“सात साल की थी। दादी बोली चलो घूमने चलते हैं। चॉकलेट दिलाऊंगी। मैं तो खुशी के मारे उछलने लगी। आज खूब मस्ती करूंगी। दादी मुझे एक अनजाने कमरे में ले गईं। कुछ लोग मेरा हाथ-पैर कसकर पकड़ लिए। मैं कुछ बोलती, उससे पहले ही मेरे प्राइवेट पार्ट पर ब्लेड चला दिया गया। दर्द से मैं चीख पड़ी, लगा मेरी जान निकल गई। आज 48 साल बाद भी वो मंजर याद करके कांप जाती हूं।”
ये कहानी है नॉर्थ गोवा में रहने वाली मासूमा रानालवी की। वो जिस दर्द की बात कर रही हैं, वो है खतना। दुनिया भर में मुस्लिमों में पुरुषों का खतना तो आम है, लेकिन तमाम मुल्कों में महिलाओं का भी खतना किया जाता है। भारत में मुस्लिमों के सबसे संपन्न दाऊदी बोहरा कम्युनिटी में महिलाओं का खतना होता है।
खतने में पुरुषों या महिलाओं के जननांगों के एक हिस्से को काट दिया जाता है। महिलाओं के खतने को अंग्रेजी में फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन यानी FGM कहते हैं। आमतौर पर इस प्रोसेस में वजाइना के क्लिटोरिस हुड को एक तीखे ब्लेड से अलग कर दिया जाता है। भारत में यही प्रोसेस बोहरा कम्युनिटी की महिलाएं अपनाती हैं।
मासूमा कहती हैं, ‘उस दिन घर आने के बाद मैं काफी देर तक रोती रही। कई दिनों तक दर्द झेला। समझ नहीं आ रहा था कि मेरे साथ ऐसा क्यों किया गया। किसी से सवाल भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि सख्त हिदायत दी गई थी इस बारे में किसी से बात नहीं करनी। हम तीन बहनें हैं, तीनों का खतना हुआ, लेकिन कभी किसी ने इस टॉपिक पर बात नहीं की।’
वे कहती हैं, ’30 साल तक मुझे इसके बारे में कुछ पता नहीं चला। फिर अखबार में FGM के बारे में एक आर्टिकल पढ़ा, तो लगा कि मेरे साथ भी तो यही हुआ है। इसके बाद ही पता चला कि ये एक प्रथा है। महिलाओं की सेक्शुअल डिजायर को कंट्रोल करने और उनकी पवित्रता के नाम पर ऐसा किया जाता है।
इसके बाद ही मैंने इस परंपरा के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया, ताकि लोगों को पता लगे कि हमारी कम्युनिटी में बच्चियों के साथ कैसा सलूक हो रहा है।’
मासूमा ने वी स्पीक आउट नाम की संस्था बनाई। अपने तरह की मुस्लिम महिलाओं को जोड़ा और FGM को खत्म करने के लिए सामाजिक और कानूनी अभियान शुरू किया।
भारत में चाइल्ड एब्यूज पर काम कर रही फिल्ममेकर इनसिया दरीवाला कहती हैं, ‘मेरा खतना नहीं हुआ, लेकिन घर की बाकी महिलाओं का हुआ, क्योंकि उन्होंने आवाज नहीं उठाई। इसलिए मैंने इस पर फिल्म बनाने का फैसला किया। रिसर्च के सिलसिले में मेरी मुलाकात मुंबई की एक पत्रकार आरिफा जौहरी से हुई। आरिफा कई मंचों पर पर अपनी कहानी बता चुकी हैं।’
इनसिया कहती हैं, ‘कोविड से पहले आरिफा के साथ मैं सूरत गई थी। वहां सात साल की एक बच्ची का खतना हुआ था। जब हम उससे मिलने पहुंचे, तो वह डर गई। हमारे बैग में ब्लेड ढूंढने लगी। मैंने उसकी मां से पूछा कि बच्ची के साथ यह क्यों किया? तो वह कहने लगी कि मेरा भी हुआ था, इसलिए मैंने बेटी का भी करवाया।’
मुंबई के नागपाड़ा में अपना क्लिनिक चलाने वाली डॉ. एलाइजा कपाड़िया बताती हैं कि 7 साल की उम्र में मेरा खतना हुआ। 15 साल की हुई तब मुझे पता चला कि मेरे साथ क्या हुआ है। डॉक्टर बनने के बाद मुझे पता चला कि इसकी कोई मेडिकल वजह ही नहीं है। मुझसे बिना पूछे और मुझे बिना बताए मेरा खतना किया गया, जो मेरे शरीर के साथ खिलवाड़ था।
इसके बाद मैंने तय किया कि मैं अपनी बेटी का खतना नहीं करवाऊंगी। मैं ऐसे कई पुरुषों को जानती हूं, जिन्होंने अपनी बेटी का खतना नहीं करवाने का फैसला किया है। अब मैं 67 साल की हूं। शरीर का दर्द तो भूल गई हूं, लेकिन वो आइसक्रीम याद है। जिसके बहाने मेरा खतना कर दिया गया।’
हमारे लिए इसका मतलब केवल हाइजीन और पवित्रता है
नाम नहीं छापने की शर्त पर बोहरा कम्युनिटी की एक महिला बताती हैं, ‘हम लोग माइग्रेट होकर यमन से भारत आए। यमन में 500 से ज्यादा सालों से महिलाओं का खतना हो रहा है। इसलिए आज भी हमारी औरतों का खतना होता है। इसे रिलिजन ऑफ फेथ कह सकते हैं।
मेरा तो सीधा सा सवाल है कि अगर पुरुषों का खतना हो सकता है, तो महिलाओं का क्यों नहीं। हमारे यहां इसका मतलब केवल हाइजीन और प्याेरिटी से है। जो लोग इसे सेक्शुअल डिजायर से जोड़ रहे हैं, वे गलत हैं।’
धारदार ब्लेड से एक ही कट में किया जाता है खतना
गुजरात के लारा अस्पताल की गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. शुजात वली कहते हैं कि आमतौर पर घर की दादी या मां बच्ची को घुमाने के नाम पर घर से बाहर ले जाती हैं। वहां एक कमरे में पहले से दो लोग मौजूद होते हैं। वे लोग बच्ची के दोनों पैर पकड़ लेते हैं। फिर खास तरह की धारदार चाकू, रेजर ब्लेड या कैंची से एक ही कट में क्लिटोरिस हुड को अलग कर दिया जाता है।
पुराने जमाने में ब्लीडिंग रोकने के लिए ठंडी राख लगा दी जाती थी। आजकल एंटीबायोटिक पाउडर या लोशन और कॉटन का इस्तेमाल किया जाता है। ब्लीडिंग रुकने के करीब 40 मिनट बाद बच्ची को घर भेजा जाता है। तीन-चार दिन उसे खेलने-कूदने से मना किया जाता है। कई बार तो हफ्ते भर तक लड़की के दोनों पैरों को बांधकर रखा जाता है।
जरूरी नहीं महिलाओं का खतना महिला ही करे
डॉ. शुजात वली कहते हैं कि आमतौर पर खतना परिवार या कम्युनिटी की बुजुर्ग महिला करती हैं। कई मामलों में पुरुष भी महिलाओं का खतना करते हैं। आजकल कई लोग मेडिकल एक्सपर्ट की देखरेख में खतना करवाते हैं।
जन्म के तुरंत बाद भी किया जाता है खतना
डॉ. शुजात वली के मुताबिक महिलाओं में खतने के लिए कोई तय उम्र नहीं है। ज्यादातर मामलों में 6 से 14 साल के बीच किया जाता है। कई जगहों पर तो जन्म के तुरंत बाद ही खतना कर दिया जाता है। जबकि कुछ जगहों पर प्रेग्नेंसी के दौरान या पहले बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं का खतना किया जाता है।
डॉ. शुजात वली कहते हैं, ’क्लिटोरिस से सिर्फ हुड को काटना आसान नहीं है। ये दोनों पार्ट एक दूसरे से जुड़े होते हैं। कोई अनुभवी सर्जन भी अगर खतना करता है, तो भी दोनों ऑर्गन की अलग पहचान मुश्किल है। ऐसे में कोई बुजुर्ग महिला या नॉन ट्रेंड इंसान खतना करेगा तो क्लिटोरिस को नुकसान पहुंचेगा ही।
वे कहते हैं, ’क्लिटोरिस महिलाओं की बॉडी का बहुत ही सेंसिटिव पार्ट है। इसके नुकसान का मतलब है शादीशुदा जिंदगी खराब होना। सेक्शुअल प्लेजर खत्म हो जाता है। इतना ही नहीं अगर ब्लीडिंग ज्यादा हो जाए, तो इन्फेक्शन भी हो जाता है। मेरे साथी डॉक्टरों के पास ऐसे कई केस आते हैं।’
WHO का कहना है कि FGM के पीछे कोई मेडिकल रीजन नहीं है। इससे लंबे समय के लिए फिजिकली और मेंटली शरीर को नुकसान पहुंच सकता है, क्योंकि खतना करते वक्त उस अंग को सुन्न नहीं किया जाता। साथ ही ज्यादातर मामलों में अनट्रेंड लोग इस प्रोसेस को अंजाम देते हैं। सिर्फ 17% मामलों में ही हेल्थ एक्सपर्ट के जरिए खतना किया जाता है।
कुरान में पुरुषों या महिलाओं के खतने का जिक्र नहीं: मुस्लिम स्कॉलर
मुस्लिम स्कॉलर और जमाते इस्लामी हिंद के सचिव डॉ. मईउद्दीन गाजी कहते हैं, ‘कुरान में ना तो पुरुषों के खतने की बात कही गई है और ना ही महिलाओं के खतने का कोई जिक्र है। हदीस में खतने की बात कही गई है, जिसका संदर्भ शरीर की सफाई से है।
एक हदीस में कहा गया है कि पैगंबर साहब एक जगह से गुजर रहे थे। रास्ते में एक महिला अपनी बच्ची का खतना कर रही थी, इस पर पैगबंर साहब ने कहा कि ध्यान से करो। इसका मतलब है उन्होंने इसे कभी बढ़ावा नहीं दिया। यह रवायत इस्लाम से भी पहले की है। खतना एक कल्चरल प्रैक्टिस है ना कि धार्मिक, लेकिन इसे धार्मिक बना दिया गया।’
5वीं सदी में मिस्र में किया जाता था महिलाओं का खतना
खतना कब शुरू हुआ, इसको लेकर कोई सटीक जानकारी नहीं है। अलग-अलग रिपोर्ट्स के मुताबिक 5वीं सदी में इसका जिक्र मिलता है। मिस्र में महिलाओं का खतना किया जाता था। ब्रिटिश म्यूजियम में 163BC की एक ममी रखी है, जिसमें महिलाओं के खतने को दिखाया गया है।
कई स्कॉलर्स का मानना है कि मिस्र में महिलाओं और सेक्स स्लेव की प्रेग्नेंसी रोकने के लिए उनके प्राइवेट पार्ट के एक हिस्से को अलग कर दिया जाता था। मिस्र से अरब होते हुए बाकी देशों में भी ऐसा किया जाने लगा।
दुनिया के 80% बोहरा मुस्लिम भारत में
मुस्लिमों में मुख्य रूप से दो संप्रदाय होते हैं- शिया और सुन्नी। दाऊदी बोहरा कम्युनिटी शिया सेक्ट से है। 15वीं सदी में यमन से इनकी शुरुआत हुई। वहीं से ये लोग बाकी देशों में गए हैं।
डॉ. मईउद्दीन गाजी कहते हैं, ‘ये लोग पोप की ही तरह अपने धर्मगुरु यानी सैयदना को सबसे ऊपर मानते हैं। जबकि सुन्नी पैगंबर साहब के अलावा किसी इंसान को ऐसा दर्जा नहीं देते हैं।’
भारत में करीब 8 लाख बोहरा मुस्लिम रहते हैं। जो दुनिया की 80% आबादी है। ये कम्युनिटी काफी पढ़ी-लिखी और समृद्ध है। ज्यादातर लोग बिजनेस बैकग्राउंड से हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में इनकी आबादी सबसे ज्यादा है।