सीएम अशोक गहलोत ने राजस्थान में 19 नए जिले और 3 नए संभाग बनाने की घोषणा की। अब 50 नए जिले और 10 संभाग हो जाएंगे। इसी के साथ जिलों की संख्या के मामले में राजस्थान देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य बन जाएगा।
फिलहाल सबसे ज्यादा 75 जिले उत्तर प्रदेश में हैं। वहीं, दूसरे नंबर पर मध्यप्रदेश में 53 जिले हैं। फिलहाल राजस्थान में 33 जिले हैं। 3.42 लाख स्कवायर किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ राजस्थान क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य है।
नए जिले और संभागों की घोषणा को लेकर 2 बड़े फैक्टर सामने आए। पहला भौगोलिक और दूसरा राजनीतिक।
सबसे पहले जानिए जिले बनने के भौगोलिक कारण…
भूगोलविदों का कहना है कि इस इक्वेशन के साथ अब राजस्थान में औसतन एक संभाग में 5 जिले होंगे। हालांकि भौगोलिक दृष्टि से ये संख्या 4 से 6 के बीच रह सकती है। मगर 4 से कम और 6 से ज्यादा जिले एक संभाग में नहीं होंगे। हमने जब नए जिलों और उनसे संबंधित पुराने जिलों के बीच की दूरियां निकाली तो कई जिलों में 100 किलोमीटर से ज्यादा दूरी सामने आई।
सबसे बड़ी दूरी जोधपुर से फलोदी के बीच थी। दोनों के बीच लगभग 145 किलोमीटर की दूरी है। जानकारों का कहना है कि नए जिले बनने से सबसे बड़ा फायदा दूरी को लेकर ही होता है। लोगों को जिला बनने से उसे कई सुविधाएं अपने ही क्षेत्र में मिलती हैं। इसके लिए उसे सैकड़ों किलोमीटर दूर जाना पड़ता था।
नए जिले बनने से अब इन जिलों के लोगों को इतना लंबा सफर तय कर अपने कामों के लिए जिला मुख्यालय नहीं जाना पड़ेगा। कलेक्ट्रेट, जिला परिषद, जिला परिवहन कार्यालय, जिला रसद कार्यालय, जिला न्यायालय, जिला अस्पताल, जिला मुख्य चिकित्सा विभाग, जिला शिक्षा विभाग जैसी प्रमुख सुविधाएं नए जिलों के लोगों को अपने ही क्षेत्र में मिलने लगेंगी।
कुशलगढ़ से 204 किमी का सफर कर व्यक्ति पहुंचता था उदयपुर
सीकर, बांसवाड़ा और पाली के रूप में तीन नए संभाग बनाए गए हैं। इन तीन नए संभाग बनने से आसपास के क्षेत्रों के लोगों को बड़ा फायदा पहुंचेगा। इसे इस तरह समझा जा सकता है।
बांसवाड़ा : बांसवाड़ा फिलहाल उदयपुर संभाग में आता है। बांसवाड़ा से उदयपुर की दूरी 156 किलोमीटर है। बांसवाड़ा के दक्षिणी क्षेत्र कुशलगढ़ से उदयपुर की दूरी 204 किलोमीटर है। ऐसे में बांसवाड़ा में संभागीय मुख्यालय बनने से अब बांसवाड़ा के व्यक्ति को इससे संबंधित काम के लिए 156 किलोमीटर दूर उदयपुर नहीं जाना पड़ेगा। यही फायदा आसपास के क्षेत्र के लोगों को भी होगा।
सीकर : सीकर फिलहाल जयपुर संभाग में आता है। सीकर से जयपुर की दूरी 117 किलोमीटर है। ऐसे में सीकर के व्यक्ति को संभागीय मुख्यालयों से जैसे कामों के लिए लंबा सफर तय कर जयपुर आना पड़ता था। अब ऐसा नहीं करना होगा।
पाली : पाली फिलहाल जोधपुर संभाग में आता है। जोधपुर से पाली की दूरी फिलहाल 67 किलोमीटर है। इसी तरह जोधपुर संभाग में आने वाले जालोर से जोधपुर की दूरी 137 किलोमीटर है। ऐसे में जालोर के व्यक्ति के पास पाली संभागीय मुख्यालय में आने से फायदा होगा।
जिलों के बनने का राजनीतिक कारण
19 नए जिलों की घोषणा के अपने राजनीतिक फायदे हैं। राजनीतिक विश्लेषक और लोकनीति-सीएसडीएस के प्रोफेसर संजय लोढ़ा कहते हैं कि जब किसी जगह की लंबे समय से चली आ रही डिमांड होती है। वो डिमांड जब तक पूरी नहीं होती, लोगों में आक्रोश रहता है। मगर जब उसे पूरा किया जाता है तो उसके कई फायदे होते हैं।
जिन जिलों की घोषणा हुई है। उनमें से कुछ जिलों की मांग तो पहले से हो ही रही थी। कुछ क्षेत्र ऐसे थे, जहां की मांग जोरों से नहीं थी। मगर जैसे ही ये 7-8 नए जिले बना दिए जाते तो बाकी क्षेत्रों के लोगों में निगेटिविटी पनपती। यह चुनाव के लिए हानिकारक हो सकता था।
प्रोफेसर लोढ़ा कहते हैं कि राजस्थान भौगोलिक रूप से सबसे बड़ा राज्य है। राजस्थान से छोटे राज्यों में ज्यादा जिले और संभाग थे। ऐसे में सभी क्षेत्रों को इसमें शामिल करके राजनीतिक रूप से एक परिपक्व निर्णय किया गया है। यह निर्णय भौगोलिक और प्रशासनिक के साथ-साथ राजनीतिक रूप से भी अच्छा है।
राजनीतिक रूप से जिलों के मायने
जानकारों का कहना है कि बालोतरा, ब्यावर, डीडवाना, नीमकाथाना, फलोदी, कोटपूतली जैसे जिलों की मांग पहले से ही थी। व्यवहारिक रूप से भी माना जा रहा था कि इन क्षेत्रों में जिलों की जरूरत है। मगर इसके अलावा सीएम गहलोत ने बाकी के जिले बनाने में राजनीतिक जरूरत को भी साधा। ऐसे इलाके जहां कांग्रेस कमजोर थी। उन इलाकों को शामिल कर कांग्रेस को संजीवनी देने की कोशिश की। वहीं, जहां कांग्रेस मजबूत है। वहां और भी ज्यादा मजबूत करने का प्रयास किया है।
आदिवासियों में कांग्रेस को मजबूत करने की तैयारी, 25 सीटों पर असर
बांसवाड़ा को संभाग और सलूंबर को जिला बनाने की घोषणा कर गहलोत ने आदिवासियों को साधने की कोशिश की है। राजस्थान में 25 आदिवासी सीटें हैं। सलूंबर आदिवासी विधानसभा सीट है। सीडब्ल्यूसी सदस्य रघुवीर मीणा का विधानसभा क्षेत्र है। इससे वे मजबूत होंगे। बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ और सलूंबर 4 आदिवासी जिले इस संभाग में शामिल हो सकते हैं। दक्षिणी राजस्थान में पहले कांग्रेस मजबूत थी। मगर पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी ने यहां अपनी पकड़ मजबूत की।
पाली-जालोर में कांग्रेस को मजबूत करने का प्रयास, यहां कांग्रेस कमजोर
पाली को संभाग और जालोर के सांचौर को जिला बनाने की घोषणा कर गहलोत ने इस क्षेत्र को मजबूत करने की कोशिश की है। जालोर, पाली और सिरोही में कांग्रेस बेहद कमजोर है। सरकार होने के बावजूद वर्तमान विधानसभा में यहां 14 में से सिर्फ 1 सीट पर कांग्रेस है। जबकि 11 सीटों पर बीजेपी है। 2 सीट निर्दलियों के पास है। यहां सिर्फ सांचौर से सुखराम विश्नोई ही कांग्रेस के रूप में जीत सके हैं। ऐसे में इस क्षेत्र में कांग्रेस को मजबूत करने का प्रयास किया गया है।
सीकर को संभाग बना जाट बैल्ट को छूने की कोशिश
सीकर को संभाग बनाकर गहलोत ने राजस्थान में प्रभावी मानी जाने वाली जाट कौम को भी साधने का प्रयास किया है। शेखावटी क्षेत्र में जाटों का प्रभाव है। ऐसे में इस क्षेत्र में कांग्रेस को मजबूत करने का काम किया गया है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा यहीं से आते हैं। ऐसे में वे भी इससे मजबूत होंगे।
अजमेर में कांग्रेस को फिर से जगाने की कोशिश
अजमेर संभाग में भी कांग्रेस काफी कमजोर है। अजमेर जिले की 8 विधानसभा में से सिर्फ 2 में ही कांग्रेस है। इसके अलावा भीलवाड़ा में भी कांग्रेस कमजोर है। ऐसे में अजमेर जिले से ब्यावर, केकड़ी को जिला बनाया गया। वहीं, भीलवाड़ा से शाहपुरा को जिला बनाया गया है। केकड़ी को जिला बनाने से पूर्व मंत्री और गुजरात प्रभारी डॉ. रघु शर्मा मजबूत होंगे। केकड़ी उन्हीं की विधानसभा है। इसके अलावा भीलवाड़ा में भी कांग्रेस को मजबूत करने का प्रयास है।
डीडवाना-डीग से मुस्लिमों को भी साधने की कोशिश
गहलोत ने नागौर के डीडवाना और भरतपुर के डीग को जिला बनाकर मुस्लिमों को भी साधने का प्रयास किया है। दोनों जगहों पर अच्छी संख्या में मुस्लिम वोटर हैं। ऐसे में एक तरफ प्रदेश के तमाम मंदिरों के जीर्णोद्धार और विकास के बीच यह बैलेंसिंग करने की कोशिश की है। डीडवाना और डीग विधानसभा और उस क्षेत्र में मुस्लिमों का अच्छा प्रभाव है।