राजस्थान हाईकोर्ट ने भरणपोषण के आदेश को बरकरार रखा, कहा-पति ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की

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पति पर व्यभिचार का आरोप

राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पारित भरणपोषण आदेश को बरकरार रखा, जिसे इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि पत्नी कथित रूप से व्यभिचार में रह रही थी। जस्टिस अशोक कुमार जैन की सिंगल जज बेंच ने कहा, “मौजूदा याचिकाकर्ता की ओर से पेश साक्ष्य यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं हैं कि प्रतिवादी नंबर 1 (पत्नी) व्यभिचार में रह रही थी। तथ्य यह है कि वर्तमान याचिकाकर्ता ने व्यभिचार के आरोप के बावजूद, प्रतिवादी-पत्नी के साथ रहने का प्रयास किया था, जिसके लिए उसने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत एक याचिका दायर की थी, इस प्रकार इन दलीलों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।”

याचिकाकर्ता-पति ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें अतिरिक्त सेशन जज के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उनकी पत्नी और बच्चों के पक्ष में गुजारा भत्ता देने के मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ उनके पुनरीक्षण को खारिज कर दिया गया था।

याचिकाकर्ता का तर्क था कि उसकी पत्नी उसके प्रतिष्ठान में एक कर्मचारी के साथ व्यभिचार कर रह रही थी। उन्होंने तर्क दिया कि अगर पत्नी व्यभिचार में रहती है या बिना किसी पर्याप्त कारण के अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है या आपसी सहमति से अलग रहती है, तो वह सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरणपोषण पाने की हकदार नहीं है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि उनके बच्चे भरण-पोषण पाने के हकदार नहीं हैं क्योंकि पति के पास कमाई के अपर्याप्त साधन हैं।

निचली अदालत ने कथित रूप से कथित कार्यकर्ता द्वारा लिखे गए पत्र का हवाला देते हुए कहा था कि केवल एक पत्र पत्नी के चरित्र को खराब करने के लिए पर्याप्त नहीं है। हाईकोर्ट ने सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि पत्र में प्रयुक्त भाषा को देखने पर यह पता चलता है कि इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है कि पत्नी कभी भी किसी के साथ व्यभिचार में रही हो। कोर्ट ने कहा, “यह रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि XXX मौजूदा याचिकाकर्ता या उसके परिजनों की ओर से संचालित प्रतिष्ठान में एक वर्कर था, इसलिए, याचिकाकर्ता और उसके परिजन XXX को बखूबी जानते थे, वह भी मालिक और नौकर के रूप में। इस प्रकार, याचिकाकर्ता की ओर से दिया गया साक्ष्य यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं है कि प्रतिवादी नंबर एक व्यभिचार में रह रही थी।
कोर्ट ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता लगातार मुंबई में रह रहा था, जो एक मेट्रो शहर है और प्रतिवादी को 4,000 रुपये प्रति माह का भरणपोषण इस तथ्य को देखते हुए एक बड़ी राशि नहीं है कि याचिकाकर्ता एक व्यवसाय चला रहा था। तदनुसार, अदालत ने याचिका को आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया।

केस टाइटल: सुनील कुमार बनाम श्रीमती भावना व अन्य।

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