जयपुर, 24 फरवरी।
राजस्थान हाइकोर्ट ने डॉ. भीमराव आम्बेडर विधि विश्वविद्यालय में वीसी के तौर पर डॉ. देवस्वरूप को दी गई नियुक्ति को रद्द कर दिया है। हालांकि देवस्वरूप गत 26 दिसंबर को त्यागपत्र दे चुके हैं। एक्टिंग सीजे एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस विनोद कुमार भारवानी की खंडपीठ ने यह आदेश प्रोफेसर केबी अग्रवाल की जनहित याचिका को स्वीकार करते हुए दिए।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि विधि विश्वविद्यालय के कुलपति को विधि शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव रहने वाला होना चाहिए। यह एकल विषय का विश्वविद्यालय है, ऐसे में अन्य एकल विषय के विश्वविद्यालयों जैसे मेडिकल और कृषि विवि की जैसे विधि विवि के कुलपति को कानून शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव रखने वाला ही होना चाहिए। अदालत ने कहा कि वे विवि के अधिनियम की धारा 11(17)की वैधता के पहलु पर नहीं जा रहे हैं, लेकिन धारा 11(2) में निहित प्रावधानों को देखते हुए देवस्वरूप की नियुक्ति को रद्द किया जा रहा है।
याचिका में अधिवक्ता सुनील समदडिया ने कहा कि देव स्वरूप को 27 फरवरी, 2020 को भीमराव आम्बेडर विधि विश्वविद्यालय का वीसी नियुक्त किया गया है। जबकि उनका शैक्षणिक बैकग्राउंड कानून का नहीं रहा है और ना ही उन्हें कानूनी शिक्षा देने का अनुभव है।
इसके अलावा याचिका में विवि के अधिनियम की धारा 11(2) और धारा 11(17) के प्रावधानों को चुनौती देते हुए कहा गया कि धारा 11(2) के तहत किसी भी एकेडमिक बैकग्राउंड वाले व्यक्ति को विवि का वीसी नियुक्त करना गलत है।
याचिका में कहा गया कि देश की सभी नेशनल लॉ युनिवर्सिटीज में वीसी लॉ प्रोफेसर या एक्सपर्ट ही बन सकता है। यहां तक की इनमें कुलपति वहां के राज्यपाल ना होकर संबंधित हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश होते हैं। इसके अलावा विषय विशेष के अन्य विश्वविद्यालयों में संबंधित विषय के व्यक्ति को ही वीसी नियुक्त किया गया है।
याचिका में कहा गया कि धारा 11(17) के तहत चांसलर राज्य सरकार के परामर्श के बाद बिना तय प्रक्रिया अपनाए विवि के पहले वीसी के तौर पर किसी भी व्यक्ति को नियुक्ति दे सकते हैं। जिसके चलते न सिर्फ शक्तियों का दुरुपयोग होगा, बल्कि यह संविधान के प्रावधानों के भी विपरीत है।