमों की अनदेखी कर सिर्फ डिप्लोमा व बोनस अंकों को चयन का आधार बनाने पर प्रमुख चिकित्सा सचिव और राजस्थान स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान के निदेशक से जवाब तलब किया है। जस्टिस सुदेश बंसल की एकलपीठ ने यह आदेश दीपश्री व अन्य की ओर से दायर याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए दिए। अदालत ने संबंधित अधिकारियों से पूछा है कि क्यों ना भर्ती विज्ञापन की इस शर्त को रद्द कर दिया जाए।
याचिका में अधिवक्ता सुनील कुमार सिंगोदिया ने अदालत को बताया कि कार्मिक विभाग ने 23 मई 2022 को चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधीनस्थ सेवा नियम, 1965 में संशोधन कर प्रावधान किया कि फार्मासिस्ट भर्ती लिखित परीक्षा के आधार पर होगी। हालांकि एक भर्ती शैक्षणिक व डिप्लोमा में प्राप्त अंकों व अनुभव के आधार पर दिए जाने वाले बोनस अंकों के आधार पर की जाएगी। याचिका में कहा गया कि विभाग ने 11 नवंबर, 2022 को फार्मासिस्ट भर्ती के लिए आवेदन मांगे। जिसमें कार्मिक विभाग की अधिसूचना के तहत चयन का आधार तय किया गया। वहीं बाद में इस भर्ती को निरस्त कर दिया गया और गत 5 मई को नए सिरे से भर्ती विज्ञापन जारी किया गया। जिसमें प्रावधान किया गया कि डिप्लोमा में मिले अंकों का 70 फीसदी और अनुभव के आधार पर मिलने वाले बोनस अंकों को जोडकर मेरिट सूची जारी की जाएगी। इसे चुनौती देते हुए कहा गया कि भर्ती विज्ञापन सेवा नियमों में निर्धारित चयन प्रक्रिया के विपरीत नहीं हो सकते हैं। जब सेवा नियमों में 12वीं कक्षा के अंक और डिप्लोमा में मिले अंकों के साथ बोनस अंकों के आधार पर मेरिट बनाने का प्रावधान है तो भर्ती में चयन का आधार डिप्लोमा व बोनस अंक ही कैसे रखे जा सकते हैं। निरस्त की गई भर्ती में नियमों के तहत चयन प्रक्रिया तय की गई थी, लेकिन नई भर्ती में व्यक्ति विशेष को फायदा पहुंचाने के लिए चयन के प्रावधान ही बदल दिए गए। जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया है।
स्कूल ने बच्चों की टीसी रोकी थी, अब 11 हजार रुपए हर्जाने सहित टीसी देनी होगी
जयपुर, 19 सितंबर। जयपुर मेट्रो की स्थाई लोक अदालत ने कोविड काल के दौरान सन् 2020 के दौरान फीस नहीं देने पर प्रार्थी बच्चों की टीसी नहीं देने को गलत मानते हुए चिल्ड्रन गार्डन प्ले स्कूल, सिविल लाइंस पर 11 हजार रुपए का हर्जाना लगाया है। वहीं स्कूल प्रशासन को निर्देश दिया है कि वह प्रार्थी पक्ष को टीसी जारी करे। अदालत ने यह आदेश श्रेयांस व श्रेया के परिवाद पर दिए। अदालत ने कहा कि यदि कोई परिजन अपने बच्चों को पूर्व के स्कूल से निकालकर उन्हें दूसरे स्कूल में एडमिशन करवाना चाहता है तो स्कूल को बच्चों की टीसी रोकने का अधिकार नहीं है। यदि उनका फीस वसूली का कोई मामला है तो वे दीवानी कानून के तहत कार्रवाई कर सकते हैं, लेकिन फीस के लिए टीसी रोकना कानूनी तौर पर सही नहीं है।
परिवाद में कहा गया कि परिवादी 2013 से ही विपक्षी स्कूल में पढ़ रहे थे। कोविड काल के दौरान स्कूल 21 मार्च 20 से 5 जुलाई 2020 तक बंद रही और बच्चों को ऑनलाइन क्लास भी मुहैया नहीं कराई गई। जब स्कूल प्रबंधन से बात की तो कहा कि उनके पास ऑनलाइन क्लासेज की सुविधा नहीं है। इसलिए वे अप्रैल 2020 से जून 2020 तक की फीस नहीं लेंगे। इस दौरान जब प्रार्थियों ने विपक्षी से किसी अन्य स्कूल में एडमिशन के लिए टीसी मांगी तो उन्होंने यह कहते हुए टीसी देने से मना कर दिया कि वे पहले बकाया फीस जमा कराए। विपक्षी स्कूल की इस कार्रवाई को प्रार्थी बच्चों ने स्थाई लोक अदालत में चुनौती देते हुए उन्हें हर्जा-खर्चा सहित टीसी दिलवाए जाने का आग्रह किया। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने हर्जाना सहित टीसी देने को कहा है।
पूर्व आईजी को मौत के 13 साल बाद मिला न्याय
जयपुर, 19 सितंबर। आईजी जेल के के पद से 32 साल पहले रिटायर हुए रामानुज शर्मा को मौत के करीब 13 साल बाद हाईकोर्ट से न्याय मिला है। हाईकोर्ट ने उनकी पेंशन काटने के 24 साल पुराने आदेश को रद्द कर दिया है। इसके साथ ही काटी गई राशि नौ फीसदी ब्याज सहित लौटाने के निर्देश दिए हैं। जस्टिस अनूप ढंड ने यह आदेश रामानुज शर्मा के उत्तराधिकारी राम मधुकर शर्मा व अन्य की याचिका पर दिए।
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि रामानुज शर्मा तीस जून, 1991 को रिटायर होने वाले थे, लेकिन उन्हें 17 साल पुराने एक मामले में 29 जून, 1991 को चार्जशीट दी गई। जिससे उनके पेंशन परिलाभ रुक गए। वहीं रिटायर होने के जून 1999 को लंबित मामले में दो साल तक उनकी पेंशन में से पांच फीसदी राशि काटने की सजा दी गई। जिसे चुनौती देते हुए कहा गया कि इतने सालों बाद चार्जशीट देना गलत है। रिटायर होने के बाद किसी गंभीर मामले में ही दंडित किया जा सकता है। जबकि याचिकाकर्ता को जिस मामले में दंडित किया गया है, वह ज्यादा गंभीर नहीं है। ऐसे में उन्हें रिटायर होने के बाद दंडित नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट में 24 साल चली इस याचिका के लंबित रहने के दौरान करीब 13 साल पहले रामानुज शर्मा का निधन हो गया। इस पर उनके उत्तराधिकारी ने याचिका को जारी रखा।