अपंजीकृत दस्तावेजों के आधार पर क्या दर्ज हो सकती है एफआईआर-हाईकोर्ट

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जयपुर, 14 मई। राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि क्या अपंजीकृत और बिना उचित स्टांप वाले दस्तावेजों के आधार पर एफआईआर दर्ज की जा सकती है। इसके अलावा अदालत ने आयकर और ईडी से यह बताने को कहा है कि स्टांप एक्ट सहित अन्य संबंधित अधिनियमों के प्रावधानों की अवहेलना करने पर क्या कार्रवाई की गई है। इसके साथ ही अदालत ने मामले में चल रहे अनुसंधान को जारी रखने को कहा है, लेकिन अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने पर रोक लगा दी है। जस्टिस समीर जैन की एकलपीठ ने यह आदेश शंकर खंडेलवाल की आपराधिक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि मामले में कोई भी आदेश देने से पूर्व यह देखना जरूरी है कि क्या अस्वीकार्य साक्ष्यों के आधार पर पुलिस एफआईआर दर्ज कर सकती है या नहीं? अदालत ने कहा कि प्रकरण में बताया गया लेनदेन स्टांप अधिनियम और आयकर अधिनियम के प्रावधानों के बाहर किए गए थे, जो धन शोधन निवारण अधिनियम की अनुसूची ए के तहत अपराध की श्रेणी में आते हैं। अदालत ने कहा कि प्रकरण में स्टांप अधिनियम की धारा 35 की अवहेलना की गई है और दस्तावेज भी अपंजीकृत व विधिवत स्टांप नहीं किए गए हैं। ऐसे में राज्य सरकार और आयकर विभाग सहित ईडी अपना जवाब पेश करे।
याचिका में अधिवक्ता मनीष गुप्ता ने बताया कि याचिकाकर्ता का दूसरे पक्ष के साथ करोड़ों रुपए का लेनदेन हुआ था। जिसका स्टांप पर एग्रीमेंट किया गया। इस बीच विवाद होने पर दूसरे पक्ष ने याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। पुलिस ने मामले में जांच कर एफआर पेश कर दी। इस पर शिकायतकर्ता के प्रार्थना पत्र पर निचली अदालत ने प्रकरण में अग्रिम जांच के आदेश दे दिए। इसे चुनौती देते हुए कहा गया कि प्रकरण पूरी तरह से सिविल नेचर का है और एग्रीमेंट भी पंजीकृत नहीं है। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार से जवाब तलब किया है।

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